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Bhopal. व्यंग्य के विशिष्ट टूल्स, Typical tools of satire


Upgrade Jharkhand News. अन्य विधाओं से व्यंग्य को अलग बनाते विशेष टूल्स उसकी अभिव्यक्ति क्षमता को प्रभावी बनाते हैं। व्यंग्य एक ऐसी साहित्यिक विधा है जो समाज की विसंगतियों, विरोधाभासों, पाखंडों, और अव्यवस्थाओं पर तीव्र प्रहार करती है, परंतु इसका तरीका अन्य विधाओं से भिन्न और विशिष्ट होता है। व्यंग्य को विशिष्ट बनाने वाले प्रमुख साहित्यिक टूल्स निम्नानुसार हो सकते हैं , जिनके आधार पर व्यंग्य आलोचना और मूल्यांकन भी किया जा सकता है.

 

 कटाक्ष (Satire/Mockery)- व्यंग्य में कटाक्ष का प्रमुख स्थान होता है। यह तीखे, परंतु विनोदी और बौद्धिक ढंग से समाज की कमियों को उजागर करता है। जबकि कविता या उपन्यास अक्सर करुणा, संवेदना या गंभीरता के माध्यम से विसंगतियों को दिखाते हैं, व्यंग्य उन्हें हास्य के साथ चुभता है।


हास्य का प्रयोग- व्यंग्य में हास्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं होता, बल्कि यह विसंगति को उजागर करने का प्रभावशाली माध्यम बनता है। हास्य के साथ जब व्यंग्य जुड़ता है, तो पाठक हँसते हुए भी सोचने को विवश हो जाता है।


 विरोधाभास और विडंबना (Irony)-विडंबनात्मक शैली व्यंग्य की ताकत है। व्यंग्यकार अक्सर ऐसी स्थितियाँ प्रस्तुत करता है जो सतह पर सामान्य दिखती हैं, परंतु भीतर से गहरी सामाजिक आलोचना लिए होती हैं। यह विरोधाभास पाठक को झकझोरता है।


प्रतीकात्मकता और रूपक- व्यंग्य में प्रतीकों, रूपकों, और कल्पनाशीलता का प्रयोग बहुत प्रभावी होता है। उदाहरण के लिए, किसी नेता की आलोचना सीधे न करके उसे 'रंगमंच का नायक' बताकर उसकी नाटकीयता पर प्रहार किया जा सकता है।


संक्षिप्तता और तीव्रता- व्यंग्य अक्सर संक्षिप्त और बोधगम्य होता है, जिसमें कम शब्दों में गहरी बात कही जाती है। यह उसकी मारक क्षमता को और बढ़ा देता है।


व्यक्तित्व व चरित्रों का विशिष्ट चित्रण- व्यंग्य में पात्रों को इस तरह चित्रित किया जाता है कि वे समाज के एक वर्ग या प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करें। इन पात्रों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ की कमजोरियों को उजागर किया जाता है। इस प्रकार, व्यंग्य की विशिष्टता उसके तीखे, चुटीले, हास्ययुक्त, और विडंबनात्मक शैली में निहित है। यह सीधे आरोप न लगाकर पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। व्यंग्यकार का लक्ष्य केवल आलोचना नहीं, बल्कि समाज को आत्मचिंतन की ओर ले जाना होता है—इसलिए व्यंग्य अन्य विधाओं से भिन्न एक सशक्त और विशिष्ट साहित्यिक विधा मानी जाती है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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