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मवेशियों को जंगल में चुरा कर अपने जीविकोपार्जन मैं जूटे सारंडा के ग्रामीण, The villagers of Saranda are engaged in earning their livelihood by stealing cattle in the forest.



गुवा । सारंडा के सुदूरवर्ती गांवों में रहने वाले लोगों के पास रोजगार नहीं रहने के कारण वे चरवाहे का काम करने को मजबूर है। अपनी आजीविका चलाने के लिए वर्षों से कुछ गरीब ग्रामीण व बच्चे विभिन्न गांव के पालतू मवेशियों को लेकर समूह में चराते हैं। इसके एवज में मवेशियों के मालिकों द्वारा इन्हें जीविकोपार्जन हेतु पैसा व अनाज दिया जाता है। मवेशियों को चराने वाले लोग पशुओं को पूरे वर्ष गांव के समीप जंगल में चराते हैं और शाम में एक लकड़ी के एक घेरे के भीतर डाल देते हैं। 

सुबह होने के बाद पुनः उस घेरे से सारे मवेशियों को निकाल कर जंगल में चराने ले जाते हैं। सारंडा के छोटा जामकुंडिया क्षेत्र के जंगलों में इन मवेशियों को चरा रहे कुछ बच्चों ने बताया कि किसी एक ग्रामीण की एक अथवा 10 बकरी क्यों न हो, उसे चराने के एवज में प्रत्येक सप्ताह डेढ़ किलो चावल एवं 10 रुपया और साल के 600 रुपये उनके द्वारा दिए जाते हैं। इसके अलावे प्रति बैल चराने पर उतने ही चावल व पैसे मिलते हैं। 

बच्चों के अनुसार वे लोग एक साथ दर्जनों ग्रामीणों के मवेशियों को चराते हैं ऐसे में उनका जीविकोपार्जन हो जाता हैं। ऐसा कार्य विभिन्न गांव के कुछ गरीब निरंतर करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि जंगल में विषैले सांप, हाथी आदि का हमेशा खतरा रहता है लेकिन आज तक कभी ऐसे जानवरों से नुकसान नहीं हुआ है। गर्मी, बारिश व ठंड सभी मौसम में वह मवेशियों को चराते हैं।

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