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Jamshedpur. ओझागुणी, डायन बिसाही एवं अनेको अंधविश्वास विरोधी संबंधित ज्ञान की पढ़ाई झारखंड के शिक्षा प्रणाली में शामिल करना होगा, The study of exorcism, witch-hunting and many anti-superstition related knowledge should be included in the education system of Jharkhand.


Jamshedpur (Nagendra) । आनंद मार्ग प्रचारक संघ के ओर से एक तत्व सभा का आयोजन करनडीह ब्लॉक के तुपूडांग में किया गया जिसमें सुनील आनंद ने बताया कि अभी तक सृष्टि पर ऐसा कोई भी मंत्र नहीं जिससे मनुष्य को क्षति पहुंचाया जा सके। मंत्र का जाप करने से मनुष्य का आध्यात्मिक एवं मानसिक उत्थान होता है यह मानव कल्याण के लिए है मंत्र से किसी की हत्या नहीं की जा सकती यह सब बातें अंधविश्वास है। तंत्र का मतलब होता है तराण मुक्ति , जिस पथ पर मनुष्य चलकर परम पुरुष का अनुभव करता है, वही हुआ तंत्र साधना । तंत्र दो प्रकार के होते हैं एक विद्या तंत्र और दूसरा अविद्या तंत्र। इस तंत्र साधना को बताने वाले भगवान सदाशिव हुए। तंत्र मंत्र से किसी की हत्या नहीं हो सकती इस तरह के सोच रखने वाले को मानसिक चिकित्सक से चिकित्सा करवानी चाहिए। 



पिछले दिनों सरायकेला जिला प्रशासन के अनुसार 65 वर्षीय भवानी कैवर्त को लेकर मर्डर का मामला सामने आया है. 65 वर्षीय भवानी कैवर्त को उसके दो सगे पोतों लक्ष्मण कैवर्त  और चंदन कैवर्त ने महज इसलिए कर दी कि वह उसकी जान डायन बिसाही कर ले लेगी. दोनों ने निर्ममता से महिला का सिर काट कर हत्या की और शव को रेलवे लाइन पर लाकर फेंक दिया ताकि यह मामला ट्रेन से कटकर जान देने की साबित हो जाय। यह  हत्या केवल सरायकेला जिला की हत्या नहीं यह एक पूरे समाज के लिए बहुत बड़ा तमाचा है आज भी इस अर्ध विकसित समाज में जी रहे। बलि प्रथा , डायन प्रथा से आज भी समाज को जकड़ा हुआ है हम लंबी-लंबी दावे कर रहे हैं परंतु अभी भी समाज में बली एवं ओझागुणी के चक्कर में लोग अपने को बर्बाद कर रहे हैं। झारखंड में यह समस्या जनरेशन टू जेनरेशन केरी कर रहा है। इसको समाप्त करने के लिए डायन प्रथा ,बलि प्रथा ओझा गुनी से संबंधित अंधविश्वास की बात को वैज्ञानिक, व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर समझाना होगा। 



पूरे भारत के शिक्षा पद्धति में बलि प्रथा, डायन प्रथा तथा अन्य अंधविश्वास जो समाज को कमजोर कर रही है उसकी पढ़ाई शिक्षा प्रणाली में लाना होगा। तभी समाज समझ पाएगा केवल खाना पूर्ति करने से समाज में कोई सुधार नहीं होगा।सुनील आनंद ने कहा कि मनुष्य जीवन एवं मृत्यु के बीच संघर्ष का प्रतीक है मनुष्य को जीवन जीने की शक्ति परम पुरुष  से मिलती है । परमात्मा एवं मनुष्य का संबंध मां एवं उसके गोद के छोटे बच्चे के जैसा संबंध हैं।जिस तरह मां अपने छोटे बच्चे को उसकी जरूरत के अनुसार से एवं कल्याणकारी भाव से सब कुछ समझ लेती है की बच्चे को क्या चाहिए क्या नहीं चाहिए। इस तरह परम पुरुष भी अपने बच्चों के जरूरत अनुसार सब कुछ देते हैं   परंतु मनुष्य की शिकायत हमेशा परम पुरुष से रहती है  कि परमात्मा मुझे कुछ नहीं दिए। मनुष्य अपने संस्कारगत कर्म से कष्ट भोग करता है उसके पीछे भी उसकी भलाई छुपी रहती है जिसे वह नहीं जान पता परंतु उसे भक्ति करने से इस बात का अनुभूति हो जाती है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी चल रहा है वह सब कुछ परम पुरुष की कृपा से चल रहा है।



