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Bhopal व्यंग्य-बिल दा मामला है Satire-Bill Da Matter Hai

 


Upgrade Jharkhand News.  संसद ने एक निहाल करने वाला बिल पास कर दिया,अब कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री एक महीने से ज्यादा जेल में बंद रहता है तो उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं रहेगा। यह खबर सुनकर बेधड़क भोपाली उसी तरह उछल पड़े जैसे चौके छक्के पड़ने पर चीयर लीडर्स उछलती हैं। हमने बेधड़क से पूछा क्या हुआ? तो बोले अरे खां ,"अब तो देश का सिस्टम सुधरकर ही रहेगा,तीस दिन तक मुख्यमंत्री गिरफ्तार रहेगा तो उसको तुरंत हटा दिया जाएगा, फिर कोई ढंग का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।" हमने पूछा चच्चा वो तो ठीक है लेकिन मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करेगा कौन ? और तीस दिन तक रखेगा कौन जेल में ?



बेधड़क ने बेधड़क जवाब दिया कि भाई,पुलिस है न,पुलिस गिरफ्तार करेगी। हमने पूछा चच्चा आपने वो कहावत सुनी है हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं ? तो बोले इसमें बिल्ली कहां से आ गई ? बात तो बिल की हो रही थी,तब हमने उन्हें बड़े तालाब का पानी पिलाकर इत्मीनान से बैठाया और समझाया कि चच्चा जिस बिल पर तुम पॉपकॉर्न की तरह उछल रहे हो वो असल में एक झुनझुना है उसमें जनता का सिर्फ उतना ही फायदा होगा जितना कोरोना की बेला में मास्क लगाने वाले का हुआ था। सत्तर साल के लोकतंत्र में सिर्फ दिल्ली वाले सर जी को छोड़ दें तो एक भी मुख्यमंत्री गिरफ्तार नहीं हुआ,फिर भविष्य में कितने मुख्यमंत्री पकड़ लोगे ? और जब मुख्यमंत्री नहीं पकड़ोगे तो प्रधानमंत्री को तो सिलेबस से बाहर ही समझो। हमारे देश में प्रधानमंत्री को तीस दिन हिरासत में रखने का मतलब है मगरमच्छ को माचिस की डिब्बी में फिट करना। 



माचिस मतलब समझते हो न ? जिससे आग लगाई जाती है,वैसा ही आग लगाने वाला डब्बा आजकल हर घर में होता है जो रोज आग लगाता है समझ गए न ? दो इधर वाले बैठ जायेंगे दो उधर वाले बैठ जायेंगे और बीच वाला दोनों से सवाल पूछेगा बताइए आखिर प्रधानमंत्री ने ऐसा क्या कर दिया जिससे उन्हें हिरासत में लिया गया ? तब एक बोलेगा कि उन्होंने चुनाव के दौरान कई लोगों को गंजा किया था इसलिए,लेकिन तभी दूसरा वाला बोलेगा कि प्रधानमंत्री ने किसी को गंजा नहीं किया असल में कुछ लोग चुनाव से पहले ही गंजे हो चुके थे,लेकिन वो अपनी गलती छुपाने के लिए प्रधानमंत्री को लपेट रहे हैं ,आखिर प्रधानमंत्री को जरूरत ही क्या है किसी को गंजा करने की ? 



फिर एक्सपर्ट से सवाल पूछा जायेगा कि गंजेपन का असली कारण क्या है और इसका इलाज क्या है ? फिर वो गंजे होने की वैज्ञानिक व्याख्या करने लगेगा और बात उधर मुड़ जाएगी। फिर किसी दर्शक का फोन आ जाएगा कि मेरे  पति समय से पहले गंजे हो रहे हैं कोई इलाज बताइए। तब उनसे पूछा जायेगा,आप अपने पति के गंजे होने का सही समय क्या मानती हैं ? इसका एक्सपेक्टेड टाइम क्या मानती हैं आप ? वो कहेगी एक्सपेक्टेड टाइम तो ट्रेन का होता है,गंजे होने का नहीं। फिर बात रेलवे में चली जायेगी और प्रधानमंत्री को लोग भूलने लगेंगे कि किस केस में अंदर गए हैं। इसलिए चच्चा इस बिल को सिर्फ एक झुनझुना ही समझो,यह नेताओं की सांप सीढ़ी है,उन्हें ही खेलने दो,आम जनता को इससे उतना ही दूर रहना चाहिए जितना मुहल्ले के बुजुर्ग लोग नई नवेली पड़ोसन से दूर रहते हैं। एकाध बार पानी बानी पीना हो तो पीकर चुपचाप घर आने तक तो चलेगा, लेकिन ज्यादा इंट्रेस्ट लेंगे तो याद है ना मुच्छल फंड इज़ सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क ? आजकल रिस्क लेने का जमाना नहीं है इसलिए म्युचल वाले काम से बचो चच्चा, राजनीति के चक्कर में मत पड़ो,यह सब आपका हमारा काम नहीं है। हम आम जनता हैं हम तो एक दिन भी हिरासत में रह लिए तो मुहल्ले वाले हमें तीस दिन तक जीने भी नहीं देंगे,तीस दिन बेइज्जती सहन करना अपने वश की नहीं है चच्चा,ये तो हमारे नेता ही कैरी कर सकते हैं। तीस दिन, चालीस दिन, छह महीना,इसके बाद फिर मुख्यमंत्री बन जायेंगे,मुख्यमंत्री के लिए किसी ने अड़ंगा लगा दिया तो मंत्री बन जायेंगे,मतलब कुछ न कुछ बन जायेंगे क्योंकि वो नेता हैं उनके लिए तीस दिन कोई मायने नहीं रखते,दिल्ली वाले सर जी तो पूरे छह महीने काटकर आए थे।



