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Bhopal हिंदी फिल्मों की दुर्गति The plight of Hindi films

 


Upgrade Jharkhand News.  बात अस्सी के दशक की है जब रेडियो का जमाना हुआ करता था। रेडियो सीलोन जो कि कोलंबो से अपना प्रसारण करता था। हिंदी फिल्मों के गीतों को सबसे पहले प्रसारित यहीं से किया जाता था। फिल्मों का विज्ञापन भी बड़े ही अनोखे अंदाज में अमीन सयानी ,मनोहर महाजन,तबस्सुम जैसे दिग्गज किया करते थे। नए गीतों के कार्यक्रम सुबह आठ बजे से फरमाइशों के साथ प्रसारित होते जिसमें सभी एशियन देशों के श्रोता हुआ करते थे। गाने हिट हो जाते। बिनाका गीत माला पर इनकी रेटिंग फ़िक्स होती थी। क्या जमाना था। बिनाका गीत माला के समय कुछ वैसी ही स्थिति बन जाती थी जैसी टेलीविजन के प्रारंभिक दौर में रामायण और महाभारत के समय शहर कस्बों के बाजारों की हो जाया करती थी। रेडियो की तरंगें कभी कभी मंद हो जाती थी इतने रेडियो उस समय चलते थे।



हीरो-हीरोइन,गायक-संगीतकार अपने सौंपे गए कामों को बड़ी ही शिद्दत से किया करते थे,तभी तो उन फिल्मों के गीत सदाबहार और कर्ण प्रिय होते हैं,  लेकिन जब आज के हिंदी सिनेमा की तरफ देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे हिंदुस्तान में न तो कोई लेखक बचा है,न गीतकार बचा है,न संगीतकार बचा है। हर फिल्म में पुरानी फिल्मों के गीतों को नए कलेवर में परोसा जाता है जैसे कुर्बानी फिल्म का लैला मैं लैला, यम्मा यम्मा,झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में और कांटा लगा जैसे कई गीत हैं जिनकी फेहरिस्त लिखने का कोई औचित्य नहीं!आप स्वयं आज के गीतों से परिचित हैं। टायर वाला,डिब्बे वाला, गांजे वाला गीत लिखेगा तो आप स्वयं सोच सकते हैं कि उन गीतों का स्तर कितना ऊंचा हो सकता है? कहानियां पहले भी हॉलीवुड फिल्मों से चुराई जाती थी मगर कॉपी पेस्ट नहीं होती थी बल्कि नकल में पूरी अकल लगाई जाती थी। यही कारण था कि उन फिल्मों ने सफलता के झंडे गाड़े,उनके गीतों को आज भी बच्चा -बच्चा गाता है। 



आज के गीत अपवाद को छोड़ कर इसलिए लोगों को पसंद नहीं आते क्योंकि इन गानों को लिखने वाले स्तरीय भाषा का उपयोग नहीं करते! प्रोड्यूसर डायरेक्टर ऐसे ही लोगों से गीत और कहानियां लिखवाते हैं जो या तो मुफ्त में लिख दें या मामूली खर्च पर लेखन कर दे! यही कारण है कि आज सारे लेखक, गीतकार, कलाकार, दक्षिण भारतीय फिल्मों का रुख कर रहे हैं और सफलता के झंडे भी गाड़ रहे हैं। रुपया भी भरपूर काम रहे हैं। हिंदी फिल्म निर्माताओं को इस दयनीय स्थिति को पूर्ववत करने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए वरना बॉलीवुड कहीं वुड पीस बन कर समुद्र में तैरता नजर नहीं आए। पंकज शर्मा



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