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Bhopal. लॉर्ड जीसस के सच्चे शिष्य थे पोप फ्रांसिस, Pope Francis was a true disciple of Lord Jesus


Upgrade Jharkhand News.  पोप फ्रांसिस को न मैंने कभी देखा और न मिला लेकिन टेलीविजन के पर्दे पर वे जब भी दिखे एक आकर्षक धार्मिक नेता की तरह ही नजर आये ।  उनके चेहरे से दया,करुणा ही झलकती दिखाई दी,उन्हें कभी उत्तेजित होते हुए नहीं देखा गया। पोप फ्रांसिस रोमन  कैथोलिक ईसाई समाज के सबसे बड़े धार्मिक गुरु थे। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक पोप फ्रांसिस रोमन कैथोलिक समुदाय के 266  वे और  सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट ऑर्डर) के पहले पोप थे, दक्षिणी अमेरिका से पहले पोप थे, तथा 8वीं शताब्दी के सीरियाई पोप ग्रेगरी तृतीय  के बाद यूरोप के बाहर जन्मे या पले-बढ़े दूसरे पोप थे। अर्जेंटीना के बोनस आइरिस में जन्में पोप फ्रांसिस की भी ईश्वर में आस्था एक बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद बढ़ी ।  ये बात 1958  की है। वे 1969  में पहली बार पादरी बने और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पोप फ्रांसिस 2013  में तत्कालीन पोप के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी बनाये गए। आप जानते ही हैं कि  पोप की हैसियत सिर्फ एक धार्मिक नेता की ही नहीं होती बल्कि वे विश्व राजनीति में एक कूटनीतिज्ञ की तरह भी किरदार अदा करते है।  पोप फ्रांसिस प्रगतिशील और दक्षिणपंथ विरोधी नेता के रूप में उभरे । उन्होंने अनेक विवादास्पद रिश्तों और प्रवासियों के मुद्दों पर चीन जैसे देशों से मुठभेड़ की। पोप फ्रांसिस हमेशा प्रवासियों के हितों की रक्षा को सभ्य समाज का कर्तव्य मानते थे । उन्होंने इस मुद्दे पर अमरीकी नीतियों का भी विरोध किया।



मुझे लगता है कि  पोप  फ़्रांसिस का पूरा जीवन लॉर्ड और चर्च की सेवा में समर्पित रहा।  पोप फ्रांसिस ने दुनिया को हमेशा साहस, प्यार और हाशिए के लोगों के पक्ष में खड़ा रहने के लिए प्रेरित किया।  एक मायने में कहें तो पोप फ़्रांसिस लॉर्ड जीसस के सच्चे शिष्य थे। पोप फ्रांसिस को कैथोलिक चर्चों में सुधार के लिए भी जाना जाता है। इसके बावजूद पोप परंपरावादियों के बीच भी लोकप्रिय थे। फ्रांसिस दक्षिण अमेरिका (अर्जेंटीना) से बनने वाले पहले पोप थे। पोप फ़्रांसिस ईस्टर संडे को ही वेटिकन में सेंट पीटर्स स्क्वेयर पर अपने भक्तों के सामने प्रकट हुए हुए थे। पोप फ्रांसिस  को मैं कोरा धार्मिक नेता नहीं मानता क्योंकि   चुनाव के दौरान उन्हें रूढ़िवादियों और सुधारकों  दोनों का  जबरदस्त समर्थन मिला।  पोप ने आलोचनाओं की परवाह  किये बिना   यौन मामलों में रूढ़िवादी और सामाजिक मामलों में उदारता दिखाई । पोप को उनके समर्थक उन्हें लोगों से जुड़ने, क्यूरिया (वेटिकन नौकरशाही) में सुधार लाने, वेटिकन बैंक में भ्रष्टाचार को समाप्त करने और चर्च में बाल यौन शोषण रोकने के संकल्प के कारण खासा पसंद करते थे। पोप बनने के चार साल बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पोप की लोकप्रियता कैथोलिक और अन्य धर्मों के बीच बहुत ज़्यादा है। सोशल मीडिया एक्स पर उन्हें डेढ़ करोड़ से भी ज़्यादा लोग फ़ॉलो करते हैं।  कई मुद्दों पर सीधा दखल न देने के कारण वेटिकन के अंदर और बाहर उनके विरोधियों की संख्या भी काफी रही।



आप माने या न मानें किन्तु मुझे पोप फ्रांसिस हमेशा गांधीवादी लगे ।  उनका जीवन सादा और उच्च विचारों का था। एक बार की बात है कि  पोप फ्रांसिस वेटिकन लौटते समय इतालवी राजधानी के मध्य में पादरी वर्ग के लिए बने एक होटल में रुके ।  ये होटल पोप के लिए निशुल्क था  किन्तु उन्होंने अपना बिल चुकाने पर ज़ोर दिया, इससे उनकी शैली की छाप पोप पद पर तुरंत पड़ गई। पोप ने उस विशाल पेंटहाउस अपार्टमेंट को त्याग दिया, जिसे पोप कई शताब्दियों से इस्तेमाल कर रहे थे।  वह वेटिकन गेस्टहाउस के एक छोटे से सुइट में रहने लगे। पोप फ्रांसिस ने  पोप के ग्रीष्मकालीन निवास कासल गंडोल्फो को भी त्याग दिया था। पोप फ्रांसिस मुझे इसलिए भी आकर्षित करते रहे क्योंकि वे कोरे धार्मिक भाषणों  तक ही सीमित  नहीं रहे ।  उन्होंने सामाजिक सरोकारों को भी रेखांकित किया। उन्होंने मुक्त बाजार अर्थशास्त्र पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि चर्च को समलैंगिक लोगों के लिए राय बनाने के बजाय उनसे माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने अन्य बातों के अलावा यूरोपीय प्रवासी हिरासत केंद्रों की तुलना नज़रबंदी शिविरों से की।  कभी-कभी पोप फ्रांसिस की झलक मुझे भारत की द्वारिकापीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरूपानद जी और उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानद में भी दिखाई देती है।



पोप फ्रांसिस इस साल 2025 के बाद भारत दौरे पर आने वाले थे।  इसके लिए भारत की तरफ से पोप फ्रांसिस को आधिकारिक तौर पर निमंत्रण दिया जा चुका था,लेकिन भारत यात्रा से पहले ही वे अनंत यात्रा पर निकल गए। पोप फ्रांसिस भारतीय संत परम्परा से भी खासे प्रभावित थे ।  उन्होंने पिछले साल  संत श्री नारायण गुरु की खुलकर प्रशंसा की थी। । पोप फ्रांसिस ने तब कहा था कि संत नारायण गुरु का सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज बहुत प्रासंगिक है ,क्योंकि दुनिया में हर तरफ और हर जगह नफरत बढ़ रही है। पोप ने ये बातें तब कहीं थीं, जब केरल के एर्नाकुलम जिले के अलुवा में श्री नारायण गुरु के सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के मौके पर धर्मगुरुओं का सम्मेलन  हुआ था। पोप ने तब वेटिकन में भी जुटे धर्मगुरुओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए ये बातें कही थीं। मानवता के इस महान प्रहरी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। राकेश अचल



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