Upgrade Jharkhand News. प्रतिदिन रात को सोने से पहले, अपनी गुणवान मां से, नक्षत्रों के विषय मेें जानकारी मिलती। हमारी मां उस ज्ञान को, इतने सुंदर व रोचक रूप से सुनाती कि हमारा मन ही ना भरता। पता नहीं मां के पास, इन बातों का विशाल भंडार कब और कैसे आ गया। हमें स्वयं भी अचंभा होता। देखने में सीधी सरल स्वभाव, पर ज्ञान का खजाना इतना कि रोज एक के बाद एक नई कहानी। आकाश के नक्षत्रों के विषय मेें, जैसे सबसे पहले राजा हरिश्चंद्र की नगरी, उसके बाद बालक ध्रुव, श्रवण की बहँगी, और सप्तऋषियों की कथा मां ने सुनाई थी। एक दिन हमने मां से पूछा- 'मां! वो ऊपर बहुत बहुत ऊपर, एक धुंधली सी दिखने वाली लंबी सी पर चौड़ाई मेें कुछ कम पटड़ी या पगडण्डी, उसे क्या कहते हैं?' तब मां ने बताया कि उसका नाम है,आकाश गंगा।
आकाश गंगा?
हम तीनों बहन भाइयों ने हैरान हो कर पूछा।
तब मां बोली कि, 'यही नाम है इसका। यह वह रास्ता है जिससे, नेक व भले काम करने वाले सीधे स्वर्ग में जाते हैं।' मैं तो मन ही मन इस स्वर्ग जाने वाले रास्ते के विषय मेें सोच रही थी। पर छोटे वीर ने सीधे सपाट ढंग से कहा कि- यदि यह रास्ता सीधे स्वर्ग को जाता है तो, इसका नाम तो आकाश सड़क होना चाहिए था। आकाश गंगा का नाम तो कुछ ठीक नहीं लगता।
तब मां ने बड़े प्यार से कहा कि, यह बात है उस समय की, जब सृष्टि की रचना भी नहीं हुई थी अर्थात करोड़ों, अरबों, खरबों वर्ष या इससे भी पहले ,आकाश गंगा का जन्म हुआ होगा। यह रचना थी उस अज्ञात शक्ति की अर्थात ईश्वर की। ऐसे में तारों के उस समूह को आकाश गंगा ही तो कहेंगे। यदि आकाश सड़क कहेंगे तो सही नहीं रहेगा। सड़क जैसी चीज़ तो बनी है मानव द्वारा,केवल कुछ ही शताब्दी पहले। 'मां क्या सच में इस रास्ते से स्वर्ग जा सकते है? क्या इसके किनारे नावें हैं, जिन पर बैठ स्वर्ग जा सकते हैं?' छोटे भाई ने मां से पूछा था। 'नहीं बच्चों! इसे भी ठीक वैसे ही समझो, जैसी हरिश्चंद्र की नगरी की कहानी थी।' मां के मुख से आकाश गंगा की कहानी सुन कर, हमें बहुत खुशी हुई। खुशी इस बात की कि,मां के ज्ञान रूपी भंडार का एक एक अंश। हमारे पास आता जा रहा था। जनक वैद
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