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Bhopal. पश्चिम बंगाल में केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी चिंताजनक, The silence of the Central Government and the Supreme Court in West Bengal is worrying


Upgrade Jharkhand News. एक बार पुन: पश्चिम बंगाल जल रहा है। हिंसा, आगजनी की नई इबारतें लिखी जा रही है और यह कहर ढाया जा रहा है हिन्दुओं पर वक्फ  संशोधन कानून के नाम पर। मुर्शिदाबाद में हिंसा, लूटमार बेकाबू होने से जहां तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया वहीं पंद्रह पुलिस कर्मियों सहित सत्रह घायल लोगों का अस्पताल में इलाज चल रहा है। मुर्शिदाबाद में दंगाईयों ने जो कहर ढा रखा है उसके चलते वहां से हिन्दुओं का पलायन शुरू हो गया है। करीब पांच सौ हिन्दू परिवारों ने जान बचाकर मालदा में शरण ली है उनमें से कईयों के घर जला दिये गये हैं तथा औरतों के साथ छेड़खानी की गई है। 



मुर्शिदाबाद से पलायन करने वाले हिन्दुओं ने जो बयान दिये हैं उससे साफ  है कि सब कुछ ममता बनर्जी की शह पर हो रहा है। यदि ऐसा न होता तो पुलिस असहाय स्थिति में क्यों होती? उसे अपनी ही जान बचाने की जरूरत क्यों पड़ती? पलायन करने वालों ने यह भी खुलासा किया है कि दंगाईयों मेें बाहरी लोग भी शामिल थे। बहुत संभव है वे बांग्लादेशी हो। ऐसी लूटमार, आगजनी, हत्यायें यहां कोई पहली बार नहीं हो रही है। इसके पूर्व चुनाव के दौरान भी हो चुकी है। हालात बता रहे हैं कि पहले कांग्रेस, वामपंथियों और अब ममता सरकार की मेहरबानी से पश्चिम बंगाल में आधा दर्जन से अधिक जिलों में  हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं। जिनमें से मुर्शिदाबाद में हिंदुओं की संख्या 30 फीसदी तो मालदा में 49 फीसदी तक रह गई है।  कुल मिलाकर यहां हालात 1947 के कश्मीर की तरह होते जा रहे हैं।



ममता बनर्जी कह रही हैं कि वक्फ  बिल संशोधन कानून उन्होंने नहीं बनाया है। यह कानून केन्द्र सरकार ने बनाया है। इसलिये इसका जवाब केन्द्र सरकार सेे मांगा जाना चाहिये। उन्होने दंगाईयों से कहा कि वे इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देगी तो दंगा किस बात को लेकर हैं। अप्रत्यक्षत: उन्होंने दंगे के लिये भाजपा को दोषी ठहराया है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुये कलकत्ता हाईकोर्ट ने जहां दंगाग्रस्त क्षेत्रों में तत्काल केन्द्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है और वहीं टिप्पणी भी की कि 'अदालत चुप नहीं रह सकती खासकर जब हिंसा के बारे में शिकायतों की प्रकृति इतनी गंभीर हो।' पश्चिम बंगाल के ताजे हालात को लेकर पूरा देश चिंतित है और लोगों का साफ  कहना है कि यदि केन्द्र सरकार व सुप्रीम कोर्ट ने कड़े कदम न उठाये तो पश्चिम बंगाल का विभाजन भी हो सकता है। नि:संदेह लोगों की चिंतायें जायज व तर्क संगत है। कानून व्यवस्था के हालात गंभीर होने के बावजूद आखिर केन्द्र सरकार चुप क्यों बैठी है। क्यों नहीं वहां तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता? यदि उसकी मंशा यह है कि वो हिन्दुओं पर अत्याचार व उनके पलायन के बाद पश्चिम बंगाल में अगला विधान सभा चुनाव जीत जायेगी तो यह उसका भ्रम ही माना जायेगा। ठीक है पिछले चुनाव में उसकी सीटे बढ़ चुकी हैं किन्तु पीड़ित हिन्दू यह भी देख रहे हैं कि सब कुछ देखकर भाजपा की केन्द्र सरकार, ममता सरकार के खिलाफ  कोई भी कड़ा कदम उठाने को तैयार नहीं है तो फिर वो उसे वोट क्यों देंगें?



यह भी कि जिस तरह ममता सरकार नये वक्फ कानून को लागू न करने की खुली चुनौती दे रही है तो उस पर केन्द्र सरकार का चुप्पी साध लेना देश के अन्य राज्यों में अराजकता को ही बढ़ावा देने का काम करेगा। ऐसे ही सवाल सुप्रीम कोर्ट पर भी उठाये जा रहे हैं। आखिर सुप्रीम कोर्ट किस दिन का इंतजार कर रहा है? सुप्रीम कोर्ट दंगों और हत्याओं का स्वत: संज्ञान क्यों नहीं ले रहा है? यदि केन्द्र सरकार राजनीतिक स्वार्थवश पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन नहीं लागू कर पा रही है तो सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं उसे निर्देश दे रहा है?  जब वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को दण्डित कर सकती है, जब वह तमिलनाडु के राज्यपाल को  दिशानिर्देश दे सकती है तो आखिर पश्चिम बंगाल के हालात पर क्यों नहीं वैधानिक कदम उठा रहा है? 



केन्द्र सरकार व सुप्रीम कोर्ट को ध्यान में रखना चाहिये कि अतीत की गलतियों से ही देश का विभाजन हो चुका है। एक लम्बे अर्से तक जम्मू कश्मीर में मनमाने ढंग से अनुच्छेद 370 लागू रहा है। आज जिस तरह पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर अत्याचार कर उन्हें घर छोड़ने को मजबूर किया जा रहा है और अनेक जिलों और शहरों में कश्मीर जैसे हालात पैदा किए जा रहे है तो कल यदि वो बांग्लादेश में मिलने की मांग करने लगे हैं तो क्या होगा?  शिवशरण त्रिपाठी



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