Upgrade Jharkhand News. देश में बेरोज़गारी एक विकट समस्या है। इस समस्या को मुद्दा बनाकर सरकारें बदल दी जाती हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी रहती है। मजबूरी में बेरोज़गार स्वरोज़गार अपनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुछ यू ट्यूब चैनल बनाकर अपने चेहरे के कई मुखौटे दिखा रहे हैं और कुछ अपने आप को सिद्ध पुरुष बताकर लोगों के चेहरे पढ़ रहे हैं तथा आम आदमी के मनोविज्ञान की व्याख्या कर रहे हैं। जिसमें जितना कौशल है, वह अपने कौशल का भरपूर लाभ उठा रहा है और अपने और अपने परिवार के पेट की भूख मिटा रहा है। यही जीवन का सच है कि परिवार चलाने के लिए लोग भूल जाते हैं छकड़ी, उसे केवल याद रहती है नून, तेल लकड़ी। अब ऐसे ही किसी धंधे की चर्चा करें, जो बारह महीने चलता है। कभी मंदा नही पड़ता।
हींग लगे न फिटकरी सिर्फ नाटक का है खेल, जब बाबागिरी का धंधा चले, अन्य धंधे सब फेल, यह उक्ति यूँ ही नहीं बनी है। यह उनके लिए बनी है, जिन्हें लोगों को भ्रमित करने की कला आती है। जिनकी कला के मायाजाल में फंसकर व्यक्ति अपने घर परिवार का मोह छोड़कर उन्हीं की शरण में चला जाता है। महिलाएं अपने पति और बच्चों का मोह छोड़कर उनके आँगन में सफाई करने को प्राथमिकता देने लगती हैं। बाबा ऐसा शब्द है, जिसका स्मरण करते ही धीर गम्भीर एवं अनुभवी चेहरा आँखों में उभर आता है। परिवार के मुखिया को भी बाबा की संज्ञा दी जाती है और सत्संग में प्रवचन करने वाले को भी। आजकल बाबा न पांच सितारा होटल की तरह विलासिता पूर्ण सुख सुविधाओं से सुसज्जित आश्रमों में निवास करने लगे हैं तथा लग्जरी वाहनों के काफिले संग चलने लगे हैं। बाबाओं के ठाठ बाट देखकर बाबा बनने की ओर भला कौन नही बढ़ना चाहेगा । सो यह धंधा आजकल अधिक डिमांड में है। इसके लिए बाबा को आडम्बर रचाना पड़ता है। गेरुआ वस्त्र धारण करना और लम्बी दाढ़ी बढ़ाना अब बाबा के ड्रेस कोड का हिस्सा नहीं रहा । बाबा सफ़ारी सूट या शर्ट पैंट या किसी भी प्रकार के परिधान धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं। इतना अवश्य है कि झूठ और चमत्कार की अफ़वाह फैलाकर बाबा को मनोकामना पूर्ण करने वाला चमत्कारी पुरुष दर्शाना पड़ता है। कभी हाथ में सुदर्शन चक्र की तरह का चक्र दिखाना पड़ता है। कभी बाबा की चरण रज में असाध्य रोग दूर करने की शक्ति का बोध कराना पड़ता है। ऐसे में बाबा के दिहाड़ी पर रखे गए चेलों की ख़ास भूमिका होती है। यही चेले बाबा के चमत्कारों का महिमा मंडन करते हैं। इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य नुस्खे आजमाने पड़ते हैं, तब कहीं एक अदद बाबा का निर्माण होता है।
नित नए बाबाओं के क़िस्से प्रकाश में आते हैं, लेकिन बाबाओं के मायाजाल की कहानियाँ उस समय अधिक विस्तार पाती हैं, जब किसी बाबा के प्रवचन में कोई घटना दुर्घटना हो जाए। किसी बाबा के चरित्र पर उंगली उठाई जाए, बाबा के फर्जी चमत्कारों की पोल खोली जाए, अन्यथा जब तक बाबा पर कोई आरोप न लगे, बाबा के प्रवचन के बाद अंध भीड़ बाबा की चरण रज लेने की चाह में बाबा के अन्य भक्तों के पैरों तले न रौंदी जाए, तब तक बाबा का राज खुलता ही नही। जब तक बाबा का राज पाश न हो, तब तक बाबा के वैभव में कोई कमी नहीं आती। एक छिपा रहस्य यह भी है, कि बाबा अपने बारे में अधिक नही बोलता, बाबा की महिमा का बखान कुछ विशेष भक्त करते हैं। बाबा केवल गारंटी देता है, बाबा गारंटी कार्ड नहीं बाँटता, बाबा स्वयं को परमात्मा का रूप बताता है। ऐसा कहकर वह झूठ नहीं बोलता, क्योंकि संसार में सभी स्वयं को परमात्मा का अंश कहते हैं। बाबा चमत्कार करने का दिखावा करता है। बाबा के आश्रम में जमीन से पानी निकालने वाले नल जल नही, अपितु औषधि युक्त अमृत उगलते हैं। यह बाबा नहीं कहता, उसके भक्त कहते हैं। बाबा के चमत्कारों का बखान बाबा की विश्वसनीयता में चार चाँद लगाना है। बाबा बनना इतना आसान भी नहीं है, जितना समझा जाता है। एक लम्बी साधना धैर्य एवं सोची समझी योजना से ही बाबा रूपी आकर्षण उत्पन्न किया जा सकता है। विश्वासपात्र शिष्यों का बाबा को बाबा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान अपेक्षित होता है।
बनने के अचूक नुस्खों का अध्ययन करें, तो सर्वप्रथम बाबा में वाकपटुता का गुण होना आवश्यक है, कि सामने वाले की जिज्ञासाओं को कैसे शांत करना है, फिर उसे ऐसे चमत्कार दिखाने जरूरी हैं कि उसमें किसी दैवीय शक्ति का वास है। जिससे वह किसी की पीड़ा हर सकता है। उसे अभय मुद्रा में रहने का अभ्यास हो, ताकि वह अधिक समय तक भक्तों को आशीर्वाद देता रहे। उसे बार बार गारंटी देने की आदत होनी चाहिए। उसकी गारंटी भले ही यथार्थ में झूठी निकलें, लेकिन उसके भक्त उन गारंटियों के सही सिद्ध होने का प्रचार निरंतर करते रहें, क्योंकि सौ बार बोला जाने वाला झूठ भी सत्य प्रतीत होने लगता है। जब अफवाहें फैलाकर शीर्ष सत्ता की ओर कदम बढ़ाए जा सकते हैं, तो फर्जी गारंटी और चमत्कारों की अफवाह फैलाकर बाबागिरी के धंधे में सफल क्यों नहीं हुआ जा सकता। सुधाकर आशावादी
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