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Bhopal. व्यंग्य- पॉलिटिकल अरेस्ट में पब्लिक , Satire- Public under political arrest


Upgrade Jharkhand News. आजकल नये समय की नई शब्दावली चलन में है। टूल किट , पॉलिटिकल गैंगवार , डिजिटल अरेस्ट , मीडिया वार , सोशल हाईजेक , जैसे नये नये हिंग्लिश शब्द अखबारों में फ्रंट पेज हेड लाइंस बन रहे हैं। अब हर कुछ सबसे पहले और सबसे बड़ा होता है। छोटी से छोटी खबर भी ब्रेकिंग न्यूज होती है। सनसनी,झन्नाहट की डिमांड है। अब महोत्सव होते हैं,महा कुम्भ हुआ,महा जाम लगा। बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग , दसवीं फेल जामतारा गैंग के सामने ऐसे डिजिटल अरेस्ट हुये कि बिना कनपटी पर गन रखे ही करोड़ो गंवा बैठे। लोग अपने नाते रिश्तेदारों मित्रों के फोन भले इग्नोर कर जाते हों पर अनजान नंबर से आते फोन उठाकर मनी लांड्रिंग केस में फंसने के डर को इग्नोर नहीं कर पाते।  लोग न जाने किस अपराध बोध से ग्रस्त हैं कि वे जालसाजों के द्वारा ईजाद डिजिटल अरेस्ट जैसे सर्वथा ऐसे शब्द के फेर में उलझ जाते हैं ,जो दण्ड संहिता में है ही नहीं। 



विभिन्न वित्तीय संस्थान जाने कितने बड़े बड़े विज्ञापन देकर सचेत करें पर स्मार्ट फोन और लेपटॉप उपयोग करने वाले विद्वान उसे नहीं समझ पाते। लोगों की भय ग्रस्त मनोवृत्ति का दोहन जालसाज सहजता से कर लेते हैं। लोग घोटालेबाज़ के झांसे में फंसते चले जाते हैं और घूस देकर उस कथित डिजिटल अरेस्ट से मुक्त होना चाहते हैं। जैसे नमकीन के पैकेट से थोड़ा सा नमकीन खाकर यदि स्वाद जीभ पर लग जाये तो फिर डायटिंग के सारे नियम अपने आप किनारे हो जाते हैं और पैकेट खत्म होते तक चम्मच दर चम्मच नमकीन खत्म होता ही जाता है कुछ वैसे ही इन दिनों मोबाइल पर सर्फिंग करते हुये जाने अनजाने में टिक टॉक और रील्स में हम उलझ जाते हैं। समय का भान ही नहीं रहता । अच्छे भले चरित्रवान स्वयं वस्त्र उतारती रमणियों में रम जाते हैं । लिंक दर लिंक फेसबुक से इंस्टाग्राम यू ट्यूब तक मोबाइल चलता चला जाता है। कुछ इसी तरह सारी दुनिया में आम आदमी राजनेताओं के चंगुल में पॉलिटिकल अरेस्ट में हैं। आम और खास में अंतर की खाई हर जगह गहरी हैं। सरकारें उन्हीं आम लोगों से टैक्स वसूलती हैं जो उन्हें चुनकर खुद पर हुक्म चलाने के लिये कुर्सी पर बैठाते हैं। कम्युनिस्ट देशों में जनता का भरपूर शोषण कर देश का मुस्कराता चेहरा दुनिया को दिखाया जाता है। लोकतांत्रिक सत्ताओं में केपेटेलिस्ट पूंजीपतियों को सरकार का हिस्सा बनाया जा रहा है। इसका छीनकर उसको फ्री बीज के रूप में बांटा जाता है। धर्म के नाम पर , आतंक,माफिया अथवा सैन्य ताकत या मुफ्तखोरी के जरिये आम लोगों के वोट बैंक बनाये जाते हैं। ये वोट बैंक पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ते रहते हैं।



 जनता को कट्टरपंथ का नशा पिलाकर देश भक्त बनाये रखने में लीडर्स का भला छिपा होता है। अपोजीशन का काम जनता को बरगला कर यही सब खुद करने के लिये अपने लीडर्स देना होता है। पक्ष विपक्ष जनता की अपनी तरफ खींचातानी के लिये नित नये लुभावने स्लोगन , आकर्षक वादे , तरह तरह के जुमले , सुनहरे सपने , दिखाकर भ्रम का मकड़जाल बनाते नहीं थकते।  जनता की बुद्धि हाईजैक करना नेता भलिभांति जानते हैं। पब्लिक की नियति पॉलिटिकल अरेस्ट में  उलझे रहना ही है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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