Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal. दृष्टिकोण -भाषा विवाद का समाधान : एक देश एक संपर्क भाषा, Approach - Solution to Language Dispute: One Country One Contact Language


Upgrade Jharkhand News. भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख आधार है। खग ही जाने खग की भाषा का राग पुराना है। अब नया जमाना है। अभिव्यक्ति का प्रगटीकरण करने वाली भाषा भी क्षेत्रवाद की शिकार होने लगी है। यदि ऐसा न होता, तो कर्नाटक के भारतीय स्टेट बैंक की महिला प्रबंधक के कन्नड़ भाषा न बोलने पर विवाद न हुआ होता। कर्नाटक के बेंगलुरु में महिला प्रबंधक का तबादला इसलिए किया गया, कि वह भारतीय होने के नाते हिंदी में बात कर रही थी। बहरहाल यह प्रशासनिक व्यवस्था का विषय है, कि बैंक प्रशासन अपनी शाखाओं में अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति किस आधार पर करता है। मुख्य पटल पर किस भाषा के जानकार कर्मचारियों को नियुक्त करता है तथा प्रशासनिक पदों पर किसे बैंक शाखा में भेजता है। भारत को जानो नीति के तहत अनेक बरसों से दक्षिण भारतीयों को उत्तर क्षेत्र में तथा उत्तर भारतीयों को दक्षिणी क्षेत्रों में कुछ वर्षों के लिए नियुक्त करने की नीति अपनाई जा रही है, जिसे किसी भी स्थिति में अनुचित नहीं कहा जा सकता। ऐसे में बैंक अधिकारियों के सम्मुख भाषा का संकट स्वाभाविक ही है। दक्षिण भारतीय बैंक अधिकारी हिंदी भाषा भाषी क्षेत्रों में स्वयं को असहज अनुभव करते ही हैं तथा अंग्रेजी के माध्यम से किसी हिंदीभाषी कर्मचारी को दुभाषिया बनाकर अपना अल्प कार्यकाल पूरा करते रहे हैं। परिस्थितियाँ व्यक्ति को देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप समायोजन हेतु विवश करती हैं। सुदूर क्षेत्रों में कार्य करने वाले अधिकारीगण धीरे धीरे व्यवहार में आने वाली भाषा को समझने लगते हैं। 



ऐसे में क्षेत्रीय भाषा न बोलने को विवाद का आधार बना लेना किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा क्षेत्र विशेष के लिए तो व्यवहारिक एवं कारगर है, किन्तु राष्ट्र के पटल पर अथवा अंतर्राष्ट्रीय पटल पर क्षेत्रीय भाषा प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकती। यदि कर्नाटक में हिंदी बोलने के मामले को तूल देकर भाषाई विवाद को बढ़ावा दिया जाता है, तो इससे बड़ा निंदनीय कृत्य कोई और नहीं हो सकता। कारण स्पष्ट है, कि यह मामला केवल बैंक तक सीमित नहीं है। देश में हिंदी, उर्दू,  संस्कृत, असमिया, बोडो, डोगरी, नेपाली, मैथिली, मलियालम, मणिपुरी, तेलगू, उड़िया, मराठी, गुरमुखी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकण,  बंगाली, गुजराती, मलियाली, आदि अनेक भाषाएँ हैं। सार्वजनिक क्षेत्रों में जरुरी नहीं, कि प्रत्येक कर्मचारी या अधिकारी को अपनी मातृभाषा के समान ही अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान हो। व्यक्ति का कौशल केवल भाषाई जानकारी तक सीमित नहीं रहता। यह व्यवस्था तो संभव है कि जहाँ क्षेत्रीय जनता से संवाद अनिवार्य होम उस पटल पर क्षेत्रीय भाषा के जानकार को ही वरीयता दी जाए, किन्तु भाषा को  आधार बनाकर विवाद उत्पन्न किया जाए यह उचित नहीं है। मेरा मानना है कि समय समय पर भाषा के नाम पर किये जाने वाले विवाद वास्तविक कम तथा राजनीतिक अधिक होते हैं। व्यापारिक लेनदेन में किसी भी प्रदेश में भाषा आड़े नहीं आती। ऐसे में अनिवार्य है कि क्षेत्रीय भाषा भले ही कोई भी हो, किन्तु राष्ट्र की संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को ही महत्व दिया जाए, ताकि क्षेत्रीय भाषा तथा संपर्क भाषा में किसी भी प्रकार से टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो। डॉ. सुधाकर आशावादी



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template