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Bhopal. अद्भुत और अनोखा भोपाल का राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, The wonderful and unique National Human Museum of Bhopal

 18 मई  विश्व संग्रहालय दिवस 



Upgrade Jharkhand News.  18 मई को विश्व संग्रहालय दिवस मनाया जाता है , जिससे संग्रहालयों के महत्व को रेखांकित किया जा सके। भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर अद्वितीय है। खजुराहो के मंदिरों में उकेरी नृत्य-संगीत और दार्शनिक मूर्तियाँ, साँची का बौद्ध स्तूप जो शांति और स्थापत्य का प्रतीक है, और भीमबेटका की गुफाएँ जो मानव सभ्यता के प्रारंभिक चित्रों को समेटे हुए हैं-ये सभी स्थल मध्यप्रदेश को वैश्विक पहचान देते हैं। ये यूनेस्को की सूची में शामिल स्मारक हैं। हमारे लिये गौरव की बात है कि न केवल पुरातात्विक धरोहरें वरन हमारे पुराने ग्रंथ भी वैश्विक महत्व के हैं। हाल ही में श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया है। जब हम पुरातात्विक धरोहर की बातें करते हैं तो स्वतः ही संग्रहालयों का महत्व स्पष्ट हो जाता है। संग्रहालयों में हमारी पुरातात्विक धरोहरें संजो कर संदर्भ तथा प्रदर्शन के लिये रखी जाती हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल विश्व में अपनी तरह का अनोखा संग्रहालय है।



 यदि आप बिना नागालैंड गये स्वयं को वहां देखना चाहते हों तो आप राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल के नागालैंड परिसर में आ जायें और सेल्फी ले लें । हूबहू नागालैंड जैसा परिवेश , वहीं के मूल कलाकारों द्वारा संपूर्ण साज सज्जा के साथ यहां पर्यटकों के लिये प्रदर्शित किया गया है । और ऐसा ही प्रदर्शन भारत के प्रत्येक क्षेत्र के लिये किया गया है । सामान्य तौर पर संग्रहालय की परिकल्पना एक ऐसे संस्थान से होती है, जहां कुछ चुनिंदा मूर्तियां या अन्य सामान कांच की अलमारी में बंद कर एक इमारत में सुरक्षित ढंग से रख दिये गये हों, जिन्हें केवल दूर से ही देखा जा सकता है किन्तु इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल पूरे विश्व में इस दृष्टि से अनूठा है । यहां 200 एकड़ के विशाल भू भाग में देश-विदेश की आदिम जाति कला एवं संस्कृति को बहुत ही खूबसूरती से यथावत संभालकर रखा गया है।



वर्ष 1970 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन में देश के विख्यात मानव विज्ञानी डॉ. सचिन रॉय ने एक ऐसे संग्रहालय की परिकल्पना की जो, मानव की उत्पत्ति से विकास तक के सभी पहलुओं को प्रदर्शित कर सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उनकी इस परिकल्पना को धरातल पर उतारने की अनुमति दी । जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1977 में दिल्ली में बहावलपुर हाउस में राष्ट्रीय मानव संग्रहालय की शुरूआत हुई। प्रारंभ में इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन शिक्षा विभाग का एक संस्थान बनाया गया । वर्ष 1979 में इसे भोपाल  स्थानांतरित किया गया। बाद में इसे संस्कृति विभाग तथा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्थान का दर्जा दिया गया। तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इसके लिये भोपाल के महत्वपूर्ण क्षेत्र विशाल भोपाल ताल के सामने स्थित श्यामला हिल्स में लगभग 200 एकड़ भूभाग आवंटित किया गया जहां पर वर्तमान में यह संग्रहालय स्थापित है। जबकि देश की दक्षिणी क्षेत्रों में विशेष कार्य करने के लिए संग्रहालय का दक्षिण क्षेत्रीय केंद्र, मैसूर में वर्ष 2001 में स्थापित किया गया है। जो विरासत का दर्जा पा चुके वेलिंग्टन हाउस में कार्यरत है। देश के अन्य भागों में यह संग्रहालय अपने क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करने के लिए प्रयासरत है।



