Upgrade Jharkhand News. भारत की सैन्य क्षमता को किसी भी स्थिति में कमतर नही आंका जा सकता। यदि सेना अपनी पर आ जाए, तो शत्रुओं को उनके घर में घुसकर ही ढेर कर सकती है, किंतु अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के नियमों तथा अपने ही देश में दोहरी सोच रखने वाले आतंकियों के समर्थकों की अराजक गतिविधियों और सत्ता की कूटनीतिक मजबूरियों के कारण सेना भी लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान के प्रति समर्पित रहती है। भारत ने जिस प्रकार से नौ आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया है, उससे पाकिस्तान एवं उसके समर्थकों को स्पष्ट संदेश मिल जाना चाहिए, कि भारत की सेना शत्रुओं को उनकी मांद में घुसकर मारने में सक्षम है तथा प्रत्यक्ष युद्ध किसी समस्या का स्थाई समाधान नहीं होता । कश्मीर के पहलगाम में धर्म पूछकर सैलानियों की हत्या करने वाले आतंकियों ने कभी स्वप्न में भी नही विचारा होगा, कि उनके जघन्य कुकृत्यों का परिणाम उन्हें उनके सर्वनाश के रूप में भुगतना पड़ेगा। इस ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने देश के भीतर पल रहे शत्रु समर्थकों की भी नींद हराम कर दी, जो भारत के शीर्ष नेतृत्व की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाने से बाज नही आ रहे थे। कुछ तो भारत के लड़ाकू विमानों का उपहास उड़ाकर अपने सत्ता विरोधी विमर्श का परिचय देने में भी संकोच नही कर रहे थे।
कुछ ने तो पहलगाम के आतंकी हमले पर भी संदेह व्यक्त किया था। देश का दुर्भाग्य यही है कि देश में राष्ट्र विरोधी तत्वों की कमी नही है, जो शत्रुओं के लिए देश विरोधी कृत्यों को अंजाम देते रहते हैं। कभी गुप्त सूचनाएँ शत्रुओं को उपलब्ध कराते हैं, कभी शत्रु देश के आतंकियों को पनाह देने में पीछे नहीं रहते। अनेक अवसरों पर शत्रुओं के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही, बाला कोट स्ट्राइक, अन्य हमलों के सबूत माँगने वाले तथा हर सुरक्षात्मक ऑपरेशन पर अंगुली उठाने वाले लोगों के सुर यकायक बदल गए हैं। यदि ये सुर उनके अंतर्मन से बदले है, तो देश के लिए सुखद संकेत है। यहाँ यह समझना भी अनिवार्य है कि राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा यदि चाक चौबंद होगी, तभी राष्ट्र सुरक्षित रह सकेगा। सो अनिवार्य यही है कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रह त्याग कर राष्ट्रीय मुद्दों पर सभी राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहें। यही नही राष्ट्र की एकता व अखंडता के विरोध में जो भी आवाज़ उठे, उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही अपेक्षित है। डॉ. सुधाकर आशावादी
No comments:
Post a Comment