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Chaibasa. तीन दांतों वाली बच्ची की शादी 'जकड़ा' नामक कुत्ते से: आदिवासी परंपरा निभाने जुटा पूरा गांव, A girl with three teeth got married to a dog named 'Jakda': The whole village gathered to follow the tribal tradition


  • नोवामुंडी प्रखंड के गुवा थाना क्षेत्र अंतर्गत नुईया गांव की अनूठी परंपरा
  • तीन दांतों के साथ जन्मी बच्ची बनी 'तुलसी', आदिवासी रीति-रिवाज में हुआ कुत्ते से विवाह

Guwa (Sandeep Gupta) नोवामुंडी प्रखंड के गुवा थाना क्षेत्र स्थित नुईया गांव में एक अनोखी शादी चर्चा का विषय बन गई है। यहां रहने वाले मारकस कुंटिया की नवजात बच्ची का जन्म मुंह में तीन दांतों के साथ हुआ, जिसे स्थानीय आदिवासी समाज एक विशेष संकेत मानता है। परंपरा के अनुसार ऐसी संतानों का विवाह कुत्ते या कुतिया से कराना आवश्यक होता है, ताकि परिवार और गांव पर किसी तरह का दोष या संकट न आए।


परंपरा निभाने के लिए हुआ विवाह, बच्ची बनी 'तुलसी कुंटिया'- बच्ची का नामकरण 'तुलसी कुंटिया' किया गया। गांव के मुंडा (मुखिया) दुरसू चाम्पिया ने बताया कि ऐसी संतान को दोषयुक्त माना जाता है। यदि समय रहते उसका विवाह कुत्ते से नहीं कराया गया, तो भविष्य में बच्चे का विकास बाधित होता है और परिवार अशांति तथा बीमारियों से घिर जाता है।


कुत्ते का नामकरण 'जकड़ा', बना एक परिवार का दामाद-परंपरा अनुसार कुत्ते का नामकरण 'जकड़ा चाम्पिया' किया गया और उसे 'परिला चाम्पिया' परिवार ने गोद लिया। अब वह परिवार उसका ससुराल बना और पूरे विधिविधान के साथ बारात लेकर 'दुल्हन' तुलसी कुंटिया के घर पहुंचा। आदिवासी समाज की मान्यता के अनुसार यह विवाह उतने ही रीति-रिवाजों से होता है, जितना एक सामान्य विवाह।


ढोल-नगाड़े और आदिवासी नृत्य में डूबी रही बारात-शादी समारोह में गांव की महिलाओं, बच्चों और पुरुषों ने मिलकर पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किया। ढोल-नगाड़ों की थाप पर गांव का माहौल पूरी तरह शादी के रंग में रंगा नजर आया। बारातियों के स्वागत में भोज का आयोजन भी किया गया। सजी हुई थाली में पारंपरिक व्यंजन परोसे गए और अतिथियों का आदर-सत्कार किया गया।


आदिवासी संस्कृति की झलक: परंपराएं आज भी जीवित-यह अनोखी शादी न सिर्फ नुईया गांव की परंपराओं को दर्शाती है, बल्कि यह बताती है कि आज के आधुनिक युग में भी कुछ परंपराएं पूरी आस्था और विश्वास के साथ निभाई जा रही हैं। आदिवासी समुदाय के लोग इन रीति-रिवाजों को सामाजिक संतुलन और सांस्कृतिक सुरक्षा की दृष्टि से देखते हैं।


कौन-कौन रहे मौजूद?-इस मौके पर गांव के कई प्रमुख लोग उपस्थित थे, जिनमें मारकस कुंटिया, मेसली कुंटिया, लोदरी चाम्पिया, बारली चाम्पिया, मीनू चाम्पिया, सुमित्रा चाम्पिया, यशोदा बोयपाई, प्रधान बोयपाई, मंगल बोयपाई, मेसमी कुंटिया, नन्दी चाम्पिया, सुनीता चाम्पिया सहित अनेक ग्रामीण शामिल थे।


क्या है मान्यता?-गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यदि तीन दांतों के साथ जन्मे बच्चे का विवाह कुत्ते से नहीं कराया जाए, तो न केवल बच्चे का विकास प्रभावित होता है, बल्कि घर में दरिद्रता, बीमारी और संकट का वास होता है। यही कारण है कि समाज इन परंपराओं को आज भी आदरपूर्वक निभाता है।


निष्कर्ष-नुईया गांव की यह अनोखी परंपरा एक ओर जहां हैरानी पैदा करती है, वहीं दूसरी ओर यह भी दर्शाती है कि समाज में मान्यताओं और सांस्कृतिक मूल्यों को कितनी गहराई से जिया जाता है। चाहे वह आधुनिकता का दौर हो या डिजिटल युग, कुछ परंपराएं अपनी जगह आज भी कायम हैं।



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