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Bhopal. स्वर्ग से संकट तक: कश्मीर की अनकही दास्तां, From paradise to crisis: The untold story of Kashmir


Upgrade Jharkhand News. कश्मीर, जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्वविख्यात है। डल झील का शांत जल, शिकारों की सैर, और मुगल गार्डन की रंगीन छटा इसे अनूठा बनाती है। गुलमर्ग की बर्फीली चोटियां, पहलगाम की लिद्दर नदी, और सोनमर्ग का थाजीवास ग्लेशियर पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। श्रीनगर का तुलिप गार्डन, जो एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है, हर साल अप्रैल में लाखों रंग-बिरंगे फूलों से सजता है। चार चिनार का छोटा-सा द्वीप डल झील के बीच शांति का प्रतीक है। लेकिन यह स्वर्ग आज आतंक और अशांति की कहानियों में उलझ गया है। आखिर यह जन्नत जहन्नुम कैसे बन गई? 1980 से 1982 और 1988 से 1991 तक वहां सेना में सेवा करते हुए मैने पांच साल का समय वहां गुजारा है।    


आतंक की शुरुआत और व्यक्तिगत अनुभव-1980 के दशक के अंत में कश्मीर की हवा में बदलाव की गंध थी। लेकिन 1988 में कश्मीर में आतंकवाद की चिंगारी ने इस स्वर्ग को हिलाकर रख दिया। एक सैनिक के रूप में, मैंने स्वयं इस बदलाव को महसूस किया। शुरुआत में डल झील के किनारे शांति थी, लेकिन जल्द ही गोलियों की गूंज ने उस सन्नाटे को तोड़ दिया। मेरे दो साथी अपने स्थान से कश्मीर आते समय आरडीएक्स विस्फोट में अपनी टांगें खो बैठे। आतंकवादी छिपकर हमले करते अचानक, बेरहमी से, और फिर गायब हो जाते। कश्मीर शहरी क्षेत्र में एक बार क्रॉस-फायरिंग के बीच मेरा सामना मौत से हुआ था। वह अनुभव आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों का पलायन, जो लगभग 3 लाख लोगों का था, इस क्षेत्र की सामाजिक संरचना को चोट पहुंचाने वाली घटना थी। यह दर्द आज भी कश्मीर की स्मृति में बस्ता है।


आखिर इसका जिम्मेदार कौन?-कश्मीर की इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या स्थानीय राजनीति, जो जनता की भावनाओं को समझने में विफल रही? या वह वैचारिक ज़हर, जिसने युवाओं को हथियार उठाने के लिए उकसाया? भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार, 1989 से 2024 तक कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित हिंसा में 14 हजार से अधिक लोग मारे गए, जिनमें नागरिक, सैनिक और आतंकवादी शामिल हैं। इसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का परिणाम माना जाता हैं, जो सीमा पार से हथियार और प्रशिक्षण उपलब्ध कराता रहा है। लेकिन केवल बाहरी ताकतों को दोष देना पर्याप्त नहीं। स्थानीय असंतोष, बेरोजगारी, और गलत नीतियों ने भी इस आग में घी डाला। जैसा कि कश्मीरी कवि आगा शाहिद अली ने लिखा कि हमारी स्मृति में अब सिर्फ़ बारूद की गंध बची है। 


हालिया घटनाएं और सामाजिक प्रभाव-हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर कश्मीर की पीड़ा को उजागर किया। इस हमले में निर्दोष नागरिकों की जान गई, परिवार टूटे, और बच्चों के सपने चकनाचूर हुए। 2023 में रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में 30 प्रतिशत की कमी आई, फिर भी शांति एक दूर का सपना बनी हुई है। इन हमलों का असर केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक भी है। स्थानीय लोग डर और अविश्वास के साये में जीते हैं। पर्यटन, जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बार-बार प्रभावित होता है।


आओ चले समाधान की ओर-कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाने के लिए हमें बंदूक नहीं, बल्कि संवाद की जरूरत है। शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक एकता पर ध्यान देना होगा। सेना की उपस्थिति, सरकार की इच्छाशक्ति, और जनता की जागरूकता मिलकर इस संकट का समाधान ढूंढ सकती है। कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। मेरा भारत महान है पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंसा से केवल हिंसा जन्म लेती है। प्रेम, भाईचारा, और मानवीय संवेदनाएं ही इस जख्म को भर सकती हैं।


महावाक्य:कश्मीर की जन्नत को वापस लाने के लिए हमें नफरत की आग बुझानी होगी और इंसानियत का दीप जलाना होगा। नरेंद्र शर्मा परवाना



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