Upgrade Jharkhand News. पंजाबी संस्कृति में लोहड़ी का त्यौहार बहुत महत्व रखता है। यह त्यौहार रबी की फसल की कटाई और सर्दियों के दिनों के अंत का प्रतीक है। लोहड़ी के दिन सूर्य देव और अग्निदेव की पूजा की जाती है। इसके अलावा अच्छी फसल की कामना के लिए लोहड़ी की पूजा की जाती है। लोहड़ी किसानों की मेहनत, एकता और खुशहाली का भी प्रतीक है। इसे पंजाब समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अच्छी फसल के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करने के लिए लोहड़ी की आग में मूंगफली, गुड़ की मिठाई जैसे गजक और रेवड़ी, तिल और पॉपकॉर्न सहित कई तरह की सामग्री चढ़ाई जाती हैं जिन्हें "चरखा चढ़ाना" कहा जाता है। लोहड़ी की अग्नि को बुरी नजर से बचाने का प्रतीक भी माना जाता है। लोग अग्नि के चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। लोहड़ी के दिन लोग एक दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।पंजाबी संस्कृति के जिन परिवारों में नई बहू या नवजात शिशु की पहली लोहड़ी होती है उन परिवारों में विशेष धूमधाम से यह त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें नाते रिश्तेदार बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और नई बहू या नवजात शिशु को सुखी और लंबे जीवन के लिए भेंट के साथ अपनी शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हैं।
लोहड़ी की लोककथा मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान एक जमींदार दुल्ला भट्टी की वीरता की कहानी से जुड़ी हुई है। इस काल में मध्य- पूर्व के गुलाम बाजार में बेची जाने वाली पंजाब की लड़कियों को बचाने में दुल्ला भट्टी की बहादुरी को कई लोहड़ी गीतों में याद किया जाता है और लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ा जाता है। दुल्ला भट्टी मुगलों के समय में एक बहादुर योद्धा था और जिसने मुगलों के बढ़ते जुल्म के खिलाफ कदम उठाया। उसे 'पंजाब के नायक' की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार नामक जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेचा जाता था। इस दौरान गांव के ब्राह्मण परिवार की दो लड़कियों सुंदरी तथा मुंदरी की सगाई कहीं और तय हुई थी लेकिन मुगल शासक के डर से उनके भावी ससुराल वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे।
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