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Bhopal जीवन में सात सूत्रों का पालन हर व्यक्ति को सफल बना सकता है, Following seven principles in life can make every person successful


पद्मश्री डॉ. संतराम देशवाल  का साक्षात्कार

Upgrade Jharkhand News. साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा और सामाजिक कार्यों में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले  डॉ. संतराम देशवाल को  हाल ही में भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। एक प्रख्यात कवि, लेखक, शिक्षक और पत्रकार के रूप में उनकी 70 वर्ष की जीवन गाथा प्रेरणादायी है और यह दर्शाती है कि मेहनत, अनुशासन और सामाजिक सरोकार से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। इस साक्षात्कार में हम उनके बचपन, लेखन की शुरुआत, संघर्ष, सफलता और डिजिटल युग के प्रति उनके विचारों को जानेंगे। इस प्रेरक व्यक्तित्व के जीवन के अनछुए पहलुओं को खोजने और उनकी सोच से प्रेरणा लेने के लिए हमने उनसे बात की। प्रस्तुत हैं उनसे साक्षात्कार के संपादित अंश-


प्रश्न - आपकी लेखन यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?   

उत्तर - मेरी लेखन यात्रा की शुरुआत हुई तब मैं मात्र पांच-छः वर्ष वर्ष का था। मेरे गांव खेड़का गुर्जर (जिला झज्जर, हरियाणा) में एक बुजुर्ग का बेटा फौज में था। उनकी चिट्ठी आई, लेकिन गांव में पढ़ने वाला कोई नहीं था। मैं घर के बाहर चौतरे पर बैठा था, तो उन्होंने मुझे चिट्ठी पढ़ने को कहा। मैंने हिम्मत जुटाकर धीरे-धीरे पढ़ी और फिर उनकी चिट्ठी लिखी। इससे गांव में मेरी पहचान बनी। धीरे-धीरे चिट्ठियां लिखते-लिखते मैं किताबें लिखने लगा। यही मेरी लेखन यात्रा का प्रारंभ था।  


प्रश्न - आपके परिवार और गांव की पृष्ठभूमि के बारे में बताएं।   

उत्तर - मैं हरियाणा के झज्जर जिले के खेड़का गुर्जर गांव से हूं। मेरे दादाजी श्री मोहन लाल देशवाल और दादी श्रीमती देवी थीं। मेरे पिताजी श्री सदाराम देशवाल का देहांत तब हुआ, जब मैं चार साल का था। मेरी माताजी दड़का देवी थीं। मेरी पत्नी डॉ. राजकला देशवाल, जो मुरथल के राजकीय महिला महाविद्यालय से उप प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। मेरे दो बेटे हैं उदित सौम्य देशवाल (पावर ग्रिड में डीजीएम) और गोपेंद्र देशवाल (पेप्सी कोला में मार्केटिंग में) हैं। मेरी दो पोतियां, देवांगना और तारांगना, मेरे जीवन की खुशी हैं।  

 

प्रश्न - लेखन में आपके प्रेरणा स्रोत कौन है? सामाजिक या व्यक्तिगत सरोकार?

  उत्तर- मेरा लेखन सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरित है। जब मैं सामाजिक विडंबनाएं, अन्याय या संस्कृति के प्रति उपेक्षा देखता हूं, तो मेरे मन में तीव्र भावनाएं जागती हैं। ये मुझे तब तक चैन नहीं लेने देती, जब तक मैं उन्हें कागज या अब मोबाइल पर न उतार लूं। मेरा मानना है कि साहित्य समाज के हित के लिए होना चाहिए, न कि केवल मनोरंजन या व्यक्तिगत लाभ के लिए।  


प्रश्न- जीवन में संघर्ष और निराशा से कैसे उभरे?

उत्तर- मैंने कभी गहरी निराशा या अवसाद का अनुभव नहीं किया, लेकिन जब भी परेशानियां आईं, मैं लेखन में डूब गया। चाहे कविता हो, निबंध हो या कोई अन्य विधा, लेखन ने मेरा हर दु:ख भुला दिया। यह मेरा सबसे बड़ा सहारा रहा है। मैं दूसरों को भी यही सलाह देता हूं कि कठिन समय में लेखन या रचनात्मक कार्य में डूब जाएं।  


प्रश्न- आपकी कोई प्रिय काव्य पंक्ति जो आपके जीवन का मूलमंत्र हो?   

 उत्तर-मेरी प्रिय पंक्तियां हैं-  मेहनत से मुकद्दर भी बदल जाते हैं, विश्वास से पत्थर भी पिघल जाते हैं।  मेहनत करके तो देखो यारों, मेहनत से रास्ते भी बदल जाते हैं।  


प्रश्न- सफलता और सम्मान के बाद अहंकार को कैसे नियंत्रित करते हैं?  

