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लाइब्रेरीमेन अपने पिता की स्मृति में पुस्तकालय की समस्याओं का किया निदान, दियें अलमारी, कंप्यूटर और किताबों के साथ बहुत कुछ, Librarian solved library problems in memory of his father, provided shelves, computers and much more along with books,


चक्रधरपुर। किसी को अपना आदर्श मानना, किसी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हुए आगे बढ़ाना, यह शब्द सिर्फ लिखने या बोलने में ही अच्छा लगता है, लेकिन अपने प्रेरणा स्रोत के मार्गदर्शन पर चलना बहुत ही कठिन होता है। लेकिन शहर चाईबासा के पुलहातु निवासी लाइब्रेरीमेन के  संजय कच्छप ने यह साबित किया है कि वे अपने पिता को ही अपना प्रेरणा स्रोत मानते हुए उनकी दिशा निर्देश में अपने जीवन में समाज उपयोगी कार्यों के प्रति सजग रहे हैं, और आज उनके पिता के निधन के उपरांत भी लगे हुए हैं। 




अपने पिता के मार्गदर्शन के अनुरूप आज पूरे झारखंड में 50 से अधिक डिजिटल लाइब्रेरी का सफलता पूर्वक संचालन करते आ रहे हैं। संजय कच्छप का प्रयास है कि ऐसा कोई भी छात्र या छात्राएं शिक्षा से वंचित न हो, इसके लिए वे हर संभव प्रयासरत रहते हैं। उनकी तलाश हमेशा से उन किताबों में रहती है जो विद्यार्थियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करें, उनका प्रयास रहता है कि ऐसे किताबे उनके द्वारा संचालित हर एक पुस्तकालय में रहे, जिसको पढ़कर हर एक छात्र-छात्रा किसी भी तरह की प्रतियोगिता में खुद को सफल पाए। 


इसी को ध्यान में रखते हुए संजय कच्छप के द्वारा पंखराज बाबा कार्तिक उरांव पुस्तकालय इंदिरा कॉलोनी में अपने परम पूज्य पिता स्वर्गीय बंधुवा कच्छप की स्मृति में पुस्तकालय को एक अलमीरा, 15 कुर्सी, कंप्यूटर टेबल के साथ कंप्यूटर की समुचित व्यवस्था एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं के परीक्षा संबंधित किताबें भेंट की। मौके पर उन्होंने उपस्थित छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में सफलता हासिल करने के लिए दृढ़ निश्चय और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण एवं धैर्य बनाए रखने की आवश्यकता है। 


एक सवाल के जवाब में श्री कच्छप ने बताया कि मेरे पूज्य पिता का जीवन हमेशा से संघर्ष में रहा, फिर भी उन्होंने हम लोगों की शिक्षा के प्रति हमेशा से हुए सजग रहे। उनका मानना था कि हमने जो खोया है, हमारे बच्चे को मिले। उन्होंने हमसे कहा कि आपको जो नहीं मिला है आप देश समाज के बच्चों को जरूर दें, ताकि हमारा यह देश, हमारा यह समाज शिक्षित और जागरूक बने। 


मेरे पिता "माउंटेनमेन" दशरथ मांझी जी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे। उनका सोच हमेशा से यही रहा है कि कोई भी कार्य असंभव नहीं है, अगर आपके मन में दृढ़ इच्छा हो जाए तो आप उसे कार्य में सफलता हासिल करके ही रहेंगे। उनका मानना था आपके पास जो है जितना है हमेशा बांटना चाहिए।



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