संग्रहालय की स्थापना के मूल उद्देश्यों में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना, नव संग्रहालय आंदोलन द्वारा देश के सांस्कृतिक वैविध्य को आम जनता के सामने लाना हैं ।  अपने उद्देश्यों के अनुरूप कार्यरत इस संग्रहालय को एक 'जीवंत संग्रहालय' भी कहा जा सकता है, जिसमें जहां एक ओर मानव की उद् विकास की गाथा को दर्शाती मुक्ताकाश एवं अंतरंग प्रदर्शनियां बनाई गई हैं, तो वहीं दूसरी ओर पुरापाषाणकाल में मानव के जीवन को प्रदर्शित करते शैलाश्रय भी हैं। मूल स्वरूप में बने जनजातीय आवास , संग्रहालय की मुख्य प्रदर्शनी आदि मुक्ताकाशी हैं, जिसे लगभग 40 एकड़ भूभाग पर निर्मित किया गया है। यहां गुजरात की राठवा और चौधरी, ओडिशा की सावरा और गदबा, मध्यप्रदेश के भील और अगरिया, छत्तीसगढ़ के रजवार, झारखंड के संथाल, आंध्रप्रदेश के जटापु, पश्चिम बंगाल के भूमिज, महाराष्ट्र की वारली, असम के बोडो कछारी, मौशिंग और करबी, मणिपुर के थांगकुल एवं कबुई नागा, नागालैंड के चाखेसंग, त्रिपुरा के रियांग, तमिलनाडु के टोडा और कोटा, सिक्किम एवं राजस्थान, से लाये जनजातीय आवास  प्रदर्शित किये गये हैं।  लगातार इसका विस्तार तथा संरक्षण किया जा रहा है। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप निर्मित इन मकानों की महत्वपूर्ण बात ये है, कि इन्हें उन जनजातियों द्वारा अपने साथ लाई गई मूल सामग्री से ही निर्मित किया गया हैं। ऐसे और जन जातीय विशिष्टता वाले आवासों का निर्माण साल दर साल होता रहता है। इस प्रकार इस संग्रहालय को हम एक 'लघु भारत' भी कह सकते हैं।



हिमालयन ग्राम प्रदर्शनी में हिमालयीन क्षेत्र जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के आवास प्रकारों को स्थापित किया गया है। मरूग्राम नामक प्रदर्शनी में राजस्थान से लाये भुंगा आवास प्रकारों को दर्शाया गया है, तो तटीय गांव प्रदर्शनी में भारत के समुद्री तटों पर स्थित केरल, तमिलनाडु के मछुआरों की बस्ती को दिखाया गया है। पारंपरिक तकनीक में देश के विभिन्न अंचलों में जनजातीय समुदायों द्वारा उनके दैनिक जीवन में प्रयोग की जा रही पारंपरिक तकनीकों को प्रदर्शित किया गया है जिसमें उत्तराखंड में पानी के प्रवाह से चलने वाली आटा चक्की, मणिपुर की नमक बनाने की तकनीक, आंध्रप्रदेश से तेल निकालने की तकनीक, गन्ने पेरने की छत्तीसगढ़ की तकनीक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से जलसंरक्षण तकनीक, आदि प्रमुख हैं। मिथक वीथिका में देश के विभिन्न अंचलों में जनजातियों में प्रचलित मिथक कथाओं पर आधारित विशिष्ट अनूठी प्रदर्शनी में मिट्टी, टेराकोटा, कपड़े, पत्थर और धातु के बने प्रदर्शों को दिखाया गया है। नदी घाटी सभ्यता वीथी- जैसा कि हम जानते हैं कि मानव सभ्यता नदी किनारे बसाहट के प्रमाण एवं अवशेष अब भी पुरातत्व की खुदाई में मिलते हैं। वैसे ही मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाने के लिए संग्रहालय में नदी घाटी सभ्यता को दर्शाने वाले प्रादर्श प्रदर्शित किये गये हैं।

 वन एवं मेडिसिनल ट्रेल

वन एवं पर्यावरण को सहेजने के उद्देश्य से संग्रहालय में देश भर से लाये गये पुनीत वनों के प्रतिरूप स्थापित किये गये हैं, तो वहीं सुदूर अंचलों में मिलने वाले ऐसे पौधे जिनका औषधियों के तौर पर इस्तेमाल होता है, भी लगाये गये हैं।

 चित्रित शैलाश्रय

 मानव संग्रहालय की लगभग 32 गुफाओं में भीमबैठका के समकालीन भित्तिचित्र उपलब्ध हैं। जिनका आज भी देशी विदेशी रॉक आर्ट विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया जाता है।