इन सब बातों का अनुभव भक्ति के द्वारा ही संभव है परम पुरुष मानोकामना के प्रतीक नहीं भक्ति के प्रतीक है सबका कल्याण चाहते हैं जो हमारा दुश्मन है उनका भी कल्याण चाहते हैं और जो हमारा दोस्त है उनका भी कल्याण चाहते हैं परम पुरुष के लिए कोई भी घृणा  योग्य नहीं। वह कल्याणमय सत्ता है इसलिए परम पुरुष को जानना है तो उनको जानने के लिए अपने मन के भीतर में स्थित परम चेतन सत्ता को भक्ति के द्वारा जाना जा सकता है । डायन प्रथा एवं बलि प्रथा को समाप्त करने के लिए मन के प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा और इसके लिए परमात्मा को मन के भीतर खोजना होगा। परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में वास करते हैं विराजमान है उन्हें आध्यात्मिक क्रिया से जानना होगा और यह जो जानने की क्रिया है इसी से मन मजबूत होता है। संकल्प शक्ति बढ़ती है । बलि प्रथा को धीरे-धीरे त्याग कर देना चाहिए क्योंकि बलि देने से भगवान नाराज होते हैं क्योंकि यह पृथ्वी परम पुरुष की मानसिक परिकल्पना है और इस सृष्टि के पालन करता परम पुरुष ही हैं जब वही इस सृष्टि के पालन करता है तो और यह सृष्टि उन्हीं के मानसिक परिकल्पना है तो अपने छोटे-छोटे बच्चों का वह बलि कैसे ले सकते हैं इस  लिए भगवान ,देवी देवता के नाम पर बलि देना अब ठीक बात नहीं क्योंकि समाज अब धीरे-धीरे विकसित हो रहा है बहुत सारी विभिन्न संप्रदायों की मान्यताएं भी अब झूठा साबित हो रही है क्योंकि मान्यताएं मनुष्य के द्वारा अपने स्वार्थ के लिए बनाई गई थी। 



किसी भी संप्रदाय में भगवान के नाम पर बलि देकर उत्सव मनाना बहुत ही खराब बात है। डायन कुछ नहीं होता है यह अर्ध विकसित समाज की एक मानसिक बीमारी है अब समाज बहुत विकसित हो चुका है। दुख का कारण मनुष्य का अपना संस्कार एवं कर्म फल है यही कारण है कि कोई धनी, कोई गरीब  कोई स्वस्थ या कोई जन्मजात अस्वस्थ। इससे संघर्ष करने के साथ लिए मनुष्य को मानसिक  शक्ति की जरूरत होती है जो की परम पुरुष परमात्मा के भजन ,कीर्तन करने से प्राप्त होती है ना की किसी ओझा गुनी के चक्कर में पड़ कर पैसा बर्बाद करना एवं अपने को अंधविश्वास के चंगुल में फंसा देना इससे हर स्तर पर मनुष्य को हानि होती है मनुष्य के मन में एक तरह का भय प्रवेश कर जाता है और वह बार-बार उस ओझा का चक्कर में पड़ता रहता है विषैला जीव सांप बिच्छू काटने एवं बीमार होने पर झाड़ फूंक के चक्कर में ना पड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्सा करवाए झाड़ फूंक से कोई भी किसी की जान नहीं ले सकता यह सब भ्रम है ओझा गुनी से डरने की जरूरत नहीं है। ओझा  किसी को भी डायन बात कर किसी की हत्या करवा देते हैं। यह सब अंधविश्वास है। अपने मन को मजबूत करने के लिए परमात्मा का कीर्तन करें।



इसलिए इससे हमको ऊपर उठने के लिए अपने आंतरिक शक्ति को मजबूत करना होगा उसके लिए ज्यादा से ज्यादा परमात्मा का कीर्तन भजन करने से मनुष्य को का आत्म बल बढ़ेगा और जब आत्म बल एवं भक्ति बढ़ गया तो फिर कोई भी ऐसे व्यक्ति को गुमराह नहीं कर सकता। ओझा गुनी के पास इतनी शक्ति नहीं कि वह किसी भी मनुष्य को मार सकते हैं अगर उनमें इतनी ही शक्ति है तो उन्हें बॉर्डर पर बैठा दिया जाता* और भारत से बॉडर से बैठ कर दुश्मन देश के लोगों को मारते रहते हैं, परंतु ऐसी शक्ति ही नहीं है कि कोई भी मनुष्य किसी को तंत्र-मंत्र से मार सकता है अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं कारण परम पुरुष कल्याणमय सत्ता है उनकी पूजा करने से मनुष्य को जीवन जीने की शक्ति एवं समस्याओं से लड़ने की शक्ति एवं प्रेरणा मिलती है ना की इससे किसी को हानि नहीं पहुंचने की शक्ति मिलती हैं। किसी से भी डरने की कोई जरूरत नहीं सभी परम पुरुष के संतान है कोई भी मनुष्य किसी का तंत्र मंत्र से बाल भी बांका नहीं कर सकता यह सब झूठ है।

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