Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal रामचरितमानस में व्यंग्य के प्रसंग Context of satire in Ramcharitmanas


Upgrade Jharkhand News. रामचरितमानस एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, भारतीय जनमानस का भावनात्मक दस्तावेज भी है। गोस्वामी तुलसीदास ने इसकी रचना भक्तिभाव से की, परंतु इसमें जीवन के विविध रंग उपस्थित हैं । भक्ति, प्रेम, वीरता, करूणा और  कम चर्चित पर उतने ही प्रभावी  हास्य और व्यंग्य के प्रसंग भी रामकथा में हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने जहाँ एक ओर धर्म का मर्म प्रस्तुत किया, वहीं दूसरी ओर समाज की कुप्रथाओं, अहंकार, ढोंग और मिथ्याचार पर चुटीले व्यंग्य भी किए हैं। इसी लिए राम चरित मानस सार्वभौमिक सर्वकालिक ग्रन्थ बन गया है।

 नारद जी का अभिमान और रूपवती कन्या का श्राप (बालकाण्ड)

प्रसंग: नारद जी शिवजी के पास जाते हैं और अपनी तपस्या की चर्चा करते हैं। फिर विष्णु से एक रूपवती कन्या से विवाह के लिए वरदान मांगते हैं।

"बिप्र चाल रिसाल बिलग भगति ग्यान बिराग।

 निपट निरखि प्रभु मोहबस कीन्हे मृग नयना त्याग।।"



यहाँ तुलसीदास जी ने व्यंग्यात्मक शैली में दिखाया कि ज्ञान-वैराग्य की दुहाई देने वाले नारद मृगनयनी कन्या को देखकर मोहग्रस्त हो जाते हैं। शिवजी मुस्कुराते हैं, विष्णु जी लीला करते हैं और अंततः नारद का अहंकार चूर होता है , यह  प्रसंग विनोदपूर्ण ढंग से रचा गया है। जिसकी सुंदर व्याख्या प्रवचनों में रोचक तरीके से की जाती है।

 मंथरा की कुरूपता का वर्णन (अयोध्याकाण्ड)

प्रसंग: मंथरा कैकेयी को राम के वनवास के लिए भड़काती है।

 

"कुबरी कलमुंखी कुटिल कपट गाल भरे।

 नीच जाहि गृह बीच भूत बस न धरे।।"

    

              तुलसीदास मंथरा के चरित्र की व्याख्या इस तरह करते हैं कि पाठक मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता। मंथरा का कुरूप रूप, कुटिल चाल और उसकी बातों में विष – इनका चित्रण तीव्र व्यंग्यात्मक शैली में हुआ है।


कैकेयी का वरदान मांगने का प्रसंग (अयोध्याकाण्ड)

प्रसंग: कैकेयी जब राजा दशरथ से दो वर मांगती है।

"माँगेउ रामहि बन को जोगु।

 भूप भुअंग सम बिछुरत भोगु।।"

तुलसीदास यहाँ व्यंग्य करते हैं कि कैकेयी ने राम जैसे रत्न को वनवास में भेजने का वर माँगा, तो दशरथ की दशा ऐसी हुई जैसे साँप से मणि छिन गई हो। यह शोक का नहीं, व्यंग्य का सम्मिश्रण दृश्य है ,  कि वरदानों की दुकान में माँग कुछ और हुई और फल कुछ और।

 लक्ष्मण का परशुराम से सामना (बालकाण्ड)

प्रसंग: परशुराम जब जनकपुरी में धनुष टूटने से क्रोधित होते हैं।

"लखन कहा सुनु भृगुकुल भूषण।

 भट भटेश भय बिभूषण।।

 कोटिन कोटि कपि केसरी नंदन।

 समर भाँति करिहहिं समंदन।।"



लक्ष्मण की वाणी में वीर रस के साथ-साथ तीखा व्यंग्य है। वे परशुराम की 'भयंकरता' का उपहास करते हैं। 'भट भटेश भय बिभूषण' कहना यानी डराने की जगह डरावना श्रृंगार करने वाले योद्धा , यह एक विलक्षण व्यंग्य वर्णन है। यह प्रसंग राम लीला मंचन में लोग बड़ी रुचि से देखते हैं।

 रावण के दरबार में अंगद (लंका काण्ड)

प्रसंग: अंगद रावण के दरबार में राम का संदेश लेकर जाते हैं।

 हास्य-व्यंग्य:

"कहहिं सत्य रघुबीर सहाय।

 जो न देसि सुरपति पद पाई।।

 देखउँ रावन बलबीराई।

 करौं कुमंत्र न कीजै भलाई।।"

 

        अंगद रावण को समझाते हैं कि वह राम से बैर न करे, वरना उसका सर्वनाश होगा। रावण की वीरता को 'कुमंत्र' कहकर व्यंग्य किया गया है। साथ ही, अंगद द्वारा पैर जमाकर रावण की पूरी सेना को न हिला पाने का दृश्य हास्यपूर्ण है।

शबरी प्रसंग में मीठे-खट्टे बेर (अरण्यकाण्ड)

प्रसंग: शबरी राम को जूठे बेर खिलाती है।

 

"चखि चखि देई राम कहँ दीन्हा।

 प्रेम सहित प्रभु कबहुँ न हीन्हा।।"

             यह दृश्य व्यंग्य नहीं, हल्के हास्य , भक्ति की पराकाष्ठा तथा भक्त के प्रेम  से युक्त है। शबरी बेर चखकर राम को देती है , भक्तिभाव से किया गया यह कार्य भक्त और भगवान के रिश्ते में हास्य और प्रेम की मधुरता भर देता है।

 विभीषण की घर वापसी और राक्षसों की प्रतिक्रिया (सुन्दरकाण्ड)

प्रसंग: विभीषण राम की शरण में जाते हैं और लंका के राक्षस इस पर कटाक्ष करते हैं।


"सुनत बिबीषन बचन सुभाऊ।

 रावन भूप भये रिस भाऊ।।

 कहा – 'कहहु बिबीषन बड़ भाई।

 रामहि समर समर समुझाई।।'"


        रावण द्वारा विभीषण को 'बड़का ज्ञानी' कहकर व्यंग्य किया जाता है। रावण का अहंकार और विभीषण की विनम्रता दोनों का यह टकराव हास्य और व्यंग्य से ओतप्रोत है।

 हनुमान और लंका में राक्षसियों की हलचल (सुन्दरकाण्ड)

प्रसंग: हनुमान माता सीता की खोज में अशोक वाटिका में पहुँचते हैं।

 

"लखि कपि सुरतिन्ह करहिं कुचालि।

 सबै उठाइं करहिं कर तालि।।"

 


यहाँ राक्षसियाँ जब हनुमान को पेड़ों पर उछलते-कूदते देखती हैं, तो वे हास्यास्पद मुद्रा में आ जाती हैं गोस्वामी तुलसीदास इस दृश्य के वर्णन को हास्य से भर देते हैं। रामचरितमानस में हास्य और व्यंग्य मुख्य रस नहीं हैं, पर तुलसीदास ने इनका प्रयोग सटीक और सार्थक रूप में किया है। वे जानते हैं कि जहाँ संवादों में विनोद होगा, वहाँ भावनाओं का गाढ़ापन और भी स्पष्ट होगा। यही कारण है कि मानस केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, जन-जीवन का जीवंत चित्र है, जिसमें वीर रस के साथ-साथ हास्य और व्यंग्य का भी मार्मिक स्थान है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template