Upgrade Jharkhand News. हर शख्स का अपना- अपना नजरिया और अंदाज होता है। नजरिया नजारे देखने का भी होता है और नजारा बन जाने का भी होता है। दोनों में जमीन आसमान का फर्क होता है। इसका उदाहरण हमें आम जीवन में अक्सर देखने को मिल जाता है। कहते हैं कि शाम ढले किसी हसीना का मूड़ खराब देख कर उसके अति शुभकांक्षी मित्र ने पूछ लिया, प्रिये आज आपका मूड उखड़ा- उखड़ा सा क्यों है? कहने लगीं सुबह ही ब्यूटी पार्लर में पांच हजार रुपए खर्च किए थे,कमबख्त दिन भर में किसी ने भी मुझ पर गौर नहीं किया लगता है या तो सभी अंधे हैं या खूबसूरती की किसी को भी पहचान ही नहीं है। आजकल इसी दृष्टिकोण के चलते दुनिया में एक अजीब सी बहस छिड़ी हुई है कि मैं ही प्रथम श्रेणी का देश हूं। उन अमीर देशों के प्रधान यह कहने या बताने में कतई गुरेज नहीं कर रहे हैं। एक जमाना था जब ब्रिटेन जैसा बौने कद का महान देश अपने आत्म विश्वास और आत्म बल से दुनिया पर राज करता था। उसका अंदाज पूरी तरह दुनिया से अलग था इसी कारण वह यूनाइटेड किंगडम भी कहलाता है जिसका अर्थ होता है संयुक्त राजधानी। जी हां आज पौंड वाला देश पाउंड भर का लगने लगा है। अर्थ व्यवस्था की तो दुर्गति हो ही रही है,आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा हैं वह अलग। अमेरिका जैसा धनाढ्य देश जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हाल ही के चुनावों में दुनिया के सबसे धनी शख्स एलन मस्क के कंधे पर चढ़ कर भारी मतों से जीते। नतीजा यह हुआ कि ट्रंप ने कंधे से उतार कर मस्क को ऐसी लात मारी कि आकर भारत में गिरा! मस्क भी दाल से खाने वालों में नहीं है उसने भी अपनी नई पार्टी बना कर ट्रंप को महसूस करवा दिया कि वह उससे कम नहीं है।
ट्रंप ने पूरी दुनिया को आजकल कठपुतली समझ कर नचाना प्रारंभ कर दिया है। टैरिफ लगाने की धमकियां दे कर दुनिया के चीन, भारत जैसे देशों को यह संदेश दे दिया है कि अमेरिका आज भी बकरियों के झुंड में वो बकरा है जो सारी बकरियों को अपनी मिल्कियत समझता है। ट्रेड के नाम पर धमका कर कथित रूप से ऑपरेशन सिंदूर को रुकवाने की मध्यस्थता का दावा किया गया।पाकिस्तान के दोगले आसिम मुनीर को गोद में बैठा कर डिनर खिलाया गया सिर्फ इसलिए कि नोबल पुरस्कार के लिए पाकिस्तान ट्रंप को नामित कर दे। यही ईरान इसराइल के युद्ध को भड़का कर शांति बहाल की नौटंकी कर इजरायल से नोबेल के लिए खुद को नामित भी करवा लिया। इसी बहाने उसने हथियारों का पुराना स्टॉक भी भारी दामों में बेचकर क्लियर कर अरबों डॉलर अंटी कर लिए। टैरिफ की धमकियां देकर भारत और चीन जैसे देशों में अपनी धाक जमाने का प्रयास कितना सफल होता है यह तो आने वाला समय ही तय करेगा।
मगर दुनिया के देश ट्रंप की नियत को अच्छी तरह समझ गए हैं शायद इसीलिए डॉलर का विरोध सभी देश करने लगे हैं। सोचिए अगर ऐसा हो गया तो अमेरिका फर्स्ट की ट्रंप की नीति की हवा निकलते कितनी देर लगेगी? भारत जैसा विकासशील देश चौथी अर्थ व्यवस्था बन गया है और जल्द ही तीसरी आर्थिकी पायदान पर कदम रखने ही वाला है। यह बौद्धिक संपदा से लबालब भरा युवा देश जिसके बाजार की तरफ पूरी दुनिया नजरें गड़ाए हुए है,उस पर ट्रंप का यह टैरिफ वाला गुब्बारा कितनी देर तक फूला रह सकता है? अंदाज अच्छा है, संदेश भी अच्छा है। हम भी इंडिया फर्स्ट की नीति अपना लें ताकि मुकाबले में हार का मुंह न देखना पड़े। संभावनाओं का यह देश अगर और भी अच्छी भावना रख कर मेड इन इंडिया की तरफ ज्यादा जोर लगा कर काम करे तो निश्चित रूप से हम द्रुत गति से विकसित देशों की कतार में खड़े नजर आ सकते हैं। मगर हम तो मेक इन इंडिया में चल रहे हैं, इस पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। पंकज शर्मा'तरुण
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