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Bhopal बिहार में बवाल बनता मतदाता सूची का “विशेष गहन पुनरीक्षण" “Special Intensive Revision” of Voter List creates chaos in Bihar

 


Upgrade Jharkhand News. बिहार में  मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण जारी है। इसमें अनेक नाम  बेदखल किए जा रहे हैं। अब यह मांग उठ रही है कि मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” को संशोधित नहीं, रद्द किया जाए। मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” के सवाल  पर आयोजित जन सुनवाई में यह मांग रखी गयी। बिहार में अब यह मुद्दा बवाल बनता जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से लेकर योगेंद्र यादव और वजाहत हबीबुल्लाह तक अब इस मामले को लेकर मैदान में उतर चुके हैं। भारत जोड़ो अभियान, जन जागरण शक्ति संगठन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय गठजोड़ , समर चैरिटेबल ट्रस्ट, स्वराज अभियान और कोसी नवनिर्माण मंच ने इस विषय पर जन सुनवाई का आयोजन किया । इसमें यह बात कही गयी कि चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेज़ ग्रामीण बिहारवासियों के लिए जमा कर पाना असंभव है। मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”  की प्रक्रिया संविधान की प्रस्तावना में दिए गए राजनीतिक न्याय और समानता के वादे के खिलाफ है।अनुचित दबाव में सिर्फ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग की अपनी ही प्रक्रियाओं का कई बार उल्लंघन हुआ है। इससे मतदाता सूची की गुणवत्ता अधिक बिगड़ेगी और चुनाव आयोग के उद्देश्य को नुकसान पहुँचेगा। पटना के बीआईए हॉल में मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”  पर आयोजित  जन सुनवाई  में बिहार के 14 ज़िलों से लोग आए हुए थे।  



कटिहार से आईं फूल कुमारी देवी ने बताया, “मैं मज़दूर हूं। बीएलओ ने मुझसे आधार और वोटर कार्ड की फोटोकॉपी मांगी। मैंने 4 किलोमीटर चलकर पासपोर्ट फोटो खिंचवाई। मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए मैंने अपने राशन का चावल बेच दिया। दस्तावेज़ जुटाने में मेरे दो दिन की मज़दूरी चली गई। मेरे पास चावल नहीं था, दो दिन भूखी रही।”राज्य भर से आए प्रतिभागियों ने बताया कि गणना फॉर्म बीएलओ के बजाय कई बार वार्ड पार्षद, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या सफाईकर्मी द्वारा बांटे गए। कई मतदाताओं को फॉर्म भरने का तरीका ही नहीं बताया गया। कई परिवारों में कुछ लोगों को फॉर्म मिला, कुछ को नहीं। पटना शहर में बिना फोटो वाला अनधिकृत फॉर्म बांटा गया। कई विवाहित महिलाओं को अपने मायके से दस्तावेज़ लाने में कठिनाई हुई। बीएलओ ने जिन दस्तावेजों को लिया (जैसे आधार और वोटर कार्ड), वे चुनाव आयोग की अधिकृत सूची में नहीं हैं। जन सुनवाई में आये सिर्फ 5 से कम लोगों को अपने फॉर्म पर रिसीविंग मिली। वे सभी जागरूक थे और दबाव डालने के बाद ही रिसीविंग मिली। कई मामलों में लोगों को पता ही नहीं था कि उनका फॉर्म बीएलओ ने पहले ही जमा कर दिया, बिना उनके हस्ताक्षर लिए। एक मामले में, जिसने इस पर सोशल मीडिया पर बात की, उसके करीबी लोगों को धमकियाँ मिलीं। ग़ैर-पढ़े-लिखे मतदाताओं को फॉर्म भरवाने के लिए लगभग ₹100 देने पड़े। कई बीएलओ ने बैंक पासबुक की कॉपी भी ली, जबकि मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”  में इसकी ज़रूरत नहीं बताई गई थी। कोई मानक प्रक्रिया नहीं थी। एक ही परिवार में पति की फोटो ली गई, पत्नी की नहीं। यह खेती का समय है। बिहार के सबसे ग़रीब लोग इस समय पंजाब में खेतों में काम कर रहे हैं। वे अधिकतर अनपढ़ हैं और उनके पास फॉर्म ऑनलाइन भरने की सुविधा नहीं है। कोसी नदी के बाढ़ प्रभावित गांवों में दस्तावेज़ बार-बार बाढ़ में बह जाते हैं, खासकर ग़रीब और दलित वर्ग के लोग इसका शिकार हैं। बीएलओ पर भारी दबाव है-जो नियमों का पालन कर रहे हैं उन्हें धीमा कहकर डांटा जा रहा है और वेतन रोकने की धमकी दी जा रही है। बीएलओ और आंगनवाड़ी सेविकाओं की इस प्रक्रिया में अत्यधिक व्यस्तता से शिक्षा और पोषण की जनकल्याणकारी योजनाओं को नुकसान हो रहा है।



