Upgrade Jharkhand News. राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सिद्ध करने के लिए मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा का भाव प्रत्येक भारतीय के हृदय में होना ही चाहिए। विश्व स्तर पर विघटनकारी तत्वों से निपटने के लिए यही मूलमंत्र है। कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकी घटना के उपरांत देश में जिस प्रकार का आक्रोश जनमानस द्वारा व्यक्त किया जा रहा था,उसकी परिणति आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करके ही संभव थी। भारतीय सेना ने अपने पराक्रम से चंद मिनटों में ही आतंकियों के ठिकाने नष्ट कर दिए। पाकिस्तान इससे पहले कि कोई उत्तर देता, उसके सैन्य उपकरणों को भी भारत ने क्षतिग्रस्त कर दिया। बात यहीं नहीं थमी। अपने सटीक निशानों से भारतीय सेना ने आतंक के पोषक पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखा दिया, जिसे उसकी आने वाली पीढ़ियां भी भूल नहीं सकेंगी। बहरहाल भले ही युद्ध प्रत्येक समस्या का समाधान न हो, किन्तु यदि आतंक को समूल नष्ट करना हो, तो युद्ध के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता।
एक लम्बे अरसे से देश पाक समर्थित आतंकवाद को सहन कर रहा था तथा अपनी उदार नीति के कारण आतंकियों को अभयदान दे रहा था। जिसे भारत की कमजोरी समझ कर आतंकी खुलकर खेलने के अभ्यस्त हो चुके थे। पाक परस्त आतंकियों की गतिविधियों का मुंहतोड़ उत्तर न देने का एक प्रमुख कारण संभवतः भारत में ऐसे तत्व भी थे, जिनके लिए भारत की आंतरिक सुरक्षा और युद्ध के लिए बनाई जाने वाली व्यूह रचनाएँ भी सार्वजनिक होनी चाहिए थी, जो आतंकियों के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही के भी प्रमाण माँगा करते थे। देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है, कि राजनीतिक दल आतंकी घटनाओं में भी चुनावी लाभ हानि ढूंढने में पीछे नहीं रहते। कुछ यू ट्यूब चैनल तो हर घटना के पीछे सरकार को ही दोषी ठहराने की मुहिम छेड़ देते हैं। उन्हें देश में कुछ भी सकारात्मक नहीं दिखाई देता। ऐसी स्थिति में सरकार के सम्मुख आंतरिक और बाह्य चुनौतियाँ खड़ी हो जाती हैं, कि किस प्रकार सावधानी बरत कर विदेशी शत्रुओं का सामना करे तथा अपने ही देश में पल रहे उन तत्वों को करारा जवाब दे, जिन्हें सत्ता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं होता।
इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि कोई भी आक्रमण बिना किसी सुनियोजित रणनीति के नहीं किया जा सकता। शुक्र है कि भारत की सेना विश्व में विशिष्ट स्थान रखती है तथा रक्षा उपकरण भी विश्वसनीय एवं कसौटी पर खरे उतरने वाले हैं। लोकतंत्र में भले ही अधिकांश विषयों का खुलासा होना अनिवार्य हो, किंतु शत्रु देशों के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही को गोपनीय रखना अत्यावश्यक होता है। यह सुखद संयोग है कि ऑपरेशन सिंदूर का सभी राजनीतिक दलों ने खुलकर समर्थन किया है, किंतु विपक्षी दलों के कुछ नेता आज भी दल के समर्थन से इतर ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं। यह समय समूचे विश्व के समक्ष अपनी एकता व सुदृढ़ता के साथ सरकार व सेना के साथ खड़े होने का है तथा ऐसे तत्वों को सबक़ सिखाने का भी है जो सोशल मीडिया या यू ट्यूब चैनलों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता व अखंडता के विरुद्ध विघटनकारी कृत्यों को अंजाम देने से बाज नहीं आते । डॉ. सुधाकर आशावादी
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