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भगवान राम ने रावण को वध करने के लिए शारदीया दुर्गा पूजा की थी : सुनील कुमार दे

 


शारदीया दुर्गा पूजा पर विशेष,,,,

हाता। माँ दुर्गा आदि शक्ति है।सभी सृस्टि की जननी है।सत्य युग में महिषासुर के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए ब्रह्मा,बिष्णु और महेश्वर की तेज राशि से भगवती दुर्गा की सृस्टि की गई थी। सभी देवताओं ने अपने अपने अश्त्र शस्त्र और शक्ति प्रदान करके आदि शक्ति को मजबूत की थी।अंत में माँ भगवती युद्ध छेत्र में महिषासुर को वध करके देवकुल को शांति प्रदान की थी।उसके बाद से माँ दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू हो गई।

      कालांतर में इस धरती में महाराजा सुरथ ने समाधि के साथ मेधस मुनि के आश्रम में हृत राज्य और शांति पाने के लिए बसंत काल में माँ दुर्गा की प्रथम पूजा का प्रचलन किया था जो बसंती पूजा के नाम से जाने जाते है और यही असली दुर्गापूजा है लेकिन हिन्दू समाज  में यह पूजा उतना प्रचलित और लोकप्रिय नहीं है।

 बंगला कृत्तिवास रामायण के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने रावण को वध करके माता सीता को उद्धार के लिए शरत काल में जिस समय को अकाल कहा जाता है माँ दुर्गा की पूजा की थी और माँ का आशीर्वाद लिया था।इस दुर्गा पूजा को शारदीया दुर्गा पूजा और अकाल बोधन कहा जाता है।आज हिन्दू समाज में इसी शारदीया दुर्गा पूजा का प्रचलन ज्यादा है।

 जब राम और रावण का युद्ध शुरू हुआ तब देखा गया किसी भी अवस्था में रामचंद्र जी रावण को पराजित नहीं कर पा रहे थे।युद्ध छेत्र में रामचंद्र जी देखा उनकी सभी बाणों को एक नारी ने रोक रही है।वह नारी रावण को रच्छा कर रही है।रामचंद्र जी सखा बिभीषन से उस नहीं नारी के बारे में पूछा।बिभीषन जी बोले,,वह स्वयं आदि शक्ति महामाया है जो रावण के पास रहती है और उसको रच्छा करती है।

रामचन्द्र जी निराश होकर बोले ,,तब तो युद्ध करना ही बेकार है।माँ जिसको स्वयं रच्छा कर रही है, उसको कौन वध कर सकता है।इसका उपाय क्या है मीता बिभीषन।तब बिभीषन ने मा दुर्गा की पूजा करके उसको प्रसन्न कर रावण को वध करने का वर मांगने की सलाह दी।इस अकाल में माँ दुर्गा की पूजा कैसे किया जाय इसकी सलाह लेने के लिए प्रजापति ब्रह्मा के पास रामचन्द्र जी गया।ब्रह्मा जी विधान दिया लेकिन पूजा में पौरहित्य करने के लिए असहमति जताई।क्यों कि दुर्गा पूजा वही कर सकते हैं जो तीन संध्या गायत्री मंत्र जप करते है।ब्रह्मा जी का एक संध्या गायत्री मंत्र छूट गया था जिसदिन उन्होंने सृस्टि की रचना की थी।तब कैसे होगी माँ की पूजा।कौन यैसा पुराहित है जो त्रि संध्या गायत्री मंत्र जप करते हैं।तब ब्रह्मा जी ने कहा,,एक ब्यक्ति है, वह है रावण जो त्री संध्या गायत्री मंत्र जप करते हैं, वही माँ की पूजा कर सकते हैं।रामचन्द्र बोले,,,

यह तो असंभव है, रावण वध के लिए मा की पूजा,वह रावण कैसे कर सकते हैं। ब्रह्मा जी बोले,,आप लोग प्रस्ताव लेकर जाइये,,,, वह माँ का भक्त हैं, जरूर राजी हो जाएंगे।

ब्रह्मा जी के कथन अनुसार लक्छ्मण जी को पूजा का प्रस्ताव लेकर रावण के पास भेजा गया।दुस्ट रावण नहीं, भक्त रावण प्रस्ताव में राजी हो गया और पूजा की तैयारी करने को कहा।

