Upgrade Jharkhand News. हिंदी काव्य-जगत में छायावाद को यदि आत्मा और संवेदना का युग कहा जाए, तो सुमित्रानंदन पंत उसके सबसे उज्ज्वल प्रतिनिधि कवि हैं। वे केवल प्रकृति के गायक नहीं, बल्कि सौंदर्य, चेतना और मानव-मूल्यों के साधक कवि हैं। उनकी कविता में हिमालयी प्रकृति की नीरव भव्यता, मनुष्य की अंतःसंवेदना और युगबोध का क्रमिक विकास स्पष्ट दिखाई देता है। पंत की काव्य-विशेषताओं का अध्ययन वस्तुतः उनके काव्य-विकास की यात्रा को समझना है।
प्रकृति-चित्रण : पंत काव्य की आत्मा-सुमित्रानंदन पंत को हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ प्रकृति-कवि कहा जाता है। उनकी कविता में प्रकृति केवल पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि जीवंत पात्र है। पर्वत, वन, पुष्प, नदियाँ, आकाश और ऋतुएँ—सब मानो मानवीय भावनाओं से युक्त होकर बोलते हैं।उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ—
“प्रकृति की कोमल उँगलियों ने
छेड़ा जीवन का वीणा-तार”
यह स्पष्ट करती हैं कि पंत के लिए प्रकृति जीवन-संगीत की साधिका है। प्रकृति उनके यहाँ सौंदर्य, शांति और आध्यात्मिक चेतना का स्रोत है। हिमालयी अंचल में जन्म लेने का प्रभाव उनकी कविताओं में गहरे रूप में विद्यमान है।
सौंदर्यबोध और कलात्मक चेतना -पंत की कविता में सौंदर्य केवल बाह्य नहीं, बल्कि आंतरिक और आत्मिक है। वे सौंदर्य को जीवन के परिष्कार से जोड़ते हैं। उनके सौंदर्यबोध में कोमलता, माधुर्य और संगीतात्मकता प्रमुख है। उनकी प्रारंभिक रचनाएँ—पल्लव, वीणा, गुंजन—सौंदर्य-प्रधान हैं, जहाँ कविता एक चित्र की भाँति सजीव हो उठती है। शब्द चयन, लय और बिंब-योजना अत्यंत सुघड़ और प्रभावशाली है।
गीतात्मकता और संगीतात्मक भाषा -पंत की काव्य-भाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी गीतात्मकता है। उनकी कविताएँ सहज ही गेय बन जाती हैं। छंद, लय और ध्वनि-सौंदर्य का संतुलित प्रयोग उनकी रचनाओं को विशिष्ट बनाता है।
उनकी भाषा—कोमल, संस्कृतनिष्ठ,भावानुकूल
संगीतपूर्ण है। यही कारण है कि पंत की कविताएँ पढ़ते समय श्रवणानंद की अनुभूति होती है।
कल्पनाशीलता और बिंब-विधान -छायावाद की मूल विशेषता कल्पना है और पंत इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उनकी कल्पना दृश्यात्मक है—वे शब्दों से चित्र गढ़ते हैं। उनके बिंबों में रंग, प्रकाश और गति का अद्भुत संयोजन मिलता है। उदाहरणस्वरूप, पुष्प, किरण, तारा, चाँद, प्रभात—ये प्रतीक पंत के काव्य में बार-बार आते हैं और एक स्वप्निल वातावरण रचते हैं।
व्यक्तिवाद से मानवतावाद की ओर -पंत की काव्य-यात्रा केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं रहती। समय के साथ उनकी कविता में सामाजिक चेतना का विकास होता है। युगांत, लोकायतन जैसी कृतियों में वे समाज, श्रम, मानव-गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करते हैं।वे लिखते हैं—
“मनुष्य बनो, मनुष्य से प्यार करो”
यह पंक्ति उनके मानवतावादी दृष्टिकोण को उद्घाटित करती है। पंत की कविता यहाँ व्यक्तिगत संवेदना से ऊपर उठकर समष्टि चेतना की अभिव्यक्ति बन जाती है।
दार्शनिकता और जीवन-दृष्टि -पंत की कविता में भारतीय दर्शन—विशेषकर आदर्शवाद और मानवतावाद—का गहरा प्रभाव है। जीवन, मृत्यु, आत्मा, चेतना और भविष्य के प्रति उनकी दृष्टि आशावादी है। उनकी दार्शनिकता बोझिल नहीं, बल्कि काव्यात्मक और सहज है। वे जीवन को संघर्ष के बावजूद सुंदर और सार्थक मानते हैं।
युगबोध और प्रगतिशील चेतना -पंत केवल प्रकृति के कवि नहीं, बल्कि अपने युग के साक्षी भी हैं। स्वतंत्रता आंदोलन, सामाजिक परिवर्तन और नवमानव की कल्पना उनकी बाद की कविताओं में स्पष्ट रूप से दिखती है। वे साहित्य को जीवन से जोड़ते हैं और कविता को समाज-निर्माण का साधन मानते हैं।
सुमित्रानंदन पंत की काव्य-विशेषताएँ उन्हें हिंदी साहित्य का सौंदर्य-साधक, प्रकृति-प्रेमी और मानवतावादी कवि सिद्ध करती हैं। उनकी कविता प्रकृति की गोद से निकलकर मानवता के विस्तृत आकाश तक पहुँचती है। यही काव्य-विकास उन्हें कालजयी बनाता है। पंत की रचनाएँ आज भी पाठकों को संवेदना, सौंदर्य और विचार—तीनों स्तरों पर समृद्ध करती हैं। वे न केवल छायावाद के प्रतिनिधि हैं, बल्कि हिंदी कविता की स्थायी प्रेरणा भी हैं।

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