Upgrade Jharkhand News. नारायण आईटीआई, लुपुंगडीह, चांडिल परिसर में आज हूल विद्रोह के महानायकों—अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो एवं अन्य वीर शहीदों और वीरांगनाओं के संघर्ष और बलिदान को स्मरण करते हुए हूल क्रांति दिवस पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे जी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि "30 जून 1855 को सिदो और कान्हू मुर्मू ने संथाल समाज को संगठित कर 10,000 से अधिक लोगों के साथ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन व शोषणकारी ज़मींदारी व्यवस्था के विरुद्ध क्रांति की घोषणा की थी। यह आंदोलन संथालों की जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए था और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली अध्याय बन गया।"
उन्होंने बताया कि यह विद्रोह वर्तमान झारखंड और बंगाल के बीरभूम, बांकुरा एवं पुरुलिया जैसे क्षेत्रों में फैला था। यद्यपि प्रारंभिक सफलता के बाद अंग्रेजों ने आधुनिक हथियारों और रणनीति से इस विद्रोह को दबा दिया, परंतु यह आंदोलन आज भी आदिवासी अस्मिता, आत्मगौरव और स्वतंत्रता का प्रतीक बना हुआ है। डॉ. पांडे ने यह भी उल्लेख किया कि भारतीय डाक विभाग ने 2002 में ₹4 का डाक टिकट जारी कर सिदो-कान्हू के बलिदान को अमर किया है। इनके नाम पर सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, रांची का स्मृति पार्क, और कोलकाता का सिदो-कान्हू दहर भी स्थापित हैं।
कार्यक्रम में संस्थान के विद्यार्थी, शिक्षक और गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। श्रद्धांजलि सभा में प्रमुख रूप से प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल, पवन महतो, शशि भूषण महतो, संजीत महतो, अजय मंडल, कृष्णा महतो, गौरव महतो आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन हूल विद्रोह के महानायकों के आदर्शों को आत्मसात करने और उनके बलिदान को स्मरण कर नई पीढ़ी में चेतना जागृत करने के संकल्प के साथ किया गया।
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