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जमशेदपुर लोकसभा में तगड़ी दावेदारी पेश कर रहे हैं डॉ शुभेन्दु महतो, Dr. Shubhendu Mahato is presenting a strong claim in Jamshedpur Lok Sabha.

जमशेदपुर।  जैसे-जैसे लोकसभा आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कयासों का बाज़ार भी गर्म होने लगा है। तमाम राजनीतिक पार्टियों और उनमें सक्रिय नेताओं के बीच टिकट के लिए भागदौड़ भी शुरू हो चुकी है। चौक-चौराहों पर लोगों ने भी संभावित समीकरणों और भावी प्रत्याशियों पर चर्चाएं शुरू कर दी हैं। इसी बीच आइए नज़र डालते हैं झारखण्ड की राजनीति के हॉटस्पॉट माने जाने वाले लौहनगरी जमशेदपुर लोकसभा की सीट पर। जहां एक तरफ इस सीट पर पिछले लगातार दो टर्म से भाजपा ने विद्युत वरण महतो के दम पर कब्ज़ा जमाई हुई है। 

वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबन्धन लंबे समय से इस सीट से महरूम रहने की वजह से सधी हुई रणनीति के साथ उतरने के लिए मंथन में जुटी है। भाजपा की बात करें तो यह देखना दिलचस्प होगा लगातार दो बार जीतकर इस सीट पर कुड़मी ट्रंपकार्ड के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके विद्युत वरण महतो को हैट्रिक लगाने का अवसर देगी या फिर भविष्य को ध्यान में रखते हुए किसी नये चेहरे पर दांव खेलेगी। फिर भी कुल मिलाकर एनडीए गठबंधन के लिए कुछ चीजें स्पष्ट होने की वजह से प्रत्याशी चयन में ज्यादा दिक्कतें नहीं हैं। 

बिना किसी किंतु-परंतु के यह सीट गठबंधन के तहत भाजपा के पाले में है। बस प्रत्याशी के चयन का मामला सुलझाना है जो कि उतना मुश्किल नहीं है, लेकिन वहीं दूसरी ओर इंडि गठबन्धन के लिए सबसे पहले पार्टी और फिर प्रत्याशी के चयन में काफ़ी उठापटक की संभावना है। जहां एक तरफ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सह इसी लोकसभा से पूर्व में सांसद रह चुके डॉ अजय कुमार अपनी दावेदारी पेश करेंगे। वहीं दूसरी ओर झामुमो कोल्हान में पसरे अपने मजबूत जनाधार का हवाला देकर किसी भी हालत में जमशेदपुर लोकसभा अपने हिस्से में करना चाहेगी। 

क्षेत्रीय समीकरणों की बात करें तो हमेशा से देखा गया है कि कुड़मी बहुल होने की वजह से यहां के कुड़मी वोटर्स ही उम्मीदवारों का भविष्य तय करते हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर इंडि गठबन्धन कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहेगी और पूरी संभावना है कि कोई कुड़मी उम्मीदवार ही उतारेगी। हालांकि कोल्हान में कद्दावर कुड़मी नेताओं की लंबी फेहरिस्त है लेकिन अधिसंख्य पुराने कुड़मी नेता या तो हालिया वर्षों में निष्क्रिय होकर परिदृश्य से गायब हो चुके हैं या फिर अपना जनाधार खो चुके हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो यदि यह सीट गठबंधन के तहत झामुमो के हिस्से में आती है जिसकी पूरी संभावना है,तो इस समय कोल्हान में झामुमो के भीतर कुड़मी नेताओं में से सबसे मजबूत दावेदार के रूप में सरायकेला-खरसावां जिलाध्यक्ष डॉ शुभेन्दु महतो ताल ठोंकते नज़र आ रहे हैं। 

स्वच्छ और बेदाग छवि के अलावा पिछले कुछ वर्षों में उनकी सांगठनिक चातुर्य और विधानसभा आम चुनाव में शत प्रतिशत सफलता उनके दावे को प्रबल बना रहे हैं। ऊपर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मंत्री चंपई सोरेन के खासे करीबी होने की वजह से पार्टी के अंदर कोई और दावेदार दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा। डॉ शुभेन्दु महतो के राजनीतिक जीवन पर नज़र डालें तो उन्होंने सन् 1984 में जमशेदपुर के कोऑपरेटिव कॉलेज से छात्र नेता के रूप में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। 

उसके बाद वर्ष 1985 में वे झारखण्ड आंदोलनकारी निर्मल महतो के संपर्क में आकर उनसे प्रभावित होकर झारखण्ड आंदोलन से जुड़े। शहीद निर्मल महतो को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले डॉ शुभेन्दु महतो ने वर्ष 1987 में झारखण्ड आंदोलनकारी के तौर पर आंदोलन में सराहनीय भूमिका निभाई। आंदोलन के क्रम में साल 1991 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। डॉ महतो के राजनीतिक सफ़र में सबसे गौरतलब बात यह है कि लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहकर सांगठनिक स्तर पर खासी सफलता के बावजूद उनके दामन पर कभी कोई आपराधिक दाग नहीं लगा। 2019 के विधानसभा आम चुनाव में उनके नेतृत्व में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने सरायकेला-खरसावां जिले के तीनों विधानसभा सीट जीत कर क्लीन स्वीप कर डाला। 

यह उनके दक्ष सांगठनिक चातुर्य और अग्रेसन को दर्शाता है। जमशेदपुर लोकसभा से उनकी दावेदारी के संदर्भ में जब उनसे बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि वे झारखण्ड की माटी को अपनी मां और झामुमो को अपना परिवार मानते हैं। लोकसभा चुनाव में अभी समय बाकी है। उम्मीदवारी पर अंतिम फैसला पार्टी सुप्रीमो और गठबंधन में शामिल तमाम दलों को लेना है। उन्होंने आगे कहा कि झामुमो में रहते हुए उन्हें कई बार चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन पार्टी की उन पर अटूट विश्वास और तमाम पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के निरंतर सहयोग से राहें आसान होती गईं। 

वे अपने अबतक के सफल राजनीतिक और सांगठनिक सफलता का श्रेय पार्टी और तमाम कार्यकर्ताओं को देते हैं। हर व्यक्ति की तरह उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं। पार्टी अगर उन्हें उम्मीदवार के तौर पर उतारने का भरोसा जताती है तो निश्चित तौर पर वे इसमें खरा उतरने के लिए समर्पित भाव से ताकत झोंक देंगे।

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