Upgrade Jharkhand News. समाज में सारा खेल दिखावे का है। अब कोई अपने लिए नहीं जीता, औरों के बीच अपनी अहमियत दिखाने के लिए जीता है। इस दिखावे की दौड़ में कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो इससे अछूता हो। आजकल के अभिभावक अपनी संतानों के प्रति अधिक सतर्क हैं। खान पान से लेकर पढ़ाई तक संतानों का पूरा ख्याल रखते हैं । पुराने अभिभावकों की तरह नहीं कि एक बार सरकारी स्कूल में बालक का नाम लिखा दिया, फिर कभी संतान की सुध लेने नहीं गए। स्कूल में मिड डे मील में क्या खाना मिल रहा है क्या नहीं, इससे अभिभावकों को कोई सरोकार नहीं होता था । यह वह दौर था, कि जब अभिभावक शिक्षक बैठक (पीटीएम) हेतु कोई विशेष दिवस निर्धारित नहीं हुआ करता था। बेसिक शिक्षा परिषद या म्युनिसिपल स्कूल के हेडमास्टर साहब जब चाहते बालक से ही उसके अभिभावकों को बुलावा देकर बुला लिया करते थे।
शिक्षक बालक की कमजोरियां गिनाया करते थे, अभिभावक शिक्षक महोदय को बालक की शैतानियों से अवगत कराया करते थे। उसके बाद गली मोहल्लों में कॉन्वेंट स्कूलों की तर्ज पर बने स्कूलों में पेरेंट टीचर मीटिंग के आयोजन होने लगे, जिनमें बच्चों के अभिभावक एक दूसरे के सम्मुख बैठकर बालक की शैक्षिक स्थिति की चर्चा करने लगे। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था। फैशन के युग में जब से बालकों को कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाना स्टेटस सिंबल बन गया, तो पीटीएम भी आधुनिक हो गई। पीटीएम के आधुनिक होने से सामान्य और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए नई समस्या उत्पन्न हो गई। पीटीएम किसी विशिष्ट समारोह से बढ़कर प्रतीत होने लगी। जैसे विवाह उत्सवों में एक बार पहने हुए परिधान बार बार नहीं पहने जाते, वैसे ही हर बार एक ही प्रकार के परिधान पहनकर पीटीएम में भाग लेना बालकों की मम्मियों को नागवार गुजरने लगा। अब पीटीएम में भाग लेने से पहले पीटीएम की तैयारियां करना भी मम्मियों की मज़बूरी बन गया।
नए नए फैशन के परिधानों की शॉपिंग पीटीएम से पहले की जाने लगी। पीटीएम स्थल पर बालकों की प्रोग्रेस की कम और मम्मियों के परिधानों पर अधिक चर्चा होने लगी। पीटीएम में भाग लेने आने वाली मम्मियां एक दूसरे के परिधानों को अपनी आँखों के कैमरे में कैद करने लगी। इतना ही नहीं, शॉपिंग मॉल की लोकेशन का आदान प्रदान करने में भी मम्मियों को कोई हिचक नहीं हुई। विशिष्ट परफ्यूम से महकने वाली मम्मियां एक दूसरे के परफ्यूम की गंध महसूस कर तुलनात्मक अध्ययन करने लगी कि अमुक की मम्मी का परफ्यूम अमुक की मम्मी के परफ्यूम से अच्छा क्यों है। टीचर्स भी उन्ही मम्मियों से अधिक प्रभावित होते हैं, जो ब्यूटी पार्लर से विशिष्ट हेयर स्टाइल बनवाकर और फेस मसाज करा कर पीटीएम में सम्मिलित हुई हों। सामान्य परिधानों में आने वाली मम्मियों की बात सुनना तो दूर टीचर्स उनकी ओर देखना भी पसंद नहीं करती। आजकल की पीटीएम देखकर लगता है कि जैसे पेरेंट्स टीचर मीटिंग बच्चों की प्रोग्रेस रिपोर्ट के लिए नहीं, अपितु टीचर्स अभिभावकों के लिए आयोजित फैशन शो का मंच बन गई हो।
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