उसके बाद फिर चुनाव प्रचार करने के लिए छूटे थे,आपको और हमें तो कोई छोड़ेगा भी नहीं। आखिर छूटने की कोई वजह भी तो होनी चाहिए , हम जेल से छूट भी गए तो घर में आकर घुस जायेंगे,जनता के बीच जाने की हिम्मत है जेल से छूटने के बाद ? यह पराक्रम भी सिर्फ नेता कर सकते हैं इसलिए उनके ऊपर तीस दिन का नियम लागू किया है। उन्हें पता है तीस दिन में उनका मार्केट नहीं गिरेगा और गिर भी गया तो क्या डर? सामने वाला तो एक साल जेल में रहकर फिर चुनाव लड़ रहा है,आखिर उससे तो बेहतर स्थिति है हमारी, बस यही तो चाहिए। बदनामी का यही मजा है, यही ताकत है कि हमें हमसे ज्यादा बदनाम वाले की तरफ देखना है,जो बदनाम नहीं उससे हमारा क्या काम ? जो बदनाम नहीं है मतलब वो घर से बाहर नहीं निकलता, ऐसे लोग हमारे किस काम के ? हमें कोई गाजर का हलवा बनवाना है क्या ? हम तो पूरी गाजर खाने वाले हैं। 



खैर,चच्चा बोले अब हम चलते हैं भाई देर हो रही है,आजकल तुम्हारी चाची नाराज चल रही हैं,हमने पूछा चाची को नाराज करने वाले काम करते क्यों हो? तो बेधड़क जी बोले कि हम उन्हें नाराज करने के लिए कोई काम नहीं करते,हम सिर्फ अपना काम करते हैं नाराज तो वो खुद हो जाती है और हमें समझ भी नहीं आता कि बात क्या है ? हम सोचते रहते हैं कि इनको पुरानी बातें पता कैसे चल गईं ? हमने कहा चच्चा चिंता मत करो घर में पुरानी बातें कोई याद नहीं रखता तुमने जरूर कुछ नया किया होगा,तो बोले मियां तुम क्या जानो घर गृहस्थी के टंटे,एकाध बार शादी की होती तो पता चलता कि यहां भी टीवी चैनल जैसा मामला है, बिल कोई और पेश होता है,बहस कोई दूसरी होती है इसलिए हम तो यह सारी बहस अच्छे से समझ लेते हैं और टीवी का रीमोट हाथ में लेकर बैठते हैं,जहां मामला ज्यादा उलझा तो बटन दबा दिया टीवी का,लेकिन दिक्कत यह है कि बीबी का रिमोट नहीं है हमारे पास इसलिए इधर आ जाते हैं। थोड़ी देर के लिए तुमसे बात हो जाती हैं दिल की, बिल की, सबकी,वैसे यह बिल देश की जनता के लिए फायदेमंद तो होगा न ? आखिर चच्चा जहां से शुरू हुए थे वहीं खत्म करके निकल लिए,उन्हें अभी भी यह समझ नहीं आया कि इस बिल से जनता को फायदा होगा या नहीं ? और इसमें तीस दिन के मायने क्या हैं ? वैसे आपको क्या लगता है,? चुनाव में लोगों को गंजा करना  सही था क्या ? जल्दी बताइए आखिर बिल का मामला है... मुकेश "कबीर"



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