Upgrade Jharkhand News. चैम्पियंस ट्राफी में पाकिस्तान की हार से भारत में पटाखे फूटे और पाकिस्तान में टीवी टूटे और यह पहली बार नहीं हुआ, पाकिस्तान में तो अब यह परंपरा ही बन चुकी है। जैसे किसी ज़माने में विधवा होने पर चूड़ियां तोड़ी जाती थीं वैसे ही पाकिस्तान में टीवी तोड़ी जाती है।। टीवी बेकसूर है उसको तोड़ने के बजाय पाकिस्तान की टीम को अपनी इस हालत पर गौर करने की जरूरत है कि आखिर क्या कारण है कि एक जमाने में स्टेडियम में आतंक का पर्याय मानी जाने वाली टीम आज इस हालत में क्यों है? आज पाकिस्तानी टीम को टूर्नामेंट को सबसे जल्दी छोड़कर जाना पड़ता है। टीम के खिलाड़ी मेजबानों को सेवा का ज्यादा मौका ही नहीं देते। एक जमाने में पाकिस्तानी क्रिकेटर बिल्कुल भूखे भेड़िए की तरह विरोधियों पर टूटते थे। खासकर इमरान के ज़माने में यह समझना मुश्किल था कि वे खेल रहे हैं या युद्ध कर रहे हैं। उनकी किलर स्टिंकट इतनी बेरहम होती थी कि बल्लेबाज को घायल करना भी उनका एक रिवाज़ हो चुका था।
खासकर वह बल्लेबाज जो खतरा बन सकता था उसको यदि ईमानदारी से आउट नहीं कर पाते थे तो तेज बाउंसर से घायल करने की नीति अपनाई जाती थी। इसका शिकार भारत के विस्फोटक बल्लेबाज श्रीकांत और नए नवेले सचिन तेंदुलकर हो चुके थे। इसके अलावा पाकिस्तान की दूसरी रणनीति थी एम्पायर पर इतना दबाव डालना कि वह आसानी से उनके पक्ष में उंगली उठा दे। और जब यह रणनीतियां भी न चलें तो फील्ड के बाहर भी खिलाड़ियों पर पर्सनल मनोवैज्ञानिक अटैक करने पर आ जाते थे। असल में यही वे सारे कारण हैं जिसका नुकसान अब पाकिस्तान को उठाना पड़ रहा है। कल जो उनकी ताकत थी आज वही उनकी कमजोरी बन चुकी है इसलिए मुझे अब पाकिस्तानी टीम का कोई भविष्य भी नज़र आता नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि क्रिकेट के बदले हुए स्वरूप को पाकिस्तान समझ नहीं पाया। उसके साथ एडजस्ट करने के बजाए आज भी वे अस्सी नब्बे के दशक की नीति से खेलते हैं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि उनके फील्ड एम्पायर अब कमजोर हो चुके है, ज्यादातर निर्णय अब थर्ड एम्पायर करते हैं।
ईसाई एम्पायर पर दबाव डालने का कोई फायदा नहीं रहा, दूसरा अन्य देशों ने प्रैक्टिस का तरीका भी बदल दिया है।अब टीम में सिर्फ देशी स्टॉफ हो यह जरूरी नहीं ज्यादातर टीमों में सपोर्टिंग स्टाफ विदेशी होता है, कोच भी विदेशी होते हैं जबकि पाकिस्तान में विदेशी कोच सुरक्षित महसूस नहीं करते। खासकर बॉब ब्लूमर की हत्या के बाद कोई विदेशी पाकिस्तान जाता नहीं है और दिक्कत यह है कि यह सोच आज भी नहीं बदली। यही कारण है कि आज कोई भी टीम पाकिस्तान में खेलने को तैयार नहीं है। जब विदेशी टीम आपके घर में खेलने नहीं आती तो बोर्ड खोखला होने लगता है और आर्थिक तंगी भी आ जाती है,यह तंगी उनके खेल में दिखाई भी देती है। भारत ने इन सारी बातों पर काफी पहले से काम शुरू कर दिया था जिसके कारण आज भारत बहुत मजबूत है। यहां माधवराव सिंधिया और सौरव गांगुली ने जो सुधार शुरू किए उसके मुकाबले पाकिस्तान बहुत पिछड़ गया।
सिंधिया जी ने नब्बे के दशक में ही खिलाड़ियों की आर्थिक मजबूती पर काम शुरू कर दिया था और बाद में गांगुली ने टीम को स्किल बेस्ड कर दिया और खिलाड़ियों को लिबर्टी भी देने लगे जो पाकिस्तान के खिलाड़ियों को आज भी नहीं मिलती। अब पाकिस्तान को नए माहौल में ढलने की जरूरत है तभी वे अन्य टीमों से मुकाबला कर पाएंगे। इसके बाद भी पहले जैसी ताकत हासिल कर लें या भारत को पहले की तरह बार बार हरा सकें यह अब भी जरूरी नहीं है क्योंकि अब उनके पास पहले जैसे वसीम अकरम भी नहीं है। मुकेश कबीर
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