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Bhopal. पुस्तक चर्चा- शब्दों की शास्त्रीय यात्रा "शब्दिका", Book Discussion- Classical journey of words "Shabdika"

 


Upgrade Jharkhand News. हिंदी के काव्यशास्त्र के अनुसार कविता की मूल्यवत्ता ध्वनि, रस, अलंकार, वक्रोक्ति, औचित्य आदि तत्वों में निहित होती है, जबकि पश्चिमी आलोचना उसे भाव, संरचना, प्रतीकात्मकता, भाषा की प्रामाणिकता से आँकती है। डॉ. संजीव की रचनाएँ इन दोनों परिप्रेक्ष्यों के संतुलन का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। उनकी कविताएं न तो मात्र भाववाचक हैं और न ही बौद्धिक चातुर्य का प्रदर्शन, बल्कि अनुभव, संवेदना और सामाजिक बोध का बहुआयामी संगम हैं। काव्य और कविता के मूलभूत तत्व संग्रह की सभी कविताओं में समान रूप से मुखरित दिखते हैं।

       "हम शब्द हैं", यह कविता शब्दों की अस्मिता की खोज है। शब्द न केवल संप्रेषण के माध्यम हैं, बल्कि वे स्वयं भी अर्थ की तलाश में भटकते हैं।


 "हम शब्द हैं

जो खोज रहे हैं

अपना भविष्य..."


यहाँ संजीव कुमार शब्द का मानवीकरण (personification)  करते है। यह प्रतीकात्मक कविता है, जो साहित्यिक सृजन-प्रक्रिया को शब्दों की दृष्टि से देखने का प्रयास करती है। कविता आत्मचिंतनात्मक है तथा आत्मकथात्मक प्रतीकों में ढली हुई है। विषयवस्तु (Content & Themes) की दृष्टि से रचनाएं उद्देश्य पूर्ण हैं। "खुशनुमा दुनिया" यह कविता इंद्रिय बोधात्मक सौंदर्य की अभिव्यक्ति है। यहाँ गंध और अनुभूति का सामंजस्य शब्दों में मिलता है।


 “सोचने की

  कोई सीमा नहीं होती…”


यह कविता ध्वनि, रस और अनुभूति का सुंदर समन्वय है। ‘खुशनुमा’  नवोन्मेष शब्द-सृजन की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रयोग है।  "घर की गली" यह कविता स्थान विशेष के माध्यम से सामाजिक विषमताओं और घटनाओं को बयां करती है।यह प्रसंगबद्ध यथार्थवाद (Contextual Realism) है। कवि बालक, चोर, महिला, और गली जैसे प्रतीकों का सहारा लेकर नग्न यथार्थ को चित्रित किया गया है।"अनुशासन" यह कविता शिक्षा-दर्शन और सामाजिक मूल्य-परिवर्तन की पड़ताल करती है। 


 “बच्चों की ज़िन्दगी

 कितनी अच्छी होती है

  उन्हें नहीं पता

  कि अनुशासन क्या है…”


         इस कविता में विरोधाभास (Paradox) का सौंदर्य है,  अनुशासन, जो सकारात्मक मूल्य है, उसे बच्चों की मासूम स्वतंत्रता के सापेक्ष रखकर गंभीर विचार प्रस्तुत किया गया है।  शिल्प (Form & Craft) की चर्चा की जाए तो डॉ. संजीव की कविता का शिल्प  सधा हुआ और नियंत्रित है। वे छंदमुक्त काव्य के माध्यम से आधुनिकता को आत्मसात करते हैं, परंतु उनके शिल्प में काव्यात्मक संतुलन की झलक बनी रहती है। पंक्तियाँ छोटी हैं, किंतु उनमें अर्थ की गहराई है। ध्वनि-सौंदर्य  है,प्रतीक और बिंब की शक्ति से कविता प्रभावशाली बनती है।संवेदना और विषय की संगति स्पष्ट है । कोई पंक्ति अनावश्यक नहीं लगती। कविताओं की भाषा शैली (Language and Style) में संजीव कुमार का अध्ययन तथा अनुभव एक साथ परिलक्षित होता है। वे कविता में अपनी भाषा सरल,  व्यावहारिक, और संवादात्मक बनाए रखते है  , यही उनकी विशेषता है। कविता में कहीं कृत्रिमता नहीं होती , बल्कि वे पूरी  प्रामाणिकता से लिखते है। कवि अपने पाठक से प्रत्यक्ष वार्तालाप करता है, जिससे संप्रेषण में आत्मीयता बनती है।



अलंकार एवं काव्य-सौंदर्य (Aesthetic Devices) की विवेचना भी आवश्यक है। प्रमुख अलंकारों का प्रयोग दक्षता पूर्वक मिलता है। “हम शब्द हैं” पूरे शीर्षक में ही रूपक है।“शब्द खोज रहे हैं भविष्य” में शब्दों को मानवीय व्यवहार देकर उनका सक्षम मानवीकरण किया गया है, किताब का शीर्षक ही शब्दिका रखा गया है। “अनुशासन से आज़ादी” का मूल्यांकन करें तो विरोधाभास की ताकत का उपयोग आकर्षक है। “घर की गली” में दृश्यात्मक चित्रण परिलक्षित होता है। अलंकारों की योजना संयमित है। जो प्रभाव छोड़ती है। कविताओं में रस और संवेदना का स्तर ( Emotional Appeal) कवि की लेखकीय क्षमता बताता है। करुण रस  ‘घर की गली’ में नारी की पीड़ा, शांत रस  ‘खुशनुमा दुनिया’ में जीवन की कोमल अनुभूति।श्रृंगार और वात्सल्य रस ‘अनुशासन’ में बालक के प्रति सहज प्रेम के भाव दृष्टि गोचर होते हैं , जो पाठक को काव्य गत आनंद प्रदान करते हैं।



रसनिष्पत्ति के लिए कवि भाव को लय से अधिक महत्वपूर्ण मानता है । यह आधुनिक काव्य की प्रवृत्ति है। विषय वैविध्य उच्च काव्य-संवेदना , भाषा शैली , स्पष्ट, सहज प्रतीकात्मकता, प्रभावशाली प्रेरक, स्थायी प्रभाव अंकित करने वाली काव्यशास्त्रीय कसौटी पर संतुलित एवं सुसंगत रचनाएं काव्य संग्रह शाब्दिका को संग्रहणीय बनाती हैं।"शब्दिका" समकालीन हिंदी कविता का  महत्वपूर्ण संग्रह है जिसमें काव्य की संज्ञा, सजगता और संस्कार तीनों समाहित हैं। यह संग्रह न तो यांत्रिक आधुनिकता की शिकार है, न ही परंपरागत बोझ से किसी भी तरह दबा हुआ है । इसमें सर्जनात्मक आत्मा की उपस्थिति है, जो न केवल शब्दों के माध्यम से अर्थ रचती है, बल्कि पाठक के अंतर्मन में अनुभूति की मन प्रफुल्लित करती लहरें उत्पन्न करती है।  विवेक रंजन श्रीवास्तव



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