जन सुनवाई की पैनल में वजाहत हबीबुल्ला (पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त), न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश (पूर्व न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय), प्रोफेसर दिवाकर (पूर्व निदेशक, ए. एन. सिन्हा संस्थान), जाँ द्रेज (अर्थशास्त्री), श भंवर मेघवंशी (सामाजिक कार्यकर्ता) और प्रोफेसर नंदिनी सुंदर (समाजशास्त्री) शामिल थे।           न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेज़ ग्रामीण बिहारवासियों के लिए जमा कर पाना असंभव है। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने बताया, “प्रशासन का दुरुपयोग हो रहा है, यह लोगों की मदद नहीं बल्कि उन्हें परेशान कर रहा है। मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” की प्रक्रिया न संविधान के अनुसार है, न आरटीआई कानून के अनुरूप है।” सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा कि मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”   की प्रक्रिया संविधान की प्रस्तावना, जिसमें राजनीतिक न्याय और समानता का वादा है, के खिलाफ है।  अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा, “मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”  को संशोधित नहीं बल्कि रद्द किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग की अपनी प्रक्रियाओं का कई बार उल्लंघन हुआ है। इससे मतदाता सूची की गुणवत्ता गिरेगी और उद्देश्य विफल होगा।” समाजशास्त्री प्रो. नंदिनी सुंदर ने बताया, “मतदाता सूची का “विशेष गहन पुनरीक्षण”   लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। उन्होने उम्मीद जतायी कि हमारी आवाज़ सुनी जाएगी और हम आगे लड़ाई जारी रखेंगे।” एएन सिन्हा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. दिवाकर ने बताया कि आज हमारा लोकतंत्र न जनता का है, न जनता के लिए है, न जनता द्वारा है। हमें इसे वापस लाने के लिए संघर्ष करना होगा। जन सुनवाई में शाहिद कमाल , ऋषि आनंद , कामायनी स्वामी , महेंद्र यादव, ज़हीब , उमेश शर्मा आशीष रंजन , तन्मय ने भी हिस्सा लिया। गया के परमेश्वर यादव, सहरसा के गोविंद पासवान, सहरसा की सुमित्रा देवी, पटना की राखी देवी, कहिटार के इशाक, अररिया की मुन्नी देवी समेत अनेक लोगों ने अपनी बातें रखीं। मौके पर भारत जोड़ो अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव, महासचिव अजीत झा भी उपस्थित थे। जनसुनवाई में जो प्रमुख समस्याएं सामने आयीं उनमें जिन 11 दस्तावेजों को आयोग ने देने को कहा है, वह अधिकतर लोगों के पास है ही नहीं -आधार कार्ड लेकर फॉर्म जमा कराया जा रहा है, जबकि आयोग ने इसे मान्य नहीं बताया है -लोग वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर रहे हैं तो बताया जा रहा है कि फॉर्म पहले से जमा है -खेती के समय श्रमिक मजदूरी को छोड़ कागज बनाने में लगे हुए हैं, घूस भी देनी पड़ रही है । नेपाल की लड़की बिहार में ब्याही गयी, 20 वर्षों से वोटर हैं, अब माता-पिता की मतदाता सूची मांगी जा रही -किसी भी आवेदक को पावती नहीं दी जा रही है, बाद में आवेदन का सबूत मांगा जाएगा जो लोगों के पास नहीं होगा।



वहीं मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”  को लेकर बिहार विधानसभा के मानसून सत्र का आगाज हंगामेदार रहा। मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण”   पर चर्चा को लेकर पूरा विपक्ष अड़ा रहा। मतदाता पुनरीक्षण में लोगों का नाम मतदाता सूची से काटने का आरोप लगाया। बैनर-पोस्टर लेकर विरोध प्रदर्शन किया है।  नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि विधानसभा में वोटर लिस्ट के मुद्दे पर हर हाल में चर्चा कराई जाए, नहीं तो इसके गंभीर नतीजे होंगे।  महागठबंधन के प्रतिनिधियों ने बिहार विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर स्पष्ट रूप से कहा है कि वोटर लिस्ट से नाम कटने की साजिश पर चर्चा कराना जरूरी है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर विधानसभा में इस विषय को नजरअंदाज किया गया तो इसका राजनीतिक और लोकतांत्रिक जवाब दिया जाएगा। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कहा कि मतदाता  सूची का “विशेष गहन पुनरीक्षण” देश का मुद्दा है। बिहार केवल झांकी है, असम और बंगाल बाकी है। वहीं बिहार में विधानसभा के सत्र के दौरान विपक्ष के वाक ऑउट करने पर पप्पू यादव ने नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा कि हमें आश्चर्य हो रहा है कि विपक्ष ने बिहार में वॉकआउट किया है। आप क्यों वॉकआउट कर रहे हैं? सीना तान कर खड़े रहिए।



बिहार में जहां लगभग 65.58 प्रतिशत लोग बेघर हैं, वहां चुनाव आयोग नागरिकों से भूमि आवंटन प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की उम्मीद करता है। जहां निरक्षरता व्याप्त है वहां वे स्कूल प्रमाणपत्र की मांग करते हैं। जहां गरीबी पलायन को मजबूर करती है उन लोगों से आयोग को 'स्थायी निवास प्रमाण' की आवश्यकता होती है' और संभावित रूप से लाखों मतदाताओं के लिए इन अस्पष्ट दस्तावेजों को इकट्ठा करने के लिए दी गई समय सीमा एक महीने से भी कम है'। यहां तक कि अगर किसी चमत्कार से नागरिक अपने दस्तावेजों का प्रबंधन करते हैं तो क्या चुनाव आयोग के पास उन सभी को सत्यापित करने के लिए जनशक्ति है?' चुनाव आयोग ने जवाब में कहा है कि उसने इस विशाल अभ्यास के लिए एक लाख से अधिक ब्लॉक स्तर के अधिकारियों, 4 लाख स्वयंसेवकों और 1.5 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंटों को लगाया है और 80 फीसदी मतदाता पंजीकरण फॉर्म पहले ही एकत्र किए जा चुके हैं। कुमार कृष्णन



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