इधर माँ दुर्गा की पूजा की तैयारी की गई।षष्टी से माँ की पूजा शुरू हो गई।सप्तमी और अश्टमी की पूजा भी हुई।संधि पूजा में 108 नील कमल की जरूरत है।कहाँ मिलेगी औरकौन जुगाड़ करेगा। बिभीषन जी ने कहा,,हिमालय के मानस सरोवर में यह नील कमल मिल सकता है लेकिन उतना दूर से कौन लायेगा।सबका नजर संकट मोचन बजरंगवली पर।जय श्रीराम कहते हुए हुनमान उड़ान भरे और बहुत लड़ाई झगड़ा करके 108 नील कमल लाया।उस सरोवर में 108 ही नील कमल था।सन्धि पूजा के समय माँ ने एक नीलकमल चुरा ली।संधि पूजा का समय जब आया तब देखा गया एक कमल नहीं है।हनुमान से पूछा गया।हनुमान जी बोले,,,मैं गिनती करके 108 नील कमल लाया था,कैसे एक कमल कम हो गया।

फिर गया हनुमान लेकिन रास्ते में कमल नहीं मिला।सरोवर गया लेकिन और एक भी कमल नहीं था।निराश होकर लौटे हनुमान।तब क्या होगा,माँ की पूजा असमाप्त रहेगी,रामचन्द्र जी की चिंता बड़ी।तब लक्छ्मण जी ने कहा,,भैया,आप का आंख नील कमल के समान है इसलिए आप को लोग कमल लोचन राम कहते हैं, तब चिन्ता क्यों,एक आंख निकालकर माँ को दे दीजिए।लक्छ्मण का प्रस्ताव से भगवान राम राजी हो गए और धनुष लेकर आंख उखाड़ ने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तब मा दुर्गा प्रकट हुई और हाथ पकड़कर कही,,यह लो तुम्हारा फूल।मैं ने ही यह कमल चुराई थी क्योंकि यह कमल शिव जी का है।इसको अपने पैर में कैसे ले सकती हूँ।उस सरोवर में मेरे 107 बूंद का खून से 107 कमल और शिव जी का एक खून का बूंद से एक कमल इसीप्रकार 108 फूल वहां खिले थे रक्तबीच बिनाश के समय में।मैं तुमारी पूजा से संतुष्ट हूं,वर मांगो।

तब रामचन्द्र जी ने रावण को वध करके सीता का उद्धार करने का वर मांगा।यह मांग शुनकर माँ के आँखों में पानी आ गई और रावण की ओर देखी। रावण ने कहा,,जजमान की इच्छा पूर्ण करना ही पुरहित का काम है। माँ ने राम को रावण वध करने का आशीर्वाद दिया। उसके वाद नवमी के दिन राम और रावण का युद्ध हुआ और युद्ध में रावण मारा गया और माता सीता को उद्धार करके दशमी के दिन विजय उत्सब मनाया गया।

कहानी के पीछे जो भी सत्यता हो लेकिन धर्म,पूजा और उत्सब सब कुछ बिश्वास और भक्ति से आधारति है। इसलिए लोक आस्था पर कोई तर्क नहीं चलता है।हमारे हिन्दू समाज में यह शारदीय दुर्गापूजा काफी लोकप्रिय है जो केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में  भी बड़ा ही धूमधाम से मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा का मूल आध्यात्मिक भाव है,, दुर्गा शुभ शक्ति का प्रतीक है और महिसासुर और रावण अशुभ शक्ति का प्रतीक है।यह शुभ और अशुभ शक्ति आज भी हमारे मन में भी है और समाज में भी।अशुभ शक्ति पर शुभ शक्ति का विजय,अधर्म पर धर्म का विजय,असत्य पर सत्य का विजय, अन्याय पर न्याय का विजय ही दुर्गा पूजा का मूल भाव है।आओ सभी सारी अशुभ शक्ति पर विजय पाने के लिए शुभ शक्ति रूपिणी माँ दुर्गा की पूजा करें और आराधना करें।जय माँ दुर्गा।

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