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करोड़ों अरबों रुपए राजस्व प्राप्ति के बाद भी नहीं सुधरे सारंडा के गांवों की हालत, The condition of the villages of Saranda has not improved even after receiving crores of rupees in revenue


गुवा
 । सेल, बीएसएल की झारखंड खान समूह की चार लौह अयस्क खदानें झारखंड के सारंडा जंगल क्षेत्र में स्थित है। इन खदानों में किरीबुरू, मेघाहातुबुरु, गुवा एवं मनोहरपुर (चिड़िया) शामिल है। सेल महारत्न कंपनी का ताज पहने हुए है। इसके अलावे यहां टाटा स्टील की विजय-दो समेत अन्य प्राईवेट खदानें है अथवा थी। इसके बावजूद उक्त सभी खदानों के परिधि में बसे गांवों का विकास नहीं होने व युवाओं को रोजगार नहीं मिलने से कई सवाल उठ रहे है। उल्लेखनीय है कि सारंडा में अब तक सेल, टाटा स्टील, रुंगटा आदि की दर्जनों खदानें संचालित थी। इसमें से वर्तमान में सेल की उक्त चारों खदानों के अलावे टीएसएलपीएल की एक खदान संचालित है। 

इन खदानों से प्रतिवर्ष केन्द्र व राज्य सरकार को करोड़ों-अरबों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। पश्चिम सिंहभूम की डीएमएफटी फंड में भी हजारों करोड़ रुपये खदान से प्रभावित गांवों के विकास हेतु खदान प्रबंधन दे रही है। इसके बावजूद सारंडा के गांवों व ग्रामीणों की स्थिति नहीं सुधर रही। जब भी इन खदानों में स्थायी व अस्थायी नौकरी देने की बात होती है तो प्रभावित गांवों के ग्रामीणों को विभिन्न कारण व नियम बनाकर नजरअंदाज कर बाहरी लोगों को नौकरी देने का कार्य वर्षों से होते आ रहा है। 

इससे सारंडा के शिक्षित बेरोजगार युवक-युवती व ग्रामीण पलायन को विवश हैं। सारंडा के ग्रामीणों को अपना मुख्य हथियार बनाकर नक्सलियों ने अपना आर्थिक उद्देश्य को साधने हेतु वर्षों तक इन खदान प्रबंधनों को परेशान किया। नक्सल समस्या से खदान प्रबंधनों को मुक्ति दिलाने हेतु पुलिस व अर्द्ध सैनिक बलों को सारंडा में तैनात किया गया। शुरू में सरकार व खदान प्रबंधन ने यह तय किया था कि सारंडा के युवाओं को विभिन्न खदानों में रोजगार, स्वरोजगार, शिक्षा से जोड़ कर नक्सल समस्या का समाधान किया जाएगा। नक्सलियों से संघर्ष के दौरान सैकड़ों जवान, ग्रामीण व नक्सली मारे भी गए।

करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति को नक्सलियों ने नुकसान भी पहुंचाया। लेकिन इसके बावजूद आज तक इन खदानों में चतुर्थ श्रेणी की स्थायी नौकरी प्रभावित व स्थानीय बेरोजगारों को देने का कार्य नहीं हो रहा है। सारे खदान प्रबंधनों ने स्थानीय बेरोजगारों को बंधुवा मजदूर या शरणार्थी बनाकर रख दिया है। हालांकि सेल प्रबंधन एवं पुलिस-प्रशासन के कुछ उच्च अधिकारी नौकरी मामले में सारंडा के बेरोजगारों की उपेक्षा को दबी जुबान से गलत मानते हुए अपने-अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात बताते हुए अपना पल्ला झाड़ देते हैं। इन तमाम समस्याओं को लेकर सारंडा के ग्रामीणों ने 29 अगस्त से अनिश्चित कालिन आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया है। हालांकि इस मामले को लेकर 28 अगस्त को एसडीओ कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता होनी है।

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