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Bhopal. सेना,सरकार और नागरिक सहयोग से ही संभव है आतंक का मुकाबला , Combatting terrorism is possible only with the cooperation of army, government and citizens


Upgrade Jharkhand News. भारत ने हाल ही में पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर के तहत सटीक मिसाइल हमलों से पकिस्तान के कश्मीर में किए आतंक का बेहतरीन बदला लिया। यह कार्रवाई न केवल भारतीय सेना की सैन्य कुशलता का प्रतीक है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ देश की स्पष्ट नीति को भी दर्शाती है। प्रगट रूप से यह  ऑपरेशन एक सैन्य कार्यवाही है। किंतु आतंक के विरुद्ध इस तरह के आपरेशन सफल तभी होते हैं जब सेना, सरकार और नागरिकों के बीच समन्वय का एक सशक्त ढाँचा मौजूद हो। आतंकवाद से लड़ाई केवल बंदूकों और मिसाइलों से नहीं, बल्कि राष्ट्र के नागरिकों की सजगता, सहयोग और राष्ट्रभक्ति से भी जीती जाती है।  


सीमाओं का कवच  -  भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों के माध्यम से यह साबित किया है कि वह भारत पर किसी आक्रमण या आतंकी घटनाओं का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। सेना की यह ताकत केवल हथियारों की ताकत नहीं, बल्कि उच्चस्तरीय रणनीति, खुफिया जानकारी और साहस का परिणाम है। सेना के जवान सीमाओं पर दिन-रात तैनात रहकर देश की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे ऑपरेशन इसके उदाहरण हैं, जिन्होंने आतंकवाद के प्रति भारत की 'जीरो टॉलरेंस' नीति को रेखांकित किया।  ऑपरेशन सिंदूर देश की उसी नीति का हिस्सा है।  


सरकार का दायित्व -  नीति निर्माण से लेकर वैश्विक कूटनीति और सेना को छूट देना सरकार का दायित्व है ।  सेना को राजनीतिक और तकनीकी समर्थन  जनता की ताकत और एकजुटता ही प्रदान करती है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे मिशन के पीछे सरकार की मंशा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिशें और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठजोड़ बनाने की रणनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  


नागरिकों की जिम्मेदारी - नागरिक सहयोग सुरक्षा का तीसरा स्तंभ  है। यदि सेना और सरकार देश की रीढ़ हैं, तो नागरिक उसकी आत्मा। आतंकवाद से लड़ाई में नागरिकों की भूमिका कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है । सूचना और खुफिया सहयोग स्थानीय निवासी ही दे सकते हैं। सूक्ष्म निरीक्षण तथा सतर्क रहने से आतंकियों की गतिविधियों के बारे में नागरिकों को जमीनी जानकारी हो सकती है। उदाहरण के लिए, जम्मू-कश्मीर में कई बार ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के ठिकानों की जानकारी देकर बड़ी घटनाओं को रोका है। 'आवाम की आवाज' जैसे अभियान इसी सहयोग को बढ़ावा देते हैं।  



सामाजिक जागरूकता और एकता आतंकवाद की सबसे बड़ी हार है। 2008 के मुंबई हमले के बाद देशभर में एकजुटता का जो स्वर उभरा, उसने आतंकवादियों के मनोबल को तोडा।  नागरिकों का यही साहस आतंकवाद को विफल बनाता है।  बदलते परिवेश में तकनीकी और डिजिटल जागरूकता  के साथ ही सोशल मीडिया  पर सतर्कता बरतने की जरूरत है। आतंकी समूहों का प्रचार-प्रसार रोकने में नागरिकों की भूमिका अहम है। झूठी खबरों को रिपोर्ट करना, युवाओं को कट्टरपंथी विचारों से बचाने के लिए जागरूकता फैलाना, और साइबर स्पेस में सक्रिय रहना,ये सभी आधुनिक समय की आवश्यकताएँ हैं।  केरल जैसे राज्यों में मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी किया। ऐसी पहलें समाज के अंदर से ही आतंकवाद की विचारधारा को चुनौती देती हैं।  



भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में आतंकवाद से लड़ना सबके सम्मिलित प्रयासों से ही संभव है। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद, उनके आंतरिक असंतोष का प्रभाव है। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ जैसी समस्याएँ जटिल हैं। इनका समाधान तभी संभव है जब नागरिक सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम करें। उदाहरण के लिए, 'मेरी चौकी, मेरी सुरक्षा' जैसे कार्यक्रमों के तहत सीमावर्ती गाँवों के लोगों को सदा सजग रहने को प्रशिक्षित किया जा सकता है।  ऑपरेशन सिंदूर की सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारत आतंकवाद के प्रति नरम नहीं रहेगा। लेकिन दीर्घकालिक जीत के लिए सेना, सरकार और नागरिकों को एक टीम की तरह लगातार काम करना होगा। जब कोई बच्चा स्कूल में देशभक्ति की कविता सुनाता है, कोई युवा सोशल मीडिया पर सच्चाई फैलाता है, या कोई ग्रामीण संदिग्ध गतिविधि की रिपोर्ट करता है- तभी आतंकवाद की जड़ें कमजोर होती हैं। आतंक का बदला केवल मिसाइलों से ही नहीं, बल्कि हर नागरिक के संकल्प से लिया जा सकता है। सभी धर्मों के नागरिकों की यही समग्रता भारत की सच्ची ताकत भी है। सेना और सरकार ही नहीं, आतंक का मुकाबला नागरिक सहयोग से ही संभव है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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