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सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे सारंडा के किसान, वर्षा आधारित घाटे की खेती करने को है मजबूर, Farmers of Saranda are facing the brunt of government neglect, are forced to do rain based deficit farming


गुवा
 । सारंडा के गांवों में रहने वाले सैकड़ों किसान सारंडा से होकर गुजरने वाली कारो, कोयना, सरोखा समेत अन्य नदी व प्राकृतिक नाले होने के बावजूद वर्षा के भरोसे खेती करने को मजबूर हैं। इन किसानों की खेती हर वर्ष घाटे में रहती है। इसके बावजूद ये किसान एक नयी आशा व विश्वास के साथ हर बार बेहतर फसल होने की आस लिए खेती करते हैं। इस बारिश के मौसम में भी सारंडा के सभी गांवों के किसान अपने हल-बैल लेकर पूरे परिवार के साथ अपने-अपने खेतों में देर शाम तक कड़ी मेहनत कर रहे है।

 सारंडा के तितलीघाट, बहदा, छोटानागरा, छोटा जामकुंडिया आदि अनेक गांवों के किसानों को अपने खेतों में मेहनत करते देखा जा सकता है। किसानों ने बताया कि उन्हें उम्मीद है इस वर्ष बारिश अच्छी होगी। इसलिये खेत में गोड़ा धान, मक्का, बरबट्टी आदि फसल लगाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लिफ्ट इरिगेशन अथवा सिंचाई की कोई व्यवस्था सरकार की तरफ नहीं होने के कारण वे नदी-नाला किनारे स्थित अपने खेतों में रोपा धान न लगाकर गोड़ा धान लगाते हैं। अगर सरकार प्राकृतिक नदी-नाला किनारे के खेतों में लिफ्ट इरिगेशन के माध्यम से पानी पहुंचाने की व्यवस्था हुई होती तो किसान सालों भर विभिन्न फसलों व सब्जियों को लगाकर आत्मनिर्भर बने रहते। लेकिन पानी के अभाव में अधिकतर खेत फसल विहिन रहता है, या फिर वर्षा के भरोसे बीज लगाते हैं।


यह खेती हर वर्ष नुकसान दायक होता है। किसानों ने बताया कि झारखण्ड अलग राज्य बने 23 वर्ष हो गये, लेकिन सारंडा के गांवों की तस्वीर व तकदीर में कोई सुधार नहीं हुआ। बल्कि सारंडा और यहां के लोग और बर्बाद हुए हैं। लोगों ने मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक निरंतर बनाया लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई बदलाव व सुधार नहीं हुआ। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा जब छोटानागरा पहुंचे थे तो उन्होंने खुद माना था कि सारंडा के 26 गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, लिफ्ट इरिगेशन से सिंचाई सुविधा बहाल करने की जरूरत है। शुद्ध पेयजल, चिकित्सा, एम्बुलेंस, शिक्षा आदि सुविधाओं का अभाव है।

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