जमशेदपुर। संध्या सात बजे से आभासी पटल पर बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग ने अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस का सफल आयोजन किया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में सेवा निवृत्त प्रशासनिक पदाधिकारी डॉ.अमिता प्रसाद उपस्थित थीं। विशिष्ट अतिथि के रूप में राजस्थान से कहानीकार,समीक्षक, सदीनामा पत्रिका की सह सम्पादक रेणुका आस्थाना और मुख्य अतिथि के रूप में अमलतास से बी.एड.कॉलेज की सचिव डॉ.रत्ना चौधरी जी उपस्थित थीं।
कार्यक्रम का शुभारंभ ‘या देवी सर्वभुतेषु ‘श्लोक के वाचन से हुआ। जिसे डॉ.अरूण सज्जन द्वारा प्रस्तुत किया गया।बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं संस्था की संस्थापिका डॉ.जूही समर्पिता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विशिष्ट अतिथियों की उपलब्धियों से परिचय करवाया। कर्नाटक कार्टर की आई .ए .एस. डॉ. अमिता प्रसाद बिहार से यूनाइटेड नेशन्स तक अपनी आवाज उठाने वाली रत्ना चौधरी, तथा राजस्थान से कथाकार और समीक्षक रेणु श्री अस्थाना का परिचय सहयोग के शुभचिंतकों से करवाया।
सहयोग संस्था की कार्यक्रम समन्वयक, रंभा कॉलेज की प्राचार्या डॉ. कल्याणी कबीर ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि यह वर्ष महिलाओं का सहयोग कर उनके विकास के पथ को प्रशस्त करने का है। स्त्री की उन्नति से ही समाज का विकास सम्भव है, इसलिये दुर्गा काली सरस्वती मानते हुए उन्हें मानवोचित अधिकारों से भी सम्पन्न करना होगा तभी दोनों पहिए सशक्त होंगे और समाज रूपी गाड़ी निर्बाध गति से चल पाएगी। श्रीमती सुधा गोयल जी ने सशक्त होती नारी की सार्थक छवि प्रस्तुत करते हुए कविता का वाचन किया।
विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित मात्र 23 वर्ष की आयु में लोक सेवा आयोग की परीक्षा सफलतापूर्वक पास कर प्रशासनिक अधिकारी बन सेवा देने वाली डॉ.अमिता प्रसाद ने अपने जीवन अनुभव को साझा करते हुए यह संदेश दिया कि स्त्री को स्त्री का साथी बनकर काम करना होगा तभी नारी सशक्तिकरण की बात सार्थक होगी। परिवार में तो लड़के लड़की का भेद नहीं सहना पड़ा,पिता हमेशा प्रेरणा बन कर साथ चले पर नौकरी में कई बार विरोध की बात आई। जब पहली पदस्थाना में योगदान देने गईं तब वहाँ के विधायकों ने ही महिला अधिकारी को बदलने के लिए दवाब डाला,परन्तु उनका काम देखकर उनकी विचारधारा बदल गई। वे आई.ए.एस.बन कर स्त्रियों की शक्ति बनीं, कइयों में आत्मविश्वास जगाया और वे शोषित वंचित नारियों के लिए असम्भव को सम्भव करने की ओर प्रेरित हुईं।
डॉ.रागिनी भूषण जो (सहयोग की संरक्षिका) ने अहिल्या को माध्यम बना कर अपनी कविता के द्वारा इस सत्य को प्रतिस्थापित किया कि अभिशाप से अहिल्या अभिशापित नहीं हुई बल्कि इस अभिशाप से पुरूष मानसिकता का ओछापन उजागर हुआ।पुरूष का विश्वास क्षण भर में खंडित हो आदर खोता है। श्रीमती इन्दिरा पांडेय ने 'दिल है छोटा सा छोटी सी आशा ' गीत द्वारा समाँ बाँधा। विशिष्ट अतिथि डॉ.रेणुका आस्थाना जी ने अपनी लघुकथा ‘लाल बॉडर वाली साड़ी ‘के माध्यम से यह संदेश दिया कि बेटी माँ के सशक्तिकरण में सहयोग देकर कैसे उन्हें सुकून का एहसास करवाती है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमती रत्ना चौधरी जो लम्बे समय से लिंग भेद के विरोध में राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठाती रही हैं , दिल्ली विश्वविद्यालय से अध्यापन के बावजूद अपने बिहार के गाँव तिलौथू में आकर बी. एड. कालेज खोलकर बेहतर शिक्षक बनाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। इनका अनुभव उस तबके की महिलाओं से जुड़ा है जो निम्न मध्यम वर्ग से सम्बंधित हैं। जिनके परिवार में बेटियों का विवाह और संतानोत्पत्ति शिक्षा से ज़्यादा आवश्यक है। शिक्षा का अलख जला कर बेटियों को अपने पैरों पर खड़े होने का आत्मविश्वास दे रही हैं।
सहयोग की अध्यक्ष प्रो.मुदिता चन्द्रा ने कठिनाइयों से लड़ती सफलता हासिल करते हुए आगे बढती जाती महिलाओं की कोशिश को सलाम करते हुए सबके व्यक्तव्य का सार प्रस्तुत किया। सहयोग की सचिव श्रीमती विद्या तिवारी के आभार ज्ञापन से कार्यक्रम की समाप्ति हुई। कार्यक्रम का दक्षतापूर्वक संचालन डॉ.अनिता शर्मा ने किया।इस मौके पर सहयोग के साठ से ज़्यादा सदस्य जुड़े हुए थे।
No comments:
Post a Comment