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Bhopal. दृष्टिकोण-व्यवस्था सुधार का अगला पड़ाव-समान नागरिक संहिता, Viewpoint-Next step of system reform- Uniform Civil Code


Upgrade Jharkhand News. किसी भी देश की आंतरिक व्यवस्था देश के दिशा प्रदाताओं के चिंतन एवं दायित्व निर्वहन का विषय है। देश के नागरिकों का न्याय, समता, समानता, सहयोग, समर्पण जैसे मूल्यों को अपनाए बिना जब किसी घर के व्यवस्थित संचालन की कल्पना नही की जा सकती, तब किसी बड़ी आबादी वाले देश के व्यवस्थित संचालन की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है। विश्व पटल पर जहां-जहां लोकतंत्र स्थापित है, वहां वहां समान नागरिक मूल्यों के आधार पर जनमानस को नागरिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, न किसी को किसी से कम, न किसी को किसी से ज्यादा। नागरिक अधिकारों में भाई भतीजावाद, रिश्तों या धर्माधारित अधिकारों का कोई स्थान नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में भावनाओं का नहीं, अपितु नीतियों का बोलबाला होता है। नीतियां बहुमत पर निर्धारित की जाती हैं, जो देश की दिशा और दशा को प्रभावित करती हैं।



इतिहास साक्षी है कि भारत में लम्बे समय तक विभिन्न गठबंधन सरकारों में पर्याप्त संख्या बल न होने के कारण अनेक सुधारात्मक प्रयास निष्फल हुए हैं, जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा है। वक्फ संशोधन विधेयक पर जिस प्रकार से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने कड़े मंथन के उपरांत जनप्रतिनिधियों का समर्थन जुटाया तथा संसद के दोनों सदनों में संशोधन विधेयक को पारित कराकर लागू कराया, उससे स्पष्ट हो गया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि निरपेक्ष भावना से सुधार का संकल्प लिया जाए, तो संकल्प पूरा होता ही है। इससे पूर्व चाहे कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति का विषय रहा हो या नागरिकता संशोधन अधिनियम, देश की संसद ने राष्ट्रहित में जन आकांक्षाओं को पूर्ण किया है। ऐसे में दलगत एवं विरोध के लिए विरोध की राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधियों की समझ पर तरस आता है, कि जनहित के मुद्दों पर भी वे अपने चिंतन का दायरा व्यापक करने से क्यों कतराते हैं।



किसी भी पंथ निरपेक्ष राष्ट्र में सबका साथ और सबका विकास की अवधारणा में समता, न्याय, पारदर्शिता, समान नीतियों का अनुपालन जैसे मूल्यों पर आधारित व्यवस्था अनिवार्य होती है तथा किसी भी पंथ विशेष को किसी दूसरे पंथ के अधिकारों से इतर अतिरिक्त सुविधाएं और विशेष अधिकार नहीं दिए जा सकते, फिर भी वक्फ जैसे विवादित मुद्दे पर दलगत राजनीति के चलते सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन की घटनाएं लोकतंत्र को कलंकित किये जाने की श्रेणी में आती हैं। इसमें संदेह नहीं, कि वैश्विक एवं आंतरिक अवरोधों के चलते भी देश सुधार की ओर अग्रसर है, आम आदमी के लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दे रही है तथा सत्ता पक्ष पूर्व घोषित संकल्पों को पूरा करने की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसे में आवश्यकता यही है कि देश, काल और परिस्थिति के अनुसार समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून तथा नागरिकता पंजीयन जैसे कानून बनाकर स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। डॉ. सुधाकर आशावादी



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