उत्तर-मैंने कभी अहंकार को पनपने नहीं दिया। मैं सहज जीवन जीता हूं। हाल ही में एक कार्यक्रम में मंच पर मेरा विधायक मेरा नाम लेना भूल गए तो चायपान के समय  मैंने सहजता से उन्हें समझाया। मैं लोगों के बीच घुलमिल जाता हूं, चाहे वे सेल्फी लें या बात करें। मुझे लगता है कि समाज और ईश्वर सब देखता है, और मैं जैसा हूं, वही ठीक हूं।  


प्रश्न- डिजिटल युग को आप कैसे देखते हैं? इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलू क्या हैं?   

  उत्तर- शुरू में मुझे लगा था कि कंप्यूटर बेरोजगारी लाएगा, लेकिन अब मैं समझता हूं कि डिजिटल क्रांति को रोकना असंभव है। हमें इसके सकारात्मक पहलुओं को अपनाना चाहिए। यह लेखन को आसान बनाता है अब मैं कागज की बजाय मोबाइल पर लिखता हूं। लेकिन नकारात्मक प्रभाव, जैसे बच्चों का मोबाइल में खो जाना, चिंताजनक है। माता-पिता को समय निर्धारित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे सकारात्मक सामग्री देखें।  


प्रश्न - आपको प्राप्त प्रमुख पुरस्कारों के बारे में बताएं।  

उत्तर - 2004 में मेरी पहली पुस्तक लोक आलोक (ललित लोक निबंध) को हरियाणा साहित्य अकादमी से सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार मिला। 2009 में मेरी काव्य पुस्तक अनकहे दर्द को भी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार मिला। 2014 में मुझे जन कवि मेहर सिंह सम्मान और 2018 में महाकवि सूरदास साहित्य साधना सम्मान (5 लाख रुपये) प्राप्त हुआ। हाल ही में भारत सरकार ने मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया, जो मेरे लिए सबसे सुखद क्षण था।  


प्रश्न- आपकी जिंदगी का सबसे खुशी का क्षण कौन सा है?   

उत्तर- पद्मश्री प्राप्त करने का क्षण मेरे लिए सबसे खुशी का था। 27 तारीख की रात को मैं  उत्साह के कारण सो भी नहीं सका। यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, मेरे विद्यार्थियों, शुभचिंतकों और समाज के लिए है।  


प्रश्न- जीवन में सफलता के सूत्र क्या हैं?   

उत्तर- मेरे अपने जीवन में सफलता के सात सूत्र हैं,जिनका पालन कर हर एक व्यक्ति सफल हो सकता है।

1. मेहनत-सफलता की इमारत का पहला पत्थर है निरंतर कठिन परिश्रम।

2. अनुशासन- लक्ष्य तक पहुंचने का सीधा मार्ग है आत्मअनुशासन।

3. संकल्प शक्ति-अडिग संकल्प ही असंभव को संभव बनाता है।

4. अधिक से अधिक पढ़ना - व्यापक अध्ययन से ही दृष्टिकोण की गहराई बढ़ती है।

5. मौलिकता - सृजनशीलता की जड़ है मौलिक सोच।

6. ज्ञान अर्जन-निरंतर ज्ञान ही व्यक्तित्व को प्रखर बनाता है।

7. सकारात्मक सोच- हर चुनौती में अवसर ढूंढ़ने की कला है सकारात्मक दृष्टिकोण।

इन सूत्रों को अपनाकर कोई भी किसी भी क्षेत्र में सफलता पा सकता है।  


प्रश्न- आपकी सबसे प्रिय पुस्तक का नाम?  

उत्तर- मेरी हालिया पुस्तक जिंदगी और बता (कविता संग्रह) मुझे सबसे प्रिय है।  

  

प्रश्न- आपके जीवन को सफल बनाने वाले एक शिक्षक?   

उत्तर- डॉ. ईश्वर दत्त रेढ़ू, मेरे संस्कृत के प्रोफेसर रहे  हैं।


प्रश्न- मृत्यु से पहले आप एक चीज चुन सकते हैं, तो क्या चुनेंगे?  

उत्तर-मैं पुस्तकें चुनूंगा। मेरे लिए अच्छी पुस्तकें ही सब कुछ हैं।  पद्मश्री डॉ. संत राम देशवाल का यह साक्षात्कार हमें सिखाता है कि मेहनत, अनुशासन और सामाजिक सरोकार के साथ जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। उनकी सादगी, सहजता और समाज के प्रति समर्पण हर किसी के लिए प्रेरणा है। आइए, उनकी बातों को आत्मसात करें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं। नरेंद्र शर्मा परवाना

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