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सरहुल महापर्व नए साल की शुभारंभ का संदेश देता है : सुखराम हेंब्रम, Sarhul Mahaparva gives the message of the beginning of the new year: Sukhram Hembram


चांडिल। सागुन सारना एभेन गावंता कांगलाडीह द्वारा आयोजित भारत के आदिवासी समाज के प्राचीन सांस्कृतिक त्यौहार तीन दिवसीय सरहूल महापर्व में प्राचीन संस्कृति का रंग दिखा। पर्व के प्रथम दिन जाहेर थान में माझी बाबा, नायके आदि द्वारा शाल वृक्ष का पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना किया गया। द्वितीय दिन शुक्रवार को बच्चे, यूवा पुरुष - महिलाओं द्वारा पारंपरिक वस्त्र पहन कर सरहुल नृत्य प्रस्तुत किया गया। 





इस अवसर पर महापर्व में उपस्थित मुख्य अतिथि पातकोम दिशोम पारगाना रामेश्वर बेसरा को महिलाओं ने पैर धुलाकर सम्मानित किया गया। सागुन सारना एभेन गावंता कांगलाडीह के मुख्य संरक्षक झामुमो के वरिष्ठ नेता सह समाजसेवी सुखराम हेंब्रम विशिष्ट अतिथि रसूनिया पंचायत के मुखिया मंगल माझी, चांडिल के मुखिया मंगल सिंह सरदार, माझी बाबा बाजार हेंब्रम, नायके गोविंद हेंब्रम, गोडेत हापन हेंब्रम, पराणिक मुरली मुर्मू, जोग माझी साधु हेंब्रम, अध्यक्ष मदन हांसदा, उपाध्यक्ष बासुदेव हेंब्रम, सचिव गुरुपद हेंब्रम एवं भूषण हेंब्रम, कोषाध्यक्ष राजाराम हेंब्रम एवं सोनाराम सोरेन, अधिवक्ता महेंद्र कुमार महतो, समाजसेवी विश्वनाथ मंडल आदि को संथाल समाज के पारंपरिक वस्त्र भेंट कर एवं फूलमाला पहनाकर सम्मानित किया गया। 


मौके पर सागुन सारना एभेन गावंता कांगलाडीह के मुख्य संरक्षक झामुमो के वरिष्ठ नेता सह समाजसेवी सुखराम हेंब्रम ने संस्कृति प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन, चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह नए साल की शुरुआत की संदेश है। हालांकि इस त्योहार की कोई निश्चित तारीख नहीं होती है। विभिन्न गांवों में इसे विभिन्न दिनों पर मनाया जाता है। 





इस वार्षिक महोत्सव को बसंत ऋतु के दौरान मनाया जाता है और इसमें पेड़ों और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा शामिल होती है। इस समय शाल, पलाश, महुआ एवं अन्य वनफुल के पेड़ों पर फूल खिलता है। वनफुल के सुगंध से वातावरण सुगंधित हो जाता है। उन्होंने कहा कि झारखंड के स्थानीय जनजातियां नए साल के आगमन पर 'सरहुल' पर्व पूरे धूम-धाम के साथ मनाते है। सरहुल एक राज्य स्तरीय सार्वजनिक अवकाश है और बसंत ऋतु के आगमन का उत्सव भी है। इस पर्व में साल अर्थात सखुआ वृक्ष का खास महत्व होता है। आदिवासियों की परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद नए फसल काटा जाता है।



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