Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal साहिबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह:साहस, धैर्य और बलिदान की अमर गाथा Sahibzade Zorawar Singh and Fateh Singh: An immortal saga of courage, fortitude and sacrifice

 


वीर बाल दिवस 26 दिसंबर 

Upgrade Jharkhand News. आज का बालक धीरे-धीरे अपना धैर्य खोता जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि समाज में आत्महत्या, अपराध और संवेदनहीनता जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। दूसरों के प्रति सम्मान, आत्मगौरव तथा अपने धर्म के प्रति आस्था भी कम होती दिखाई दे रही है। जबकि वास्तव में बालक के भीतर साहस, धैर्य, आत्मगौरव, संवेदनशीलता और व्यवहार-कुशलता जैसे गुण स्वाभाविक रूप से विकसित होने चाहिए। यही गुण उसे अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए कुछ करने में सक्षम बनाते हैं। यदि हमें बालकों में इन गुणों का विकास करना है, तो उन्हें ऐसे महापुरुषों और वीर बालकों के जीवन-चरित्र सुनाने होंगे, जिनसे वे प्रेरणा प्राप्त कर सकें। उन्हें ऐसे गीत सिखाने होंगे जिन्हें वे अपने जीवन में उतार सकें। ऐसी पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा जो सीधे उनके हृदय को स्पर्श करें। साथ ही, ऐसी फिल्मों से उनका परिचय कराना होगा जिन्हें देखकर उनके भीतर आत्मगौरव और राष्ट्रीय भावना जागृत हो सके। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि प्रत्येक अभिभावक, शिक्षक और जिम्मेदार नागरिक अपने-अपने स्तर पर बच्चों में इन गुणों के विकास का प्रयास करेंगे तो ही ध्रुव, प्रह्लाद, हकीकत, भगतसिंह जैसे बालक तैयार होंगे। 26 दिसंबर को हमारे सामने ऐसा ही एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो आत्मगौरव और बलिदान की भावना को जाग्रत करता है-यह अवसर है “वीर बाल दिवस”। संभव है कि अनेक बालकों को इसके विषय में पर्याप्त जानकारी न हो, इसलिए आइए, इस पावन अवसर के संदर्भ में हम सब मिलकर चर्चा करें और आने वाली पीढ़ी को उसके गौरवशाली इतिहास से परिचित कराएँ।



वर्ष 1699 में बैसाखी के पावन अवसर पर सिख धर्म के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उनके चारों पुत्र साहिबज़ादे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह खालसा पंथ के अभिन्न अंग थे। खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य मुगल शासन के अत्याचारों से समाज की रक्षा करना था, क्योंकि उस समय पंजाब पर मुगलों का प्रभुत्व था। खालसा पंथ के इस जनजागरण और संघर्ष को समाप्त करने के लिए मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी को पकड़ने हेतु अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। इसी क्रम में 20 दिसंबर 1704 की कड़ाके की ठंड में मुगल सेना ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर आक्रमण कर दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों को करारा उत्तर देना चाहते थे, किंतु उनके साथियों ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वहां से निकलना ही उचित समझा। गुरु जी ने भी जत्थे की सम्मति स्वीकार की और अपने पूरे परिवार के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़कर प्रस्थान किया। मार्ग में सरसा नदी का वेग अत्यंत तीव्र था। नदी के प्रचंड बहाव के कारण उसे पार करते समय गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार एक-दूसरे से बिछुड़ गया। यही वह क्षण था, जिसने आगे चलकर इतिहास को बलिदान की अमर गाथाओं से भर दिया।



धर्म की रक्षा के लिए इससे बड़ा बलिदान और क्या हो सकता है। चमकौर में जब मुगलों के साथ भीषण युद्ध चल रहा था, तब श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने दोनों ज्येष्ठ पुत्रों साहिबज़ादे बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को क्रमशः युद्धभूमि में भेजा। धर्म और सत्य की रक्षा के लिए उत्साह, शौर्य और अदम्य साहस से परिपूर्ण इन वीर साहिबज़ादों ने मुगलों से वीरतापूर्वक युद्ध किया और अंततः रणभूमि में अपना सर्वोच्च बलिदान अर्पित कर अमर हो गए। दूसरी ओर माता गुजरी देवी अपने दो छोटे पौत्रों—साहिबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह तथा उनके रसोइए गंगू के साथ एक गुप्त स्थान पर शरण लेने को विवश हुईं। किंतु दुर्भाग्यवश, लालच में आकर गंगू ने माता गुजरी जी और उनके पौत्रों की सूचना मुगल अधिकारियों तक पहुंचा दी। इसके परिणामस्वरूप गुरु जी के दोनों छोटे साहिबज़ादे मुगलों की गिरफ्त में आ गए और उन्हें सरहिंद के नवाब वजीर खान के सामने प्रस्तुत किया गया। वजीर खान ने इन नन्हे वीरों पर अमानवीय अत्याचार किए और उन्हें जबरन इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश करने का प्रयास किया, परंतु उन्होंने अपने धर्म और आस्था से विचलित होने से स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया।



अंततः 26 दिसंबर 1704 के दिन साहिबज़ादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को निर्दयतापूर्वक जीवित सरहिंद की दीवार में चुनवा दिया गया। अपने लाड़ले पौत्रों के इस हृदयविदारक बलिदान का समाचार सुनकर माता गुजरी जी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। इन वीर बालकों का बलिदान साहस, दृढ़ संकल्प और त्याग की एक अमर गाथा है। साहिबज़ादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी ने मुगल शासकों के अत्याचारों का अदम्य साहस के साथ सामना किया और किसी भी परिस्थिति में अपना धर्म न बदलने की अटूट प्रतिज्ञा निभाई। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने धर्म के प्रति अडिग आस्था का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। जब साहिबज़ादा बाबा जोरावर सिंह जी का बलिदान हुआ, तब उनकी आयु मात्र 9 वर्ष और साहिबज़ादा बाबा फतेह सिंह जी की आयु केवल 6 वर्ष थी। इतनी अल्प आयु में उन्होंने जो अद्वितीय साहस और आत्मबल का परिचय दिया, वह इतिहास की स्वर्णिम और अमिट कथा बन चुका है। उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में भी धैर्य, दृढ़ता और अपने मूल्यों के प्रति निष्ठा बनाए रखना ही सच्चा वीरत्व है।



अपने वीर बालकों के बलिदान पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था "चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।"  वर्ष 2022 में  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सिख पंथ के दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर उनके दोनों छोटे पुत्रों साहिबज़ादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के अद्वितीय बलिदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए हर वर्ष 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। इस निर्णय के साथ उनके साहस, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति को चिरस्मरणीय बनाने हेतु इस दिवस को प्रतिवर्ष मनाने की परंपरा का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर देशभर के विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा गुरुद्वारों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनके माध्यम से बालकों और युवाओं को वीरता, त्याग और आत्मगौरव की प्रेरणा दी जाती है। यह दिवस हमें राष्ट्रीय एकता, धर्मनिष्ठा और त्याग का महान संदेश देता है। इन साहिबज़ादों ने मानवता, सनातन मूल्यों और राष्ट्र की रक्षा के लिए जो अमर आदर्श स्थापित किया, वह युगों-युगों तक हमें प्रेरणा देता रहेगा। निखिलेश महेश्वरी



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

.