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Bhopal. दृष्टिकोण -युद्ध या युद्ध विराम : सर्वाधिकार मुखिया के नाम , Viewpoint - War or ceasefire: All authority in the name of the leader


Upgrade Jharkhand News. किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुनकर अपने नायक को मुखिया के पद पर स्थापित करती है तथा उसे अधिकार प्रदान करके यह अपेक्षा करती है, कि वह देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप उपयुक्त निर्णय लेकर उसके हितों की रक्षा करेगा। होता भी यही है, यदि मुखिया जनहित में कार्य नहीं करता, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप मुखिया को पदच्युत करने का अधिकार भी जनता के हाथों में निहित रहता है। रहा सवाल आतंकवाद से निपटने का या शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध नीति बनाने का, सो यह अधिकार भी मुखिया को राष्ट्र द्वारा ही सौंपे जाते हैं। आतंकवाद के विरुद्ध भारत की नीति स्पष्ट है। विश्व में बढ़ते असंतोष और हितों के टकराव के मध्य युद्ध एक विकल्प के तौर पर किए जाते रहे हैं। युद्ध एवं शांति दो या दो से अधिक पड़ोसी देशों के मध्य अंतरराष्ट्रीय सीमा विवाद तथा किसी देश की आंतरिक सुरक्षा में दखल देने से उत्पन्न समस्याओं से जुड़े विषय हैं। विश्व आतंकवाद से त्रस्त है। अराजक तत्व शांति में विश्वास नही रखते। भारत में समय समय पर अलगाववादी तत्व सक्रिय रहे हैं। 



देश ने जम्मू कश्मीर के आतंकवाद को भी देखा है और पंजाब में उग्रवाद के आधार पर हुई हिंसा को भी भोगा है। कश्मीर की केसर क्यारी में पनपे आतंकवाद में अपनी जान हथेली पर रखकर हिंदुओं के पलायन की त्रासदी को भी देखा है। यही नही पश्चिमी बंगाल में रोहिंग्याओं और बंगलादेशी घुसपैठियों के आतंक की आगजनी की तपिश भी झेली है। कहने का आशय यह है कि जहां देश की सीमाओं को अस्थिर करने के प्रयास जारी रहते हैं। वहीं देश की आंतरिक स्थिति को भी विघटनकारी तत्वों की अराजक गतिविधियों से दो चार होना पड़ता रहता है। कभी देश की राजधानी में उग्र आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाई जाती है, कभी अन्य प्रकार से देश की शांति भंग करने के प्रयास विघटनकारी शक्तियों द्वारा किए जाते हैं। कहने का आशय यही है कि किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार को सदैव अनेक मोर्चों पर लड़ना होता है तथा उनका दूरदर्शी समाधान खोजने हेतु विवश रहना पड़ता है। पाकिस्तान सदैव भारत विरोध की राजनीति के आधार पर गतिशील रहा है। उसकी नकारात्मक सोच का दुष्परिणाम यही है कि वहां लोकतंत्र का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। सैनिक शासन यदा कदा वहां से शासकों को हाशिए पर खड़ा करके सत्ता संचालित करता रहता है। छद्म युद्ध उसकी नीयत और नीति के परिचायक रहे हैं। 



युद्ध विराम हो या विघटनकारी तत्वों के विरुद्ध कोई स्ट्राइक, यह दिशानायकों के चिंतन का विषय है। जो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें वैश्विक कूटनीति के तहत निर्णय लेने होते हैं, जिनसे किसी भी नागरिक की व्यक्तिगत सहमति या असहमति हो सकती है। इसे देश के नहीं किसी एक परिवार के मुखिया के सूझबूझ भरे निर्णय के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। ताज्जुब तब होता है कि जब वर्ष भर विघटनकारी शक्तियों के सुर में सुर मिलाने वाले तत्व केवल पूर्वाग्रह की भाषा बोलते हैं। समय समय पर देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप निर्णय लेने का सर्वाधिकार मुखिया को लोकतंत्र ने ही दिया है। सो देश के मुखिया और सुरक्षाबलों के प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का लोकतांत्रिक दायित्व है इसमें किंतु परंतु के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। डॉ. सुधाकर आशावादी



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