उन्होंने कहा कि हम आदिवासी प्रकृति के पुजारी हैं। इस पर्व के दौरान हम प्रकृति से जुड़े पेड़-पौधे, नदी-नाला आदि की पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ पूजा करते हैं। पूजा के दौरान हम प्रकृति द्वारा दिये गये खाने-पीने की चीजों की भी पूजा कर उन्हें अर्पित करते हैं। अपने खेतों में लगी नई फसल व सब्जियों जैसे धान का चूड़ा, कोंहड़ा, लौकी आदि अर्पित करते हैं। इन खाद्य पदार्थों को अर्पित करने के बाद ही ग्रामीण इसे खाने के रुप में इस्तेमाल करते हैं।
No comments:
Post a Comment