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भूमिका !
जिस अदृश्य ने ट्रैफिक में उलझा कर
तुम्हें हवाई हादसे से बचा लिया,
उस चमत्कार को नमस्कार है।
और विश्वास !
जिसने तुमको उस आग के गोले से भी सुरक्षित निकाल दिया !
उस चमत्कार को नमस्कार है ।
फिर फिर नमस्कार है।
पर जाने क्यों
खुद उसने ही दी थी
जिन दीपों में
जीवन ज्योति
बुझा दिया उन दीपों को
पल भर में,
इतनी जानें ले लीं,
उसका यह
कैसा जीवन का
तिरस्कार है ।
चमत्कार को
फिर फिर नमस्कार है।
विमान उड़ता है
नील गगन में
अनगिन
सपनों के साथ,
घर-परिवार, उपहार ,
प्रेम लिए
जाता है समुंदर पार ।
बोनवायेज।
मुस्कराते चेहरे,
कर रहे थे जो हवा की बात,
बिखरे हैं मलबे में राख के साथ।
शब्द न्यून हैं
दे ही क्या सकते हैं हम
श्रद्धांजलि
और चंद रुपये उनके परिजनों को
जिन्हें असमय बुला लिया
उस परम शक्ति ने
कितनी ही हो ऊंची विज्ञान की उड़ान
फिर फिर करना होता है यथार्थ का अहसास
नश्वरता और क्षण भंगुरता जीवन का व्यवहार है!
बहुत बौने हैं हम
उस परम शक्ति के सामने
जो शून्य है पर असीम है
फिर फिर उस चमत्कार को नमस्कार है
हर श्वांस का आभार है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
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