जयंती विशेषांक
Upgrade Jharkhand News. जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के कई बंकरों को ध्वस्त कर दुश्मनों को दिया मुंहतोड़ जवाब भारत की सैन्य परंपरा शौर्य, त्याग और राष्ट्रभक्ति की अनगिनत अमर गाथाओं से सजी हुई है। इस परंपरा में कुछ नाम ऐसे हैं, जो केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पीढ़ियों की चेतना में जीवित रहते हैं। परमवीर चक्र से सम्मानित लांस नायक अल्बर्ट एक्का ऐसे ही महान योद्धा थे, जिन्होंने 1971 के भारत–पाक युद्ध में अद्वितीय साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। झारखंड के आदिवासी अंचल से निकला यह साधारण युवक अपने असाधारण पराक्रम के कारण भारतीय सैन्य इतिहास में अमर हो गया।
साधारण परिवार से असाधारण व्यक्तित्व-27 दिसंबर 1942 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के गुमला ज़िले के ग्राम जरीडीह में जन्मे अल्बर्ट एक्का एक सामान्य आदिवासी परिवार से थे। आर्थिक दृष्टि से उनका परिवार संपन्न नहीं था, किंतु संस्कारों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध था। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े अल्बर्ट एक्का ने बचपन से ही मेहनत, अनुशासन और आत्मसम्मान को अपने जीवन का आधार बनाया। खेत-खलिहानों और जंगलों के बीच बिताया गया उनका बचपन उन्हें शारीरिक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से दृढ़ बनाता गया। देशभक्ति का भाव उनके मन में गहराई से रचा-बसा था।
सेना में प्रवेश और अनुकरणीय प्रशिक्षण -देशसेवा की भावना से प्रेरित होकर अल्बर्ट एक्का ने भारतीय सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया। चयन के बाद वे 14 गार्ड्स रेजिमेंट का हिस्सा बने। कठोर सैन्य प्रशिक्षण ने उनके भीतर छिपे साहस और नेतृत्व क्षमता को और निखारा। अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और निर्भीकता उनके व्यक्तित्व के प्रमुख गुण बन गए। अधिकारी और सहकर्मी उन्हें एक भरोसेमंद, साहसी और समर्पित सैनिक के रूप में जानते थे। एक साधारण लांस नायक होते हुए भी उनमें संकट की घड़ी में आगे बढ़ने का अदम्य साहस था।
1971 का भारत–पाक युद्ध : निर्णायक संघर्ष -वर्ष 1971 भारत के सैन्य और राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसी युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का उदय हुआ। पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना को अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। दुश्मन ने गंगासागर क्षेत्र (वर्तमान बांग्लादेश) में मजबूत बंकरों, मशीनगनों और बारूदी सुरंगों के सहारे अपनी रक्षा-व्यवस्था खड़ी कर रखी थी। भारतीय टुकड़ियों की आगे बढ़त इन किलेबंद बंकरों के कारण बार-बार बाधित हो रही थी।
अद्वितीय वीरता की अमिट मिसाल -3 दिसंबर 1971 को जब निर्णायक हमला आरंभ हुआ, तब लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने असाधारण साहस का परिचय दिया। भीषण गोलाबारी और विस्फोटों के बीच उन्होंने स्वेच्छा से आगे बढ़कर दुश्मन के मजबूत बंकरों पर धावा बोला। एक के बाद एक उन्होंने कई बंकरों को नष्ट किया, जिससे शत्रु की रक्षा-पंक्ति कमजोर पड़ गई।इस दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए, किंतु उन्होंने पीछे हटने के बजाय अंतिम सांस तक लड़ने का संकल्प लिया। घायल अवस्था में भी उन्होंने अंतिम बंकर पर आक्रमण कर उसे ध्वस्त कर दिया। इसी वीरतापूर्ण संघर्ष में वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी इस अद्भुत बहादुरी ने भारतीय सेना के लिए विजय का मार्ग प्रशस्त किया और अभियान को निर्णायक सफलता दिलाई।
परमवीर चक्र : सर्वोच्च सम्मान -लांस नायक अल्बर्ट एक्का की अतुलनीय वीरता, नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया। यह सम्मान भारत का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण है, जो केवल असाधारण शौर्य और बलिदान के लिए प्रदान किया जाता है। अल्बर्ट एक्का का यह सम्मान इस बात का प्रतीक है कि भारत का हर नागरिक—चाहे वह किसी भी क्षेत्र, वर्ग या समुदाय से हो—देश की रक्षा में सर्वोच्च योगदान दे सकता है।
स्मृति, सम्मान और प्रेरणा -आज अल्बर्ट एक्का केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत हैं। झारखंड, विशेषकर गुमला और आसपास के क्षेत्रों में उनके नाम पर सड़कें, विद्यालय, चौक, संस्थान और स्मारक स्थापित किए गए हैं। भारतीय सेना में उनका नाम सम्मान और गर्व के साथ लिया जाता है। हर वर्ष उनकी जयंती और शहादत दिवस पर देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
युवाओं के लिए अमर संदेश -परमवीर अल्बर्ट एक्का का जीवन यह संदेश देता है कि सीमित साधनों और कठिन परिस्थितियों में भी महान लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। उनका जीवन साहस, अनुशासन, त्याग और राष्ट्रप्रेम का जीवंत उदाहरण है। वे युवाओं के लिए आदर्श हैं, जो देशसेवा, सैन्य जीवन या समाज के प्रति कर्तव्य निभाने का संकल्प रखते हैं।
अमर शौर्य को नमन -जयंती के अवसर पर यह आवश्यक है कि हम केवल औपचारिक श्रद्धांजलि तक सीमित न रहें, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारें। अल्बर्ट एक्का की शहादत हमें यह याद दिलाती है कि भारत की स्वतंत्रता, संप्रभुता और सुरक्षा ऐसे ही वीर सपूतों के बलिदान से सुरक्षित है। राष्ट्र उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता।


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