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विरोधियों को निपटाने को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दुरुपयोग संभव : कुलविंदर, Possible misuse of Supreme Court's decision to settle opponents: Kulwinder


व्हिप का उल्लंघन करने वालों की सदस्यता खत्म हो

जमशेदपुर। पैसे लेकर वोट देने या सवाल करने वालों पर मुकदमा चलाने के सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्यीय खंडपीठ के फैसले पर टिप्पणी करते हुए अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा है कि केंद्र अथवा राज्य की मजबूत सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटाने के लिए इस फैसले का दुरुपयोग कर सकती हैं?




कई राज्यों में दल बदल
एवं राजनीतिक दलों की टूट का उदाहरण देते हुए इस अधिवक्ता ने कहा कि निष्पक्ष जांच होने से चौंकाने वाले तथ्य उजागर होंगे। आखिरकार क्यों कोई जनप्रतिनिधि अपने मूल राजनीतिक दल के सिद्धांत, विचारधारा, कार्यक्रम, नीतियों को परे रख सत्ताधारी दल में शामिल होता है, जिसके खिलाफ जनता की अदालत में  चुनाव लड़कर विजयश्री प्राप्त की थी।


फिर मजबूत सरकार एवं सत्ताधारी दल अपने विरोधी दल के नेताओं पर घूस लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा सकता है और बहुमत के आधार पर एथिक्स कमेटी का फैसला आयेगा और सदस्यता चली जाएगी। ऐसे फैसले से लोकतंत्र कमजोर हो सकता है? विरोधी दल की ताकत जो वास्तव में जनता की आवाज होती है, उसे आसानी से दबाया जा सकता है।  देश में  प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र है और राजनीतिक दलों पर भरोसा कर जनता प्रतिनिधि चुनती है। ऐसे में कानून बनाया जाना चाहिए कि राज्यसभा का चुनाव हो या अन्य कोई नीतिगत निर्णय, यदि कोई भी जनप्रतिनिधि अपने दल के व्हिप का उल्लंघन करता है अथवा दल बदल करता है तो उसकी सदस्यता 24 घंटे के अंदर समाप्त कर दी जानी चाहिए। 




सत्ताधारी दल विरोधी दलों के सवाल को बहुत ही शातिराना तरीके से पैसे के बदले में पूछा गया सवाल साबित कर सकते हैं। उनके नियंत्रण में जांच एजेंसी होती है और उसके दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यहां तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी प्रावधान होना चाहिए था कि अभिव्यक्ति का जो विशेष अधिकार लोकसभा राज्यसभा एवं विधानसभा सदस्य को मिला है, उसका दुरुपयोग बंद हो। सदस्य यदि किसी धार्मिक, जाति, वर्ग विशेष की भावनाओं को आहत कर रहा है तो उसके खिलाफ उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है। इस विशेष अधिकार का दुरुपयोग करते हुए विभिन्न राजनीतिक दल के प्रतिनिधि सांसद और विधानसभा में देखे गए हैं।


पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट दे तो क्या उस पर मुकदमा चलेगा या नहीं? इस तरह के रिश्वत वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को सर्वसम्मति से फैसला सुना दिया है. बेंच ने 1998 के फैसले (पीवी नरसिम्हा राव घूस मामला) को पलट दिया और साफ तौर पर कहा कि ‘रिश्वत मामलों’ में एमपी, एमएलए मुकदमे से नहीं बच सकते।


कोर्ट का ये फैसला ‘सीता सोरेन बनाम भारत सरकार’ मामले में आया है. अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसदों और विधायकों को हासिल विशेषाधिकार की नए सिरे से व्याख्या की है और 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के दौरान इन दोनों अनुच्छेदों की व्याख्या को गलत माना है. ‘राजनीति में नैतिकता’ के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इसको बेहद महत्त्वपूर्ण मामला माना.


सात सदस्य खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस केस की सुनवाई की और तकरीबन पांच महीने बाद सोमवार को फैसला सुना दिया।

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