Jamshedpur (Nagendra) बिस्टुपुर स्थित होटल रमाडा में चल रहे दो दिवसीय जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन साहित्य पर हुई परिचर्चा में महाराष्ट्र से आए दामोदर जी खड़गे, अंजू रंजन और विमलेश सिंह ने हिस्सा लिया। हिंदी साहित्य के संवर्धन, संरक्षण और उसके विकास पर हुई इस परिचर्चा में साहित्य में रुचि रखने वाले दर्जनों लोगों ने भाग लिया। सरकारी गलियों से ओटीटी तक का सफर विषय परिचर्चा में भाग लेते हुए दामोदर जी खड़गे ने कहा कि आज हिंदी मजबूती और तेजी से पूरे देश ही नहीं विदेश में भी अपनी पहचान बढ़ा रही है। दुनिया में हमारी भाषा हिंदी सुदृढ़ हो रही है। देश में तमाम कवियों, लेखको, उपन्यासकारों ने हिंदी को कई नए-नए शब्दों से जोड़कर समृद्ध बनाया है। हम जितना अध्ययन करते हैं उतनी ही साहित्य के प्रति रुचि और मीमांसा को मजबूत करते हैं। रुचि के साथ-साथ हमारी हिंदी में शुद्धता बढ़ती है। समझ का दायरा बढ़ता है। आज सरकारी कार्यालयों से लेकर ओटीटी तक का दायरा गुणात्मक परिवर्तन के साथ आगे बढ़ा है। जहां साहित्य का सृजन होता है, वहां तक हिंदी पहुंचती है।और इसके माध्यम से हम इसके प्रति अपनी प्रगाढ़ता को मजबूती से परखते और देखते हैं।
वहीं विदेश सेवा की अधिकारी रही अंजू रंजन ने कहा कि पूरी दुनिया में हिंदी एक व्यापक रूप लेती जा रही है। कई देशों में हिंदी भाषा भाषी हमें मिलते हैं। इनकी संख्या भी अच्छी है।उन्होंने कहा कि गिरगिटिया मजदूर के तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से हजारों लोग 200-300 वर्ष पहले विदेशो में गए और वहां अपनी आवाज बुलंद किया। जिनके चलते आज हिंदी कई देशों में बोली जाती है। कई देशों की सरकारें भी हमारी हिंदी भाषा भाषी लोगों के वोटो से बनती और बिगड़ती है। हमारे देश के लोग कई देशों में उच्च पदों प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जैसे पदों पर विद्यमान है। हमें अपनी भाषा को सुरक्षित, संरक्षित और संवर्धन करने में सहयोग करना चाहिए। हमें इसका प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। हम अपनी भाषा को कमजोर ना करें। क्योंकि विदेशों से आए हुए लोग रूस, ब्रिटनी और स्वीडन जैसे देश के लोग बिहार और उत्तर प्रदेश में आते हैं और हिंदी सीखने हैं और बोलते हैं, जो हिंदी के प्रति विदेश में रुचि को दर्शाता है।
अंजु रंजन ने कहा कि हमारे देश के प्राचीन ग्रंथ महाभारत, गीता, रामायण का विदेशियों ने अपनी भाषा में अनुवाद किया है। चकित करने वाली यह बात है कि हिंदी के कई शब्द ऐसे हैं जो अंग्रेजी में वर्णित नहीं है या अंग्रेजी शब्दकोश में उनका स्थान नहीं है। ऐसे में हिंदी के शब्दों का लैटिन भाषा में प्रयोग किया गया है। वहीं विमलेश सिंह ने हिंदी भाषा की प्रगाड़ता और इसके मिठास के बारे में चर्चा की और अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि वैसे तो वह अंग्रेजी साहित्य से जुड़े हैं। लेकिन हिंदी के प्रति भी उनकी प्रगाढ़ता काम नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी में भी उनकी कम रुचि नहीं है क्योंकि भोजपुरी उनकी मात्रि भाषा और घर की भाषा रही है। उनकी हिंदी के प्रति रुचि अविरल है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में सैकड़ों तरह की भाषाएं बोली जाती है। हर भाषा से हमें कुछ न कुछ प्राप्त करना चाहिए। वैसे शब्द हमें निकालने चाहिए जो काफी सूटेबल और अर्थपूर्ण होते हैं। उन्होंने लोक भाषा के शब्दों का उल्लेख भी किया।
कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादें दस्तूर बनी -दूसरी ओर एक अन्य साहित्यिक कार्यक्रम में प्रभात खबर के संपादक संजय मिश्रा अनुज शर्मा के बीच साहित्य को लेकर काफी मंत्रणा हुई। दोनों ही विद्वान पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपनी अपनी बातें रखी। अनुज शर्मा ने जो इंडिया टुडे से जुड़े हुए हैं। सैकड़ो हस्तियों का साक्षात्कार लिया है। उन्होंने बताया की कई ऐसे मौके आते हैं जब आप किसी बड़ी हस्ती का इंटरव्यू कर रहे होते हैं और ऐसे सवाल होते हैं जो आप उनसे सीधे तौर पर पूछ नहीं पाते हैं,अपनी भाषायी मर्यादा और सीमा का ध्यान रखने के कारण। ऐसे मौके पर आप मौके की तलाश करते हैं। ताकि आपको अपने क्वेश्चन का उत्तर भी मिल जाए और आप सवालों को परोक्ष रूप से पूछ भी सकते हैं।
संजय मिश्रा ने भी कई लेखकों, कवियों और साहित्यकारों के नाम पर अनुज शर्मा से सवाल किया और यह जानना चाहा कि अगर इस तरह की हस्तियां आपके सामने हो तो आप कैसा सवाल पूछना चाहेंगे। जिसमे मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, निर्मल मिलिंद, सर्वेश्वर दयाल, राकेश मोहन, गोपाल सिंह नेपाली, रामधारी सिंह दिनकर, चंद्रधर शर्मा गुलेरी जैसे साहित्यकारों की चर्चा की और अनुज शर्मा से जानना चाहा कि अगर ऐसी हस्तियां आपके सामने हो तो आप उनसे किस तरह के सवाल करना चाहेंगे? जिसका उत्तर श्री शर्मा ने बड़ी त्वरित और वेबाकी से दिया।आज का यह कार्यक्रम बड़ा ही रोमक, दिलचस्प और साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए रुचिकर रहा।


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