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Mumbai भारत में होगी पहली बार तेंदुओं की नसबंदी For the first time in India, leopards will be sterilized.

 


Mumbai (Anshu Jha) महाराष्ट्र जुन्नार क्षेत्र में गन्ने के खेतों मे तेंदुओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो कि इंसानो  की चाल- ढाल मे मिल चुके हैं। पारंपरिक वन्यजीव प्रबंधन पद्धतियां अब कारगर नहीं रही हैं। स्थानीय रूप से शुगर बेबी कहें जाने वाले ये तेंदुएं, स्थानांतरण के बाद भी जंगलों मे वापस नही आ रहे हैं। अधिकारियों ने अब चेतावनी दी है। महाराष्ट्र के पश्चिमी घने गन्ना क्षेत्र मे जुन्नार वन विभाग एक ट्रायल होने जा रहा है।  इधर-उधर घूमने वाले तेंदुओं की नसबंदी करने का ट्रायल। जानवरों को जंगलों मे  छोड़ने के बजाय , उनके प्रजनन को उनके स्त्रोत पर ही रोक कर उनकी आवादी में कमी किया जा सकता है।



भारत मे यह प्रक्रिया पहली बार करवाई जायेगी I यह कदम  कृषि प्रधान  गांवों में तेंदुओं की बढ़ती हानि गतिविधियों, पशुधन की बढ़ती हानि,  और तेंदुओं द्वारा हो रहे मनुष्यों पे हमला यह सब देखते हुए यह फैसला लिया गया। जुन्नार मानव-तेंदुओं के सह-अस्तित्व के लिए एक प्रमुख अध्ययन स्थल बन गया है, लेकिन हाल के घातक हमलों ने इस नाजुक संतुलन को गंभीर तनाव में डाल दिया है।


अफ्रीका की तरह होगी नियंत्रण-यह प्रक्रिया केवल जुन्नार तक सीमित न रह कर अन्य महाद्वीपों विशेष रूप से अफ्रिका की ओर देखा जाए तो वहाँ 30 सालों से हाथियों, शेरों, बबूनों और कई अन्य प्रजातियों पर वन्यजीवों की आबादी  नियंत्रित करने हेतु अलग - अलग  तरीको का उपयोग किया जा रहा है।


इन मादाओं पर पर होगा परीक्षण-भरतीय वन्यजीव क्षेत्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक बिलाल हबीब, जिन्होंने जुन्नार प्रभाग मे कार्य किया है। उन्होंने कहा की अगर हम  दो वर्ष तक मादाओं के जन्म को नियंत्रित करने का प्रयास करे तो , खासकर शेर, चीता, बाघ, रीछ, सिंहनी, आदि बड़े जानवरों के  बच्चों  की आवादी  कम करने में सक्षम हो पाएंगे।


नसबंदी की प्रक्रिया ! -उच्च- संघर्ष वाले क्षेत्र वयस्क मादा  तेंदुओं को बेहोस किया जाएगा,  चिकित्सा जांच की जाएगी और गर्वनिरोधक के माध्यम से उनकी नसबंदी की जाएगी , ठीक होने के बाद उनको वापस उनके गृह मे रखा जाएगा। जुन्नार जैसे जगहों मे तेंदुएं कुछ ही मिनटों मे बाग़ानों मे छिप जाते हैं , इसलिए उन्हें  पकड़ना मुश्किल होता है।  अगर किसी तेंदुएं की नसबंदी की गई हो और वो तेंदुएं कईं सालों  तक दिखे ही नहीं, तो बाद में उसे गर्भनिरोधक दवा देकर नियंत्रित करना भी संभव नहीं होता। जब तक रेडियो-कॉलर, कैमरा ग्रिड और ज़मीन पर खोज करने जैसी ट्रैकिंग व्यवस्था को बड़े स्तर पर नहीं बढ़ाया जाता, तब तक इस योजना के नतीजे  को सफल नही माना जाएगा।


वैज्ञानिकों का राय -वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ कुछ तेंदुओं की नसबंदी करके हम  तेंदुओं के आवादी को  कम नही कर सकते, क्योंकि बाकी के तेंदुओं वैसे ही शिकार, व प्रजनन करते रहेंगे। बड़ा  बदलाव तभी दिखेगा जब ज्यादातर मादा तेंदुएं प्रजनन करने मे सक्षम न हो तभी  शिकार व आवादी मे कमी देखेगी। महाराष्ट्र के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव, सुनील लिमये ने कहा कि , शुरुआत में कुछ मादा तेंदुओं के डिंबोत्सर्जन  रोकने के लिए  गर्वनिरोधक इंजेक्शन के उपयोग से भी इस प्रक्रिया पर काबू पाया जा सकता है। लिमये ने बताया कि अफ्रीका में शेर और चीते जैसे जानवरों पर जो ट्रायल (अध्ययन) किए गए थे, वे अच्छे और उम्मीद जगाने वाले साबित हुए, लेकिन भारत पहली बार तेंदुओं पर ऐसा परीक्षण कर रहा है। इससे यह पता चलेगा की आवादी बढ़ने की गति कम होती है या नही।


तेंदुओं को पकड़ने से समाधान क्यों नही निकलता- जब भी कोई तेंदुआ दिखाई देता है तो लोगों मे डर का माहौल पैदा हो जाता है। केवल तेंदुएं को पकड़ने से इसका समाधान नही निकलता, क्योंकि एक को पकड़े जाने से दूसरा तेंदुआ उनकी जगह ले लेता है और यह प्रक्रिया कभी खत्म नही होती। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत, तेंदुए अनुसूची I में आते हैं। उन्हें तभी मारा जा सकता है जब वे आदमखोर साबित हो या गंभीर रूप से घायल हो और उनका इलाज संभव न हो। पहले उन्हे जिंदा पकड़ने की कोशिश की जानी चाहिए अगर यह संभव  न हो तब उन्हे मार  दिया जा सकता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए उनके स्थानांतरण के लिए केंद्र सरकार की मंज़ूरी होनी जरूरी है। तेंदुओं को कानून की एक अलग श्रेणी (अनुसूची II) में रखने पर विचार हो रहा है, ताकि राज्य सरकार उन्हें वैज्ञानिक तरीक़े से एक जगह से दूसरी जगह ले जाने (ट्रांसलोकेशन) की अनुमति पा सके।



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