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Bhopal. नेताओं के बिगड़े बोल,निशाने पर हमेशा महिलाएं, Bad words of leaders, women are always the target.

 


Upgrade Jharkhand News.  दुनिया भर की राजनीति में महिलाएं ही ' सॉफ्ट टारगेट ' क्यों होती हैं ? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर कोई  दे नहीं पाया है। यहां तक कि खुद महिलाएं भी महिलाओं को निशाना बनाती हैं।वैसे हमारी राजनीति में महिलाएं नेताओं की बदजुबानी का रोज शिकार बनतीं हैं लेकिन वे इसका प्रतिरोध नहीं कर पातीं क्योंकि महिलाएं भी एकजुट नहीं हैं। राजनीति में उनका इस्तेमाल 'शो पीस' से ज्यादा नहीं है। इस मामले में भारत के तमाम राजनीतिक दल एक से बढ़कर एक हैं। महिलाओं के सम्मान और अपमान के बारे में सभी राजनीतिक दल समाजवादी हैं ,यानि उनकी  धारणा लगभग एक जैसी है। जो बात बरसों पहले आरजेडी के लालू प्रसाद यादव ने कही थी वो ही बात आज भाजपा के महाभद्र नेता रमेश बिधूड़ी ने कही है,इसलिए मुझे न कोई हैरानी हुई और न रंज। लालू प्रसाद यादव ने पटना की सड़कों को भाजपा सांसद और स्वप्न सुंदरी रह चुकी हेमामालिनी के गालों जैसा बनाने की बात कही थी तो अब रमेश बिधूड़ी ने इसी काम के लिए प्रियंका वाड्रा का इस्तेमाल किया है। बिधूड़ी ने कहा कि यदि भाजपा दिल्ली विधानसभा के चुनावों में सत्ता में आयी तो कालका जी की सड़कों को प्रियंका के गालों जैसा खूबसूरत बना देगी।



रमेश बिधूड़ी अनाड़ी नहीं हैं। पढ़े-लिखे हैं। स्नातक हैं ,विधि स्नातक भी हैं,तीन बच्चों के पिता हैं और तीन बार के विधायक भी। सांसद तो हैं ही इसलिए उनके अनुभव पर मैं क्या ,कोई भी ऊँगली नहीं उठा सकता। उन्होंने दिल्ली विश्व विद्यालय और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से कौन सी भाषा सीखी है इसका प्रमाण देने की भी जरूरत नहीं है।  कांग्रेस स्वाभाविक रूप से बिधूड़ी के बयान पर उखड़ी हुई है किन्तु मुझे बिधूड़ी पर हालाँकि भाजपा पर ज्यादा दया आती है क्योंकि यही वो पार्टी है जो लोकसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक लाती है। देश की सड़कें हेमा मालिनी  के गालों जैसीं बनें या प्रियंका के गालों जैसी,इसका निर्धारण तो भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी  कर सकते है। प्रदेशों में ये काम लोक निर्माण मंत्रियों का है लेकिन इस बारे में कभी किसी सरकार ने कोई नीति निर्धरित नहीं की है ,इसलिए मुझे संदेह है कि रमेश बिधूड़ी का सपना पूरा होगा। लालू यादव का भी सपना पूरा नहीं हुआ। देश की कोई भी सरकार  सड़कों को किसी हीरोइन या नेता के गालों जैसा बनवा ही नहीं सकती। क्योंकि ये असम्भव काम है। सड़कों की तुलना महिलाओं के गालों से करने वाले महिलाओं का कितना सम्मान और वंदना करते हैं ये बताने की जरूरत नहीं।  



महिलाओं को लेकर हमारे भाग्यविधाताओं के क्या ख्याल हैं ये जानना हो तो अतीत को खंगालिए। कोई महिलाओं को एक करोड़ की बार वाला कहता है तो कोई जर्सी गाय। कोई राक्षसी कहता है तो कोई कुछ और। किसी जमाने में महिलाओं को तंदूरी रोटी की तरह जला दिया गया था तो कभी वे हनी ट्रेप के लिए इस्तेमाल की गयीं। हकीकत ये है कि  एक तो महिलाएं राजनीति में अल्पसंख्यक हैं दूसरे उनका कोई माई-बाप नहीं है। कांग्रेस में श्रीमती इंदिरा गाँधी कैसे प्रधानमंत्री बन गयीं ये हैरानी का विषय है लेकिन किसी दूसरे राजनीतिक दल ने भले ही वो दुनिया का  सबसे बड़ा राजनीतिक दल ही क्यों न हो किसी महिला को न प्रधानमंत्री बनने दिया और और न अपनी पार्टी का अध्यक्ष। बहन मायावती  और बहन ममता बनर्जी इसका अपवाद हैं क्योंकि वे स्वयंभू है। वे अपने दलों की सुप्रीमो हैं, ये भी दूसरे दलों के नेताओं को नहीं पचता।  



मेरा मूल प्रश्न था कि भारत में महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में सॉफ्ट टारगेट क्यों हैं ? इसका उत्तर खोजिये, मिल जाये तो मुझे भी बताइये ,क्योंकि मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा। मुझे कोई महिला नेत्री भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे रही। राजनीति में महिलाएं पहले भी खिलौना थीं और आज भी खिलौना ही है।  मुमकिन है कि मेरे इस आलेख के बाद तमाम नारीवादी छद्म नेता,लेखक ,पत्रकार मेरे ऊपर राशन- पानी लेकर  पिल पड़ें  ,लेकिन मैं अपनी धारणा बदलने वाला नहीं हूं ,क्योंकि मुझे हर राजनीतिक दल में एक न एक बिधूड़ी नजर आ  रहा है। किसी दल में ये संख्या कम है तो किसी में ज्यादा। 



महिलाओं के सम्मान के मामले में सभी दल लगभग एक समान हैं। कांग्रेस ने एक महिला को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया था सो भाजपा  ने भी बना दिया। कांग्रेस ने एक महिला को राष्ट्रपति बनाया था सो भाजपा ने भी बना दिया। लेकिन भाजपा किसी महिला को प्रधानमंत्री नहीं बना पा रही। मनु स्मृति की शिक्षा - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः' रमेश विधूडियों  को नहीं दी जाती। ये सिर्फ एक नारा है जो मंचों से लगाया जाता है। अन्यथा सभी दल और सभी दलों के नेता नारी को द्रोपदी समझते है।  सभी में द्रोपदी के चीरहरण की होड़ लगी है।



बहरहाल रमेश बिधूड़ी और उन जैसे तमाम नारी विरोधी  बदजुबान नेताओं के खिलाफ जनमत न बनाया गया तो महिलाओं के गाल सड़कों की तुलना के लिए कल भी इस्तेमाल किये जाते थे,आज भी किये जा रहे हैं और कल भी किये जायेंगे। मेरा तो महिलाओं से भी आग्रह है कि महिलाओं जागो,जागो महिलाओं। राजनीति से ऊपर उठकर लालुओं और बिधूडियों का बहिष्कार करो। राकेश अचल



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