जिसको लेकर किराया भुगतान के लिए विश्वनाथ ने हरिओम पर दबाव बनाया। जब हरिओम ने किराया नहीं दिया तो विश्वनाथ ने इसको लेकर चाईबासा कोर्ट में वर्ष 2007 में केस दर्ज कर दिया। जिसको लेकर लम्बी कानूनी लड़ाई चली। इस बीच दुकान में कब्ज़ा जमाये हरिओम ने जब देखा की वह केस हारने वाला है और कोर्ट का फैसला कभी भी उसके खिलाफ आ सकता है। इस आशंका के कारण हरिओम ने बड़ी चालाकी से विवादित और कोर्ट में विचाराधीन इस दुकान को राजेश कुमार गुप्ता को लाखों रूपये में बेचकर चक्रधरपुर से फरार हो गया।
इधर राजेश को पता ही नहीं था की दुकान के मालिकाना हक को लेकर चाईबासा कोर्ट में केस चल रहा है। सोमवार को जब दुकान को खाली करने के लिए कोर्ट के नजीर मो नादिम और कोर्ट के अन्य कर्मचारी, चक्रधरपुर थाना प्रभारी चंद्रशेखर कुमार और पुलिस बल मौके पर दूकान खाली करने पहुंची तो राजेश के होश उड़ गए। राजेश जिस दुकान को खरीदकर अपना समझ रहा था। वह दुकान अब उसकी नहीं थी। बाद में दुकानदार और कोर्ट के कर्मचारियों के बीच आपसी सहमति के बीच बातचीत के बाद कोर्ट के कर्मचारियों ने दुकान सोमवार सुबह 11 बजे से खाली करना शुरू किया है जो की समाचार लिखे जाने तक जारी है।
वहीं राजेश अब अपनी किस्मत को कोने में बैठकर कोसने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहा है। इधर कोर्ट का कहना है की दुकान को खाली करने के बाद दुकान पर ताला लगाकर चाबी कोर्ट को सौंप दी जाएगी।
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