Upgrade Jharkhand News. पहलगाव हमले के बाद, ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर घोषित होने के दौरान जो शब्दों के, तस्वीरों के और वीडियो रील्स केे हमले सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चल रहे हैं,उनको देख कर कई बार लगता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध को सोशल मीडिया पर चल रहे वैचारिक युद्ध ने और अधिक तनाव वाली स्थिति में ला दिया और अधिक जटिल व खतरनाक बना दिया है। सोशल मीडिया, जो एक ओर सूचना और विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है, वहीं दूसरी ओर यह अनियंत्रित होने पर गलत सूचना, नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने का जरिया बन रहा है। भारत-पाक तनाव के दौरान, सोशल मीडिया का अनियंत्रित उपयोग न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा रहा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत जीवन पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
सोशल मीडिया ने पिछले दो दशकों में भारतीय समाज सहित पूरे विश्व को पूरी तरह से बदल दिया है। फेसबुक, ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स ने लोगों को एक-दूसरे से जोड़ा है और सूचनाओं को तुरंत साझा करने की सुविधा प्रदान की है। भारत में, जहां इंटरनेट की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल चुकी है, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2025 तक, भारत में लगभग 900 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जिनमें से अधिकांश सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण कश्मीर विवाद, आतंकवाद, और सीमा पर गोलीबारी, इन मुद्दों पर दोनों देशों की सरकारें और नागरिक अपने-अपने दृष्टिकोण रखते हैं। सोशल मीडिया ने इन दृष्टिकोणों को व्यक्त करने का एक खुला मंच प्रदान किया है, लेकिन यह मंच अकसर अनियंत्रित और गैर- जिम्मेदाराना तरीके से उपयोग किया जाता है।
तनाव के दौरान, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं तेजी से फैलती हैं। पहलगाम हमले के बाद से दोनों देशों में सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो, तस्वीरें और खबरें वायरल हुईं, जिनमें से कई का उद्देश्य लोगों को भड़काना था। ऐसी सामग्री न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाती है, बल्कि आम लोगों में डर और अविश्वास का माहौल भी पैदा करती है। सोशल मीडिया पर कुछ उपयोगकर्ता एक-दूसरे के खिलाफ नफरत भरे भाषण और अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं। यह न केवल सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि दोनों देशों के बीच शत्रुता को और बढ़ाता है। कुछ लोग सोशल मीडिया का उपयोग प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए करते हैं। कुछ समूह और संगठन सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री साझा करते हैं जो उनके अपने एजेंडे को बढ़ावा देती है। इसके अलावा, साइबर युद्ध के रूप में हैकिंग, फर्जी अकाउंट्स और ट्रोलिंग भी आम हो गया है। सोशल मीडिया पर भड़काऊ सामग्री कभी-कभी वास्तविक हिंसा को जन्म देती है। भारत में, कुछ मामलों में सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों के कारण सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। सोशल मीडिया पर फैली गलत सूचनाओं ने हिंसक प्रदर्शनों को हवा दी है।
भारत बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक समाज हैं। सोशल मीडिया पर फैलने वाली नफरत भरी सामग्री इन समाजों में सांप्रदायिक और धार्मिक तनाव को बढ़ा रही है। भारत में समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत भरे भाषणों का बढ़ना चिंता का विषय बन गया है। कई बार गलत सूचनाएं और प्रोपेगेंडा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर देते हैं। सीमा पर तनाव के दौरान फैलाई गई फर्जी खबरें सैन्य रणनीतियों को प्रभावित कर सकती हैं या जनता में घबराहट पैदा कर रही हैं। सोशल मीडिया पर लगातार नकारात्मक और भड़काऊ सामग्री का सामना करने से लोगों में तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ रहा है। विशेष रूप से युवा, जो सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं, इस तरह की सामग्री से आसानी से प्रभावित हो रहे हैं। अनियंत्रित सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए । इनमें सरकारी नीतियां, तकनीकी समाधान और सामाजिक जागरूकता शामिल हैं। सोशल मीडिया पर गलत सूचना और नफरत भरे भाषण को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानून लागू करने की आवश्यकता है। भारत में पहले से ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत कुछ प्रावधान हैं, लेकिन इनको और प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को जवाबदेह बनाना जरूरी है। फेसबुक, ट्विटर, और अन्य प्लेटफॉर्म्स को अपनी सामग्री निगरानी प्रणाली को मजबूत करना चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मानव मॉडरेटर के संयोजन से भड़काऊ सामग्री को तुरंत हटाया जा सकता है। इसके अलावा, इन कंपनियों को स्थानीय भाषाओं में सामग्री की निगरानी के लिए अधिक संसाधन आवंटित करने चाहिए। डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना जरूरी है। लोगों को गलत सूचनाओं को पहचानने और सत्यापित करने की शिक्षा दी जानी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल साक्षरता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया को मिलकर सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। इन अभियानों का उद्देश्य लोगों को सोशल मीडिया के जिम्मेदार उपयोग के बारे में शिक्षित करना और नफरत भरे भाषण से बचने के लिए प्रेरित करना होना चाहिए।सरकार, सोशल मीडिया कंपनियों, और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। साथ ही अनियंत्रित सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कठोर नियम, तकनीकी समाधान, और सामाजिक जागरूकता जरूरी है। केवल एक जिम्मेदार और सकारात्मक दृष्टिकोण ही इस डिजिटल युग में तनाव को कम करने और सामाजिक सौहार्द को बढ़ाने में मदद कर सकता है। संदीप सृजन
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