वीथि संकुल  

अंतरंग संग्रहालय भवन लगभग 10 हजार वर्गमीटर में बना है । इस विशाल इमारत के अंदर लगभग 10 प्रदर्शनियों के जरिये देश की जनजातीय संस्कृति को दर्शाने का प्रयास किया गया है जिसमें मानव उद् विकास, हयूमन ओडीसी, लिंगो जात्रा, इथनिक आर्ट, विश्वास परंपराएं, संगीतवाद्य यंत्र, मुखौटे, वस्त्र एवं भोज परंपराओं के स्थाई संकलन प्रदर्शित किए गए हैं। देश के विभिन्न आदिवासी एवं जनजातीय क्षेत्रों में कार्य करते हुए वहां की भौतिक संस्कृति को प्रदर्शित करते प्रादर्शी, देशज ज्ञान पद्धतियों पर आधारित सामग्री का संकलन करते हुए लगभग 35 हजार प्रादर्श संग्रहालय के प्रादर्श भंडार में उपलब्ध हैं, जिन्हें समय-समय पर प्रदर्शित किया जाता है। तो वहीं संग्रहालय के पास लगभग 7 हजार घंटे से अधिक की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग तथा 3 लाख फोटोग्राफिक कवरेज उपलब्ध है।

संग्रहालय में सुविधाएं 

संग्रहालय आने वाले दर्शकों को प्रदर्शनी दिखाने के लिए निःशुल्क गाईड की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। शारीरिक रूप से असमर्थ दर्शकों के लिए व्हील चेयर, रैम्प, तथा नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि में पैनल बनवाये गये हैं। यहां स्थापित लगभग 300 व्यक्तियों की क्षमता वाला वातानुकू‌लित ऑडिटोरियम वर्ष भर विभिन्न शासकीय अशासकीय संस्थानों को काफी किफायती कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है। शैक्षणिक संस्थाओं जैसे स्कूल कॉलेज आदि को देश की कला एवं संस्कृति पर आधारित फोटोग्राफिक प्रदर्शनी हेरिटेज कॉर्नर निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। संग्रहालय में नाम मात्र शुल्क पर प्रदूषणमुक्त पर्यावरण में घूमने का आनंद लिया जा सकता है। वहीं बच्चों के खेलने के लिए निःशुल्क स्थल, भोजन के लिए कैंटीन, कार्यक्रमों के लिए न्यूनतम दर पर हॉल, तथा जनसुविधाएं उपलब्ध है। शोधार्थी एवं छात्रों को मानविकी, पुरातत्व, समाजशास्त्र, वास्तुकला, संग्रहालय विज्ञान, इतिहास आदि विषयों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने के लिए विशाल पुस्तकालय है जहां देश-विदेश से संकलित विभिन्न विषयों पर आधारित लगभग 25 हजार से अधिक पुस्तकें तथा जर्नल्स उपलब्ध हैं। छोटे स्कूली बच्चों के लिए निःशुल्क तथा बड़े बच्चों के लिए समूह में आने पर प्रवेश शुल्क में छूट दी जाती है।



मध्यप्रदेश राज्य सरकार के सहयोग से संग्रहालय परिसर में राष्ट्रीय बालरंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें देश के विभिन्न अंचलों से आये बच्चों द्वारा प्रस्तुतियां दी जाती हैं। बच्चों के द्वारा, बच्चों के लिए आयोजित इस इन्द्रधनुषी कार्यक्रम में खूबसूरत पारंपरिक लोकनृत्यों की प्रस्तुतियां एवं  वैविध्य की झलक देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शक संग्रहालय पहुंचते हैं। यह संग्रहालय शिक्षा, ज्ञान, मनोरंजन एवं समय व्यतीत करने का  सर्वोत्तम साधन है। वास्तुविज्ञान, आदिवासी कला एवं संस्कृति, संरक्षण तकनीकों, ग्राफिक आर्ट एवं रिसर्च तथा प्रशासनिक योजना में लगे छात्रों के लिए संग्रहालय की मुक्ताकाश प्रदर्शनियां एक प्रयोगशाला की तरह प्रायोगिक अनुभव देने का कार्य करतीं हैं। यहां संग्रहालय को देख और छूकर महसूस करने जैसी सुविधा संभवतः देश के किसी अन्य संस्थान में उपलब्ध नहीं है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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