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Mumbai एआई के दौर में वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी Wildlife Photography in the Age of AI

 


  • प्रकाश देसाई की धैर्य, सादगी और जुनून भरी यात्रा
  • एआई के शोर में प्रकाश देसाई की वाइल्डलाइफ साधना
Mumbai (Anil Bedag) आज के दौर में जब एआई और एडवांस फोटो एडिटिंग टूल्स के जरिए तस्वीरें बनाना आसान हो गया है, वहीं वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी अब भी धैर्य, मेहनत और प्रकृति के सम्मान पर आधारित कला बनी हुई है। जंगल में जानवरों की असली और प्राकृतिक तस्वीरें लेना समय, संयम और सच्चे जुड़ाव की मांग करता है। सोशल मीडिया पर भले ही एडिट की हुई तस्वीरें छाई हों, लेकिन असली वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी आज भी अपनी सच्चाई और ताकत के कारण खास पहचान रखती है।

ऐसे ही एक सच्चे और समर्पित फोटोग्राफर हैं प्रकाश देसाई, जो भारतीय मूल के हैं और अमेरिका में रहते हैं। प्रकाश देसाई का मानना है कि वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी को न तो जल्दबाज़ी में किया जा सकता है और न ही किसी सॉफ्टवेयर से बनाया जा सकता है। असली तस्वीरें जंगल में समय बिताने, ध्यान से देखने और सही पल का इंतज़ार करने से ही मिलती हैं।

पिछले कई दशकों में प्रकाश देसाई अमेरिका, कनाडा, न्यूज़ीलैंड और भारत के जंगलों, रेगिस्तानों, तटीय इलाकों और नेशनल पार्क्स में घूम चुके हैं। उन्होंने अमेरिका से कनाडा तक करीब 5,000 किलोमीटर की यात्रा अपनी गाड़ी से पांच बार की, सिर्फ फोटोग्राफी के लिए। अगस्त 2015 में उन्होंने न्यूज़ीलैंड का खास फोटोग्राफी टूर भी किया।



प्रकाश देसाई का जन्म संतरामपुर, पंचमहल में हुआ और वे मूल रूप से भडेली, बुलसर (गुजरात) के रहने वाले हैं। उन्होंने बिलिमोरा से पढ़ाई की और बॉम्बे यूनिवर्सिटी से साइंस की शिक्षा ली। 1966 में वे अमेरिका गए और 1970 में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की। वे अपनी पत्नी डॉ. गीता देसाई के साथ टेक्सास के ऑयल इंडस्ट्री में काम करने लगे और आज “ओम टेक इंक.” नाम से अपना व्यवसाय संभालते हैं।



हालांकि उनका पेशा अलग था, लेकिन फोटोग्राफी उनका सच्चा प्यार बन गई। राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में उन्होंने 18 साल तक धैर्य रखा और आखिरकार एक शेरनी की दुर्लभ तस्वीर ली। उनकी तस्वीरों की हाल ही में भारत में प्रदर्शनी लगी और जल्द ही वडोदरा में एक और एग्ज़िबिशन होने वाला है।



80 साल की उम्र में भी प्रकाश देसाई आज कैमरा और जंगल के साथ उतने ही सक्रिय हैं। वे फोटोशॉप या किसी एडिटिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं करते। उनका मानना है कि सच्ची तस्वीर वही है, जो प्रकृति खुद रचती है। उनका सफर यह साबित करता है कि जुनून और सच्चाई की कोई उम्र नहीं होती।



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