Guwa (Sandeep Gupta) । किरीबुरू खदान में काम कर रहे कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए सुरक्षा समिति का गठन एक महत्वपूर्ण पहल है। हालांकि, मौजूदा प्रक्रिया और प्रबंधन के फैसले पर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। झारखंड मजदूर संघर्ष संघ के महामंत्री राजेन्द्र सिंद्रिया ने सुरक्षा समिति की मौजूदा संरचना और ट्रेड यूनियन की भूमिका पर आपत्ति जताते हुए एक नई समिति के गठन की माँग की है।किरीबुरू खदान में वर्षों से ट्रेड यूनियन की सदस्यता का गुप्त मतदान नहीं हुआ है। इस कारण, यहाँ कोई भी मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियन अस्तित्व में नहीं है।
सहायक श्रम आयुक्त,चाईबासा ने भी यह स्पष्ट किया है कि जहाँ मान्यता प्राप्त यूनियन नहीं है, वहाँ सभी यूनियनों को समान अधिकार और भागीदारी दी जानी चाहिए। वर्तमान में सुरक्षा समिति और अन्य समितियों (वर्क कमिटी, शिकायत निवारण समिति) में प्रतिनिधि केवल एक ट्रेड यूनियन से चुने जा रहे हैं। यह औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और Mines Rule 1955 के नियमों का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट है कि सभी पंजीकृत यूनियनों को समान भागीदारी मिलनी चाहिए। प्रबंधन द्वारा केवल एक यूनियन को भागीदारी देने का निर्णय औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 (न) के अनुसार अनुचित श्रम व्यवहार है। अगर खदान प्रबंधन ने ऐसा कोई निर्णय सर्वसम्मति से लिया है, तो यह सवाल उठता है कि बिना मान्यता प्राप्त यूनियन और सदस्यता सत्यापन के सर्वसम्मति संभव कैसे है। झमसं ने यह भी कहा कि मान्यता प्राप्त यूनियन का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, और शून्य काल में किसी भी तरह का समझौता करना या निर्णय लेना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट के 1995 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस स्थिति में सभी यूनियनों को समान अधिकार दिए जाने चाहिए। सुरक्षा समिति का गठन सभी पंजीकृत यूनियनों को समान अधिकार और भागीदारी के आधार पर किया जाए। जब तक मान्यता प्राप्त यूनियन का चुनाव नहीं होता, तब तक यह प्रक्रिया जारी रहे। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार ट्रेड यूनियन चुनाव की प्रक्रिया किरीबुरू खदान में तुरंत शुरू की जाए। झारखंड मजदूर संघर्ष संघ के महामंत्री राजेंद्र सिंद्रिया ने प्रबंधन से अपील की है कि कर्मचारियों और उनके परिवारों के हित में समिति का पुनर्गठन किया जाए। उनका कहना है कि खदान में निष्पक्षता और सभी श्रमिक संगठनों को समान अधिकार देना न केवल कानूनन आवश्यक है, बल्कि श्रमिकों के विश्वास और सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।
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