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पहले घर में बड़ी बड़ी टंकियाँ लाते थे
उनमें साल भर की जरूरत हिसाब से
गेहूं, चावल, मोटा अनाज भरवाते थे।
संयुक्त परिवार सांझा चूल्हा जलता था
हंसी ख़ुशी परिवार का गुजारा चलता था।
अब घर परिवार बंट गए
रिश्ते भौतिक संबंधों तक सिमट गए।
पहले पड़ोसी भी परिजन जैसे लगते थे
अब परिजन भी पड़ोसी से लगते हैं।
टंकियाँ अपनी अहमियत खो चुकी हैं
इसलिए घरों से लापता ही चुकी हैं।
अब मोटे अनाज की जगह
आवश्यकता के अनुसार आटा घर में आता है
उसी से महीने भर की रोटी का
प्रबंध किया जाता है।
पहले की तरह माँ अब प्यार से रोटियां नहीं बनाती
सिर्फ़ ख़ानापूर्ति करके काम हैं निपटाती ।
रोटियां बनाने से पहले भूख का हिसाब लगाती है
रोटियां गिनकर बनाती है।
इतनी आ गई गई है आत्मीय रिश्तों में खटास
पति पत्नी का आत्मीय रिश्ता भी
नही लगता समर्पित और ख़ास।
इतनी कमजोर हो गई है विश्वास की डोर
एक दूजे के प्रति संदेह का न कोई ओर छोर।
सात फेरों के बंधन में बंधा दाम्पत्य भी
एक दूजे पर विश्वास करने से कतराता है
शक और संदेह में कुछ समझ नही पाता है
स्थिति हो गई है इतनी विकट
कि पति पत्नी को सपने में भी दिखता है
अपने प्राणों पर मंडराता हुआ संकट।
अविश्वास से घिरा दाम्पत्य
सुख चैन की नींद नही ले पाता है ।
एक दूसरे के प्रति संदेह की बढ़ जाती है खाई
लगता है कि जैसे उसके जीवन पर शामत है आई।
सो मृत्यु संकट से बचने का एक ही उपाय है
आसन्न मृत्यु से बचने हेतु सावधानी बचाव है।
सो ज़िंदगी में सकारात्मक रुख़ अपनाए
सावधानी से अपना जीवन दीर्घ बनाएँ ।
किसी नीले ड्रम को देखते ही सतर्क हो जाएँ
फ्रिज भी आदम क़द जैसा बड़ा न लाएँ
दवा डाक्टर की सलाह के बिना न खाएँ
घर में किसी भी हथियार का प्रवेश न कराएँ।
सच है कि जान है तो जहान है
रिश्तों में आत्मीयता बनी रहे
यही स्वस्थ दाम्पत्य जीवन की
परम्परागत पहचान है ॥
सुधाकर आशावादी
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