Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal. व्यंग्य-नारी शक्ति का कमाल, Satire-The wonder of women power

Upgrade Jharkhand News. आजकल समाचारों  की हेडलाइन्स बन रही हैं  "पत्नी ने पति को उतार दिया मौत के घाट!", "डीजीपी की हत्या में पत्नी गिरफ्तार!", "मेरठ में पत्नी का पति-वध!", दो बच्चों  की मां प्रेमी के लिए भागी पाकिस्तान,  ओ माई गॉड! , ये नारी शक्ति का कमाल है या महिला मुक्ति का नमूना? पुराने जमाने में पति की चिता पर सती होने वाली स्त्रियों को "पतिव्रता" का  ताज पहनाया जाता था, आज नए युग में पति को ही चिता बनाने वाली "प्रगतिशील" पत्नियों को "क्रिमिनल" का टैग मिल रहा है। समय बदल गया... पर सवाल यह है कि बदलाव की यह हवा कहाँ से आई? सोशल मीडिया से ? जाहिर है, किसी सीमा तक "महिला मुक्ति" के नाम पर चल रही इस नई लहर को गलत तरीके से समझने के दुष्परिणाम हैं! पिछले जमाने में प्रेम की मिसाल वह स्त्री होती थी जो पति के मरते ही खुद को अग्नि में झोंक देती थी , जिन्दगी भर वह खुद को पल पल मारकर पति को संवारती सहेजती थी , अति ही थी । हर पुरुष की सफलता के पीछे स्त्री के न दिखने वाले समर्पण के हाथ होते थे । समाज सती को फूलमालाओं से पूजता था, कहते थे- "धन्य है यह सतीत्व!" पर सच तो यह था कि उस "सतीत्व" के नाम पर स्त्री को जिंदा जलाया जाता था। प्रेम का मापदंड था- "मर जाओ, पर पति के बिना जीना नहीं!" पराकाष्ठा  तक स्त्री शोषण हुआ,यह सच है। पर नए जमाने में प्रेम की परिभाषा बदल गई हैं, अब दैहिक प्रेम बलवती हो चला है। पत्नी "जीने" की आजादी माँगती है... और  पति समझौता न करे, तो "आजादी" का अर्थ बन जाता है — "तुम मरो, हम जिएँ!"  



लोग कहते हैं "अब औरतें पढ़-लिख गई हैं, इसलिए पति की हत्या कर रही हैं।" कुतर्क ही है ! पहले पति की मौत पर पत्नी जलती थी, अब पत्नी के हाथों पति मरता है। जान से नहीं मारने वाली भी,कई पत्नियां तानों से हर पल मार रही हैं। इसे "समानता का अधिकार" कहें ? सच यह है कि जिन मामलों में पत्नियाँ हिंसक हो रही हैं, उनके पीछे अक्सर वर्षों का शोषण, घरेलू हिंसा, या पति का अपराधी रवैया होता है। लेकिन समाचार तो "सुखद अंत" वाली कहानियाँ पसंद करते है , या सनसनी वाले मर्डर। असल में, समस्या "महिला मुक्ति" नहीं, बल्कि समाज की वह मानसिकता है जो स्त्री को या तो "देवी" बनाकर पूजती है या "डायन" बनाकर कोसती है। पहले पति के मरने पर पत्नी को ढोल के  शोर में जला कर सती बनाया जाता था । आज पत्नी पति को मार कर "अपराधी" बन रही है।  सवाल यह है कि उन कारणों को समझने की कोशिश समाज कब करेगा जो  स्त्री को इन हदों तक  ले जाते हैं? स्त्री तब  "अग्नि" में जल रही थी, आज "मीडिया ट्रायल" में जल रही है । महिला मुक्ति को हिंसा से जोड़ती व्याख्या कुत्सित हैं ।  समानता और न्याय की सामाजिक समझ में ही पुरुष और स्त्री दोनों के हित निहित हैं । किन्तु यह समझ विकसित होते तक पापा की परी पत्नियों की मुक्ति पतियों की जान पर आन पड